महात्मा गांधी ने सरदार पटेल के पक्ष में कांग्रेस में अपार बहुमत रहते हुए भी 1946 में जवाहर लाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनवा दिया था। एक गुजराती के साथ तब अलोकतांत्रिक ढंग से अन्याय हुआ था।
लगता है कि अब दो गुजराती नरेंद्र मोदी और अमित शाह मिलकर नेहरू खानदान से लोकतांत्रिक तरीके से बदला ले रहे हैं।
कांग्रेसमुक्त भारत का नारा देकर सत्ता में आए नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार अगले पांच साल जनहित में ऐसे-ऐसे चैंकाने वाले काम करेगी कि कांग्रेस या किसी अन्य दल के लिए फिर से सत्ता में आने की शायद ही गुंजाइश बचे, ऐसा अनेक लोगों का अब मानना है।
इस देश के जिन नेताओं ने आज तक निजी व्यवसाय मानकर राजनीति व सत्ता को चलाया है, उन्हें राजनीति छोड़कर शायद कोई व्यवसाय ही करना पड़ेगा, ऐसा भी कई लोगों को लगता है। वैसे उनमें से अनेक नेता तो इस बीच जेल में होंगे।
अब 1946 की कहानी नई पीढ़ी के लिए ।
1946 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव होने वाला था। तब प्रदेश कांग्रेस कमेटियां चुनाव करती थीं। देश की कुल 15 में से 12 प्रदेश कांग्रेस कमेटियों ने सरदार के पक्ष में अपनी राय भेजी थी। तीन कमेटियों की कोई राय नहीं थी।
पर गांधी ने सरदार पटेल को दरकिनार करके नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष बनवा दिया। चूंकि कांग्रेस अध्यक्ष को ही प्रधानमंत्री बनना था, इसलिए जवाहरलाल जी प्रधानमंत्री बन गए।
बन गए तो वे आगे का भी इंतजाम कर गए।
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