शनिवार, 29 सितंबर 2018

 कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने कहा है कि ‘कांग्रेस पार्टी किसी भी स्तर पर सेना की बहादुरी का राजनीतिक लाभ लेेेने का विरोध करती है।’
सुरजेवाला की बात सही है।
 पर  ऐसा विरोध कांग्रेस कब से कर रही है ?
क्या उसने 1971 के बंगला देश युद्ध में विजय का  चुनावी लाभ लेने का प्रयास नहीं किया था ?
मोदी सरकार को ‘सर्जिकल स्ट्राइक डे’ मनाने की कोई जरूरत नहीं थी।भाजपा सर्जिकल स्ट्राइक डे नहीं भी मनाती तो भी उसे उसका राजनीतिक या चुनावी लाभ मिलता।
उसी तरह कांग्रेस पार्टी बंगला देश युद्ध का चुनावी लाभ उठाने के लिए अतिरिक्त प्रचार नहीं भी करती तो भी उसे उसका लाभ मिल ही जाता।इंदिरा गांधी को तो आंध्र के एक कांग्रेसी सांसद ने ‘दुर्गा’ का दर्जा दे दिया था।
 पर धैर्य किसे है !
न तो एक दूसरे पर आरोप लगाने में कोई धैर्य है और न ही राजनीतिक लाभ उठाने में।
अब देखिए बंगला देश युद्ध के बाद तत्कालीन इंदिरा सरकार और कांग्रेस ने क्या किया था ?
उत्तर प्रदेश के प्रमुख कांग्रेसी नेताओं के विरोध के बावजूद समय से दो साल पहले यानी 1972 में विधान सभा चुनाव करवा दिया गया।
उन्हें लगा था कि दो साल बाद  युद्ध में विजय का चुनावी लाभ नहीं मिल सकेगा।साथ ही प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने उन दिनों मतदाताओं के नाम जो चिट्ठी जारी की उसके अनुसार,‘देशवासियों की एकता और उच्च आदर्शों के प्रति निष्ठा ने हमें युद्ध में जिताया।अब उसी लगन से हमें गरीबी हटानी है।इसके लिए हमें विभिन्न प्रदेशों में ऐसी स्थायी सरकारों की जरूरत है जिनकी साझेदारी केंद्रीय सरकार के साथ हो सके।’
  मार्च, 1972 के साप्ताहिक ‘दिनमान’ के अनुसार,‘जहां तक कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र का संबंध है,उसने यह बात छिपाने की कोशिश नहीं की है कि भारत पाक युद्ध में भारत की विजय इंदिरा गांधी के सफल नेतृत्व का प्रतीक है और इंदिरा गांधी के हाथ मजबूत करने के लिए विभिन्न प्रदेशों में अब कांग्रेेस की ही सरकार होनी चाहिए।’ 
  कोई भी बयान देने से पहले नेताओं को यह याद कर लेना चाहिए कि उसी सवाल पर उसने पहले क्या रुख अपनाया था।
भाजपा जब विरोध में थी तो उसके नेता कहा करते थे कि संसद के कामकाज में बाधा पहुंचाना भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है।
पर जब खुद भाजपा सत्ता में है तो बाधा पहुंचाने के लिए आज यदा कदा कांग्रेस को कोसती रहती है।
इन सब बातों से पूरी राजनीति की विश्वसनीयता घटती जाती है।इसका विपरीत असर स्वस्थ लोकतंत्र पर भी पड़ता है।
    

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