बुधवार, 26 जून 2019

इंदिरा गांधी और लालू प्रसाद का फर्क : कम से कम एक मामले में

यह प्रसंग लालू प्रसाद के बचाव के लिए नहीं लिखा जा रहा है। उन्होंने जो कुछ किया है, उसका परिणाम वे भुगत ही रहे हैं। उसमें अदालत के सिवा कोई अन्य उनकी किसी तरह से मदद नहीं कर सकता। पर, लालू प्रसाद की अपने विरोधी के प्रति भी मानवीय सोच का एक प्रसंग यहां प्रस्तुत है।

पहले इंदिरा गांधी के बारे में।

तब देश में आपातकाल था। देश के मशहूर पत्रकार और पत्रकारों के नेता के. विक्रम राव बड़ौदा डायनामाइट षड्यंत्र मुकदमे के सिलसिले में जेल में बंद थे। उनके पिता के. रामाराव नेहरू युग में नेशनल हेराल्ड के संस्थापक संपादक थे। आजादी की लड़ाई में जेल भी गए थे। विक्रम राव की पत्नी डाॅक्टर हैं और वह भारतीय रेल में तब पदस्थापित थीं।

तत्कालीन रेलमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने डा. सुधा का तबादला पाकिस्तान की सीमा पर गुजरात में करवा दिया। बाद में अपनी असहायता प्रदर्शित करते हुए त्रिपाठी जी ने किसी से कहा था कि ऊपर से आदेश था।

इसके  विपरीत लालू प्रसाद ने एक ‘अत्यंत असुविधाजनक’ पत्रकार की शिक्षिका पत्नी का ‘सजा स्वरूप’ पटना से पूर्णिया तबादला करने से साफ मना कर दिया था। चारा घोटाले की खबरों को लेकर उस पत्रकार से खुद लालू तथा अन्य आरोपित अत्यंत नाराज रहते थे।

एक दिन लालू प्रसाद, शिक्षा मंत्री और चारा घाटाले के एक दबंग व चर्चित आरोपी एक साथ बैठे थे। उस चर्चित आरोपी ने शिक्षा मंत्री से उस पत्रकार का नाम लेकर कहा कि उस पत्रकार की पत्नी का पूर्णिया तबादला करवा दो। बीच में टोकते हुए लालू प्रसाद ने कहा कि ‘उसकी पत्नी ने हमारा क्या बिगाड़ा है?’ इस तरह  बात आई -गई हो गई।

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