बिहार जैसे गरीब प्रदेश में बेहतर शिक्षा और अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था की जिम्मेवारी तो शासन को ही उठानी ही पड़ेगी। अन्यथा, बेचारा गरीब कहां जाएगा ?
पर, राज्य में दोनों महकमों की हालत दशकों से बहुत ही खराब है। वैसे फंड की कोई कमी नहीं है। बस उसे लूट से बचा लेने की समस्या है।
मेरी राय रही है कि कम से कम इन विभागों को भ्रष्टाचार की परंपरागत महामारी से मुक्त किया जाना चाहिए। इन विभागों को भ्रष्टाचार के प्रति जीरो सहनशीलता वाले विभाग के रूप में चिन्हित किया जाए।
साथ ही, महत्वपूर्ण पदों पर ऐसे आई.ए.एस. अफसरों को तैनात किया जाए जो आज के जमाने में भी घूस नहीं लेते। वैसे आई.ए.एस. अफसरों में के.के. पाठक और सुभाष शर्मा जैसे अफसर बिहार काडर से हैं। अन्य भी होंगे, पर मैं उन्हें नहीं जानता।
यदि कोई केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर हों तो उन्हें भी बुलाइए। उन्हें पूरी छूट भी दीजिए। गरीब घरों के छात्रों और मरीजों पर अब भी तो विशेष दया कीजिए। मुजफ्फरपुर की महामारी से तो आंखें खुल जानी चाहिए।
पर, राज्य में दोनों महकमों की हालत दशकों से बहुत ही खराब है। वैसे फंड की कोई कमी नहीं है। बस उसे लूट से बचा लेने की समस्या है।
मेरी राय रही है कि कम से कम इन विभागों को भ्रष्टाचार की परंपरागत महामारी से मुक्त किया जाना चाहिए। इन विभागों को भ्रष्टाचार के प्रति जीरो सहनशीलता वाले विभाग के रूप में चिन्हित किया जाए।
साथ ही, महत्वपूर्ण पदों पर ऐसे आई.ए.एस. अफसरों को तैनात किया जाए जो आज के जमाने में भी घूस नहीं लेते। वैसे आई.ए.एस. अफसरों में के.के. पाठक और सुभाष शर्मा जैसे अफसर बिहार काडर से हैं। अन्य भी होंगे, पर मैं उन्हें नहीं जानता।
यदि कोई केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर हों तो उन्हें भी बुलाइए। उन्हें पूरी छूट भी दीजिए। गरीब घरों के छात्रों और मरीजों पर अब भी तो विशेष दया कीजिए। मुजफ्फरपुर की महामारी से तो आंखें खुल जानी चाहिए।
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