ली कुआन यू का सुशासन और भारत की अराजकता
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सन 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने
सिंगा पुर के महान नेता ली कुआन यू के बारे में कहा था कि ‘वे एक दूरदर्शी नेता थे और नेताओं में सिंह थे।
ली कुआन का जीवन हर किसी को अमूल्य पाठ की सीख देता है।’
ली कुआन यू 1959 से 1990 तक सिंगा पुर के प्रधान मंत्री थे।
उन्होंने अन्य अच्छाइयों के साथ -साथ सिंगा पुर के लोगों की प्रति व्यक्ति आय को 500 डाॅलर से बढ़ाकर 55 हजार डालर कर दिया था।
पर, इसके लिए उन्हें एकदलीय व्यवस्था लागू करनी पड़ी थी।
एकदलीय व्यवस्था के कारण ही वे देश में अनुशासन ला सके और प्रशासन को ईमानदार बना सके।
पर यदि कोई देश भ्रष्टाचार,जातिवाद, वंश तत्र,माफिया तंत्र, तरह -तरह की अराजकताओं, टुकड़े -टुकड़े गिरोह, जेहादी तत्वों और अन्य भारत विरोधी विदेशी तत्वों की धमा-चैकड़ी से आजिज आ जाए तो इस देश की अधिकतर जनता किसी दिन तानाशाही स्वीकार करने को भी मजबूर हो सकती है।
पर अभी तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही हल खोजने की कोशिश हो रही है।होना भी यही चाहिए।
मजबूरी और आपद् धर्म की बात और है।
2014 में भी कुछ लोग लिखकर और बोल कर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को यह सलाह दे रहे थे कि आप ली कुआन बनिए।
2019 की जीत के बाद भी कुछ लोग लीन कव नाम लेकर ऐसी ही सलाह दे रहे हैं।
साफ बात है कि हल्की तानाशाही लाए बिना क्या कोई वैसी उपलब्धि हासिल कर सकता है जैसी सिंगा पुर में
संभव हुआ ?
यहां तो देश की सुरक्षा के लिए पुलवामा का बदला भी लो तो कई लोग बदनाम करने के लिए कहने लगते हैं कि मोदी अंध राष्ट्रवाद फैला कर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता है।
यदि किसी भ्रष्ट और घोटालेबाज नेता पर भी कानूनी कार्रवाई हो तो कई बेशर्म व स्वार्थी लोग कहने लगते हैं कि राजनितिक बदले की भावना में आकर ऐसा हो रहा है।
यदि किसी माफिया और राक्षस नुमा अपराधी पर कार्रवाई हो तो कई लोग कहने लगते हैं कि वह चूंकि फलां जाति या समुदाय का है , इसीलिए कार्रवाई हो रही है।
यदि भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगाने वाले और उस उद्देश्य से आतंकवादी गतिविधियां चलाने वालों पर कार्रवाई हो तो कुछ लोग कहते हैं कि वाणी की स्वतंत्रता पर हमला हो रहा है और लोकतंत्र खतरे में है।
इसी तरह की और भी बहुत सारी बाते हैं।
हालांकि इसके लिए कोई एक ही दल या जमात दोषी नहीं है।लगभग सभी दल दोहरे मापदंड वाले हैं।
ऐसे में भारत में कोई ली कुआन कैसे बन सकता है ?
यहां तो वैसा ही शासन चल सकता है जिसके तहत 84 प्रतिशत लोग नकली दूध पीने को अभिशप्त हों।
जिस शासन के तहत पालीथिन के खिलाफ कार्रवाई हो तो पूरा मुहल्ला कार्रवाई करने वाले पर टूट पड़े।और शासन पीछे हट जाए।
जबकि पालीथिन इस सृष्टि को एक दिन नष्ट कर देगा।
‘महा मिलावट’ भले राजनीति में पराजित हो जाए,पर खाद्य और भोज्य पदार्थों में बेशुमार मिलावट पर कारगर कार्रवाई करने की औकात आज इस देश की किसी सरकार में नहीं है।
इधर दवाएं सहित मिलावटी चीजें खा -खा कर लोग धीरे -धीरे असमय मृत्यु की ओर बढ ़रहे हैं।
यहां पुलिस थानों की रिश्वतखोरी कोई ईमानदार प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री भी नहीं रोक पाता।लोकल पुलिस के हाथों आम लोग लगातार पीडि़त और अपमानित हो रहे हैं।
दिल्ली में केंद्रीय होम मिनिस्टर की नाक के नीचे थानों में घूस के बिना शायद ही कोई काम होता हो।
बिहार की बात कौन करे ?
यहां जो जितना बड़ा धनपशु, अपराधी और जातिवादी हो उसके राजनीति में उतना ही उपर उठने के चांस हैं।
जनता राजनीति के वंश तंत्र को जरूर ध्वस्त कर रही है,पर राजनीतिक दल उसे किसी न किसी रूप में कायम रखने पर अमादा हैं।
यहां तो भ्रष्टाचार के कारण न तो योेग्य डाॅक्टर पैदा हो रहे हैं और न ही योग्य इंजीनियर।यहां तक कि योग्य शिक्षक भी नहीं। अपवादों की बात और है।
आप तभी तक जंदा हैं ,जब तक आपको मारने में किसी की रूचि नहीं है।
ऐसे में कोई ली कुआन यू कैसे काम कर पाएगा ? कैसे भारतीयों की आय 500 डालर से 55000 डाॅलर हो पाएगी ?
कैसे उन 25 करोड़ लोगों के दिन बहुरेंगे जिन्हें आज भी एक ही शाम खाना नसीब होता है ?
यह सब दिवास्वप्न ही है।
हालांकि सचमुच कोई तानाशाह भी यदि सिंगापुर जैसा कायापलट कर दे तो भारत की आम जनता उसे पसंद करेगी।मजबूरी में ही सही।
यहां एक बार तानाशाह पैदा भी हुई भी तो वह भी अपनी गद्दी बचाने,अपने पुत्र का राज्यारोहन करने और उसके लिए कार का कारखाना खोलवाने के लिए ही यानी उसे ‘भारतीय फोर्ड’ बनाने के लिए।
ऐसे में हल्की तानाशाही के नाम पर भी लोगों को अभी तो नफरत है।पर यह नफरत कब तक रहेगी ?
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सन 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने
सिंगा पुर के महान नेता ली कुआन यू के बारे में कहा था कि ‘वे एक दूरदर्शी नेता थे और नेताओं में सिंह थे।
ली कुआन का जीवन हर किसी को अमूल्य पाठ की सीख देता है।’
ली कुआन यू 1959 से 1990 तक सिंगा पुर के प्रधान मंत्री थे।
उन्होंने अन्य अच्छाइयों के साथ -साथ सिंगा पुर के लोगों की प्रति व्यक्ति आय को 500 डाॅलर से बढ़ाकर 55 हजार डालर कर दिया था।
पर, इसके लिए उन्हें एकदलीय व्यवस्था लागू करनी पड़ी थी।
एकदलीय व्यवस्था के कारण ही वे देश में अनुशासन ला सके और प्रशासन को ईमानदार बना सके।
पर यदि कोई देश भ्रष्टाचार,जातिवाद, वंश तत्र,माफिया तंत्र, तरह -तरह की अराजकताओं, टुकड़े -टुकड़े गिरोह, जेहादी तत्वों और अन्य भारत विरोधी विदेशी तत्वों की धमा-चैकड़ी से आजिज आ जाए तो इस देश की अधिकतर जनता किसी दिन तानाशाही स्वीकार करने को भी मजबूर हो सकती है।
पर अभी तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही हल खोजने की कोशिश हो रही है।होना भी यही चाहिए।
मजबूरी और आपद् धर्म की बात और है।
2014 में भी कुछ लोग लिखकर और बोल कर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को यह सलाह दे रहे थे कि आप ली कुआन बनिए।
2019 की जीत के बाद भी कुछ लोग लीन कव नाम लेकर ऐसी ही सलाह दे रहे हैं।
साफ बात है कि हल्की तानाशाही लाए बिना क्या कोई वैसी उपलब्धि हासिल कर सकता है जैसी सिंगा पुर में
संभव हुआ ?
यहां तो देश की सुरक्षा के लिए पुलवामा का बदला भी लो तो कई लोग बदनाम करने के लिए कहने लगते हैं कि मोदी अंध राष्ट्रवाद फैला कर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता है।
यदि किसी भ्रष्ट और घोटालेबाज नेता पर भी कानूनी कार्रवाई हो तो कई बेशर्म व स्वार्थी लोग कहने लगते हैं कि राजनितिक बदले की भावना में आकर ऐसा हो रहा है।
यदि किसी माफिया और राक्षस नुमा अपराधी पर कार्रवाई हो तो कई लोग कहने लगते हैं कि वह चूंकि फलां जाति या समुदाय का है , इसीलिए कार्रवाई हो रही है।
यदि भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगाने वाले और उस उद्देश्य से आतंकवादी गतिविधियां चलाने वालों पर कार्रवाई हो तो कुछ लोग कहते हैं कि वाणी की स्वतंत्रता पर हमला हो रहा है और लोकतंत्र खतरे में है।
इसी तरह की और भी बहुत सारी बाते हैं।
हालांकि इसके लिए कोई एक ही दल या जमात दोषी नहीं है।लगभग सभी दल दोहरे मापदंड वाले हैं।
ऐसे में भारत में कोई ली कुआन कैसे बन सकता है ?
यहां तो वैसा ही शासन चल सकता है जिसके तहत 84 प्रतिशत लोग नकली दूध पीने को अभिशप्त हों।
जिस शासन के तहत पालीथिन के खिलाफ कार्रवाई हो तो पूरा मुहल्ला कार्रवाई करने वाले पर टूट पड़े।और शासन पीछे हट जाए।
जबकि पालीथिन इस सृष्टि को एक दिन नष्ट कर देगा।
‘महा मिलावट’ भले राजनीति में पराजित हो जाए,पर खाद्य और भोज्य पदार्थों में बेशुमार मिलावट पर कारगर कार्रवाई करने की औकात आज इस देश की किसी सरकार में नहीं है।
इधर दवाएं सहित मिलावटी चीजें खा -खा कर लोग धीरे -धीरे असमय मृत्यु की ओर बढ ़रहे हैं।
यहां पुलिस थानों की रिश्वतखोरी कोई ईमानदार प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री भी नहीं रोक पाता।लोकल पुलिस के हाथों आम लोग लगातार पीडि़त और अपमानित हो रहे हैं।
दिल्ली में केंद्रीय होम मिनिस्टर की नाक के नीचे थानों में घूस के बिना शायद ही कोई काम होता हो।
बिहार की बात कौन करे ?
यहां जो जितना बड़ा धनपशु, अपराधी और जातिवादी हो उसके राजनीति में उतना ही उपर उठने के चांस हैं।
जनता राजनीति के वंश तंत्र को जरूर ध्वस्त कर रही है,पर राजनीतिक दल उसे किसी न किसी रूप में कायम रखने पर अमादा हैं।
यहां तो भ्रष्टाचार के कारण न तो योेग्य डाॅक्टर पैदा हो रहे हैं और न ही योग्य इंजीनियर।यहां तक कि योग्य शिक्षक भी नहीं। अपवादों की बात और है।
आप तभी तक जंदा हैं ,जब तक आपको मारने में किसी की रूचि नहीं है।
ऐसे में कोई ली कुआन यू कैसे काम कर पाएगा ? कैसे भारतीयों की आय 500 डालर से 55000 डाॅलर हो पाएगी ?
कैसे उन 25 करोड़ लोगों के दिन बहुरेंगे जिन्हें आज भी एक ही शाम खाना नसीब होता है ?
यह सब दिवास्वप्न ही है।
हालांकि सचमुच कोई तानाशाह भी यदि सिंगापुर जैसा कायापलट कर दे तो भारत की आम जनता उसे पसंद करेगी।मजबूरी में ही सही।
यहां एक बार तानाशाह पैदा भी हुई भी तो वह भी अपनी गद्दी बचाने,अपने पुत्र का राज्यारोहन करने और उसके लिए कार का कारखाना खोलवाने के लिए ही यानी उसे ‘भारतीय फोर्ड’ बनाने के लिए।
ऐसे में हल्की तानाशाही के नाम पर भी लोगों को अभी तो नफरत है।पर यह नफरत कब तक रहेगी ?
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