धर्मदेव अपना ! यही नाम था उनका।अस्सी के दशक में
वे पटना के जनसत्ता आॅफिस में मुझसे मिलने आए थे।
बिना किसी भूमिका के उन्होंने कहा कि ‘मैंने देवानंद पर मुकदमा कर दिया है ।पर वह खबर कहीं छप नहीं रही है।
‘विजय कृष्ण जी ने कहा है कि आप जनसत्ता आॅफिस जाइए।जो खबर कहीं नहीं छपेगी,वह जनसत्ता में छप जाएगी।
इसीलिए आपके पास आया हूं।’
धर्मदेव जी विजय कृष्ण के चुनाव क्षेत्र के मूल निवासी थे।
मैं समझ गया।
अन्य अखबारों ने समझा होगा कि प्रचार के लिए इन्होंने केस कर रखा होगा।उसे क्यों छापना ! ?
उन दिनों जनसत्ता का संस्करण बंबई से भी निकलता था।मैंने सोचा कि अखबार के लिए भी अच्छा रहेगा।
फिर भी मैंने बुजुर्ग धर्मदेव जी के सामने एक शत्र्त रखी,‘
‘मैं छापूंगा जरूर ,पर इसी शत्र्त पर कि इस केस में जब भी अदालत में कोई खास बात होगी,उसकी सूचना आप सिर्फ मुझे देंगे।’
वे तुरंत मान गए।
बिहार सरकार के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड मेंं कार्यरत धर्म देव जी ने एक उपन्यास लिखा था।वे एक बार बंबई में देवानंद से मिले थे और अपना उपन्यास उन्हें दिया था। आग्रह किया कि इस पर आप फिल्म बनाएं।
याद रहे कि तब तक मुम्बई का नाम बंबई ही था।
नब्बे के दशक में नाम बदला।
देवानंद ने उसे रख लिया और कहा कि देखेंगे।
कई साल बीत गए। ‘अपना’ जी को कोई सूचना नहीं आई।पर जब ‘स्वामी दादा’ फिल्म आई तो धर्मदेव जी ने माना कि उनके ही उपन्यास पर यह फिल्म बन गयी और उनका नाम स्टोरी राइटर के रूप में नहीं दिया गया।
उन्होंने पटना जिला अदालत में देवानंद तथा अन्य संबंधित
व्यक्तियों के खिलाफ केस कर दिया।
पटना कोर्ट से देवानंद को पहले समन गया, फिर वारंट और बाद में गैर जमानती वारंट।
गैर जमानती वारंट की खबर जब जनसत्ता के बंबई संस्करण के पहले पेज पर फोल्ड के ऊपर छपी तो देवानंद जी बंंबई छोड़कर लोनवाला चले गए।
इधर पटना में देवानंद ने एक बड़े वकील को रखा और वे केस लड़ने लगे।
पर जब उन्हें लगा कि इस केस को अदालत में जल्द समाप्त नहीं कराया जा सकता है तो धर्म देव जी से समझौते के लिए कल्पना कात्र्तिक के भाई को पटना भेजा।
जब देवानंद समझौते को मजबूर हुए तो मुझे लगा कि धर्मदेव अपना की बात में दम है। हालांकि मैंने न तो उनका उपन्यास पढ़ा था और न ही ‘स्वामी दादा’ फिल्म देखी थी। मुझे तो सिर्फ इस खबर से मतलब था कि देवानंद जैसी बड़ी हस्ती पर पटना में केस हुआ है।वह भी अपने आप में समाचार का विषय बनता था।
संभवतः पटना के मशहूर पत्रकार भूपंेद्र अबोध के जरिए समझौता हुआ।
अबोध जी को अक्सर बंबई भेज कर मनोहर श्याम जोशी फिल्मी खबरें साप्ताहिक हिन्दुस्तान के लिए लिखवाते थे।
इसलिए फिल्म जगत की बड़ी हस्तियां भी अबोध जी को जानती थीं।बता दें कि दैनिक हिन्दुस्तान,पटना के चर्चित कार्टूनिस्ट पवन, अबोध जी के पुत्र हैं।
खैर समझौते में यह तय हुआ कि धर्मदेव जी, देवानंद के खर्चे पर बंबई में कुछ दिन रह कर कोई नयी कहानी लिखेंगे और उस पर देवानंद फिल्म बनाएंगे।वे वहां रहे भी।
जब धर्म देव जी पटना आते थे तो मुझसे मिलते थे।वे बताते थे कि देवानंद जी कभी -कभी पूछते हैं कि आपके जनसत्ता वाले मित्र का क्या हाल है ? क्यों नहीं पूछते ! जनसत्ता के कारण उन्हें थोड़ी परेशानी तो हो ही गयी थी।
हालांकि मैं बता दूं कि मैं देवानंद का बहुत बड़ा फैन रहा हूं।
देवानंद ने ही धर्मदेव जी को बताया था कि जब -जब वारंट की खबर छपती थी तो मैं लोनावाला चला जाता था।
लगा कि अपना जी का सपना पूरा नहीं हो सका।अन्यथा वे बताते कि मेरी फलां कहानी पर देवानंद जी फिल्म बना रहे हैं।
बाद में मेरा संपर्क धर्म देव जी से टूट गया।
वे पटना के हनुमान नगर पानी टंकी के पास रहते थे।
एक -दो बार मैं उनके घर भी गया था।यदि उनको जानने वाले कोई मित्र हों तो उनके बारे में जरूर बताइए।
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