राष्ट्रीय सहारा के अनुसार, बिहार के डी.जी.पी. गुप्तेश्वर पांडेय रविवार देर शाम पटना के एसएसपी कार्यालय पहुंचे। बढ़ते अपराध पर चिंता प्रकट की। पुलिसकर्मियों से कहा कि ‘सुधर जाइए, वरना कार्रवाई के लिए तैयार रहिए।’
उन्होंने चेताया कि शराब, बालू और भूमि माफिया से साठगांठ रखने वाले पुलिसकर्मियों और पदाधिकारियों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा। डी.जी.पी. बनने के बाद पांडेय जी दूसरी बार एसएसपी आफिस गए थे। शायद इसी काम के लिए उन्हें तीसरी बार भी जाना पड़े!
यह खबर पढ़कर मुझे एक साथ कई घटनाएं याद आ गईं और पुलिसकर्मियों खासकर दारोगा की अपार ताकत भी।
आजादी से पहले की बात है। कहानी मेरे पुश्तैनी गांव के थाने यानी सारण जिले के परसा थाने की है। बचपन में सुना था कि उस थाने के निवासी दुनिया राय ने अपने पुत्र का नाम दारोगा प्रसाद राय रखा। वे चाहते थे कि उनका बेटा बड़ा होकर दारोगा बने। पर, बाद में तो दारोगा बाबू मुख्यमंत्री तक बने।
इस बात का पूरा रहस्य तब पता चला जब अस्सी के दशक में मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद ने सार्वजनिक रूप से कहा कि ‘बिहार में दारोगा राज है।’ जबकि, आजाद जी खुद एक बड़े कड़क नेता थे।
नवभारत टाइम्स के पटना संस्करण के स्थानीय संपादक दीनानाथ मिश्र ने उन्हीं दिनों एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था -‘डीजीपी हारा, दरोगा जीता।’ एक बार बिहार के एक अन्य मुख्यमंत्री ने भी कहा था कि थाने के भ्रष्टाचार को खत्म नहीं किया जा सकता।
सवाल सिर्फ बिहार का ही नहीं है। कई साल पहले केंद्रीय गृह संचिव रहे एक अफसर ने कहा था कि होम मिनिस्टर की इस बात में भी रूचि रहती थी कि दिल्ली के किस पुलिस थाने में किसे एस.एच.ओ बनाया जाए।
सड़कों पर भारी अतिक्रमण से संबंधित जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कई महीने पहले पटना हाईकोर्ट ने जक्कनपुर के थाना प्रभारी से पूछा था कि अतिक्रमण करवाने से आपको कितनी ऊपरी आय हो जाती है ? हाईकोर्ट की उक्त टिप्पणी के बावजूद आज पटना में अतिक्रमण का हाल जस का तस है। बल्कि बढ़ ही रहा है।
डी.जी.पी. फटकार ही रहे हैं। मुख्यमंत्री भी समय -समय पर चिंता प्रकट करते ही रहते हैं। फिर आखिर कौन से ‘अदृश्य निर्मल बाबा’ हैं जो थानेदारों पर लगतार कृपा पर कृपा बरसाते जा रहे हैं ?!
एक और कहानी सारण जिले की ही। डा.राजेंद्र प्रसाद जब राष्ट्रपति बने तो उनके गांव की एक महिला से किसी ने कहा था कि वे बहुत बड़े आदमी बन गए हैं। इस पर उस महिला ने भोजपुरी में सवाल किया कि ‘का दारोगा बन गईल बाड़ें ?’
जून 2019
उन्होंने चेताया कि शराब, बालू और भूमि माफिया से साठगांठ रखने वाले पुलिसकर्मियों और पदाधिकारियों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा। डी.जी.पी. बनने के बाद पांडेय जी दूसरी बार एसएसपी आफिस गए थे। शायद इसी काम के लिए उन्हें तीसरी बार भी जाना पड़े!
यह खबर पढ़कर मुझे एक साथ कई घटनाएं याद आ गईं और पुलिसकर्मियों खासकर दारोगा की अपार ताकत भी।
आजादी से पहले की बात है। कहानी मेरे पुश्तैनी गांव के थाने यानी सारण जिले के परसा थाने की है। बचपन में सुना था कि उस थाने के निवासी दुनिया राय ने अपने पुत्र का नाम दारोगा प्रसाद राय रखा। वे चाहते थे कि उनका बेटा बड़ा होकर दारोगा बने। पर, बाद में तो दारोगा बाबू मुख्यमंत्री तक बने।
इस बात का पूरा रहस्य तब पता चला जब अस्सी के दशक में मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद ने सार्वजनिक रूप से कहा कि ‘बिहार में दारोगा राज है।’ जबकि, आजाद जी खुद एक बड़े कड़क नेता थे।
नवभारत टाइम्स के पटना संस्करण के स्थानीय संपादक दीनानाथ मिश्र ने उन्हीं दिनों एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था -‘डीजीपी हारा, दरोगा जीता।’ एक बार बिहार के एक अन्य मुख्यमंत्री ने भी कहा था कि थाने के भ्रष्टाचार को खत्म नहीं किया जा सकता।
सवाल सिर्फ बिहार का ही नहीं है। कई साल पहले केंद्रीय गृह संचिव रहे एक अफसर ने कहा था कि होम मिनिस्टर की इस बात में भी रूचि रहती थी कि दिल्ली के किस पुलिस थाने में किसे एस.एच.ओ बनाया जाए।
सड़कों पर भारी अतिक्रमण से संबंधित जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कई महीने पहले पटना हाईकोर्ट ने जक्कनपुर के थाना प्रभारी से पूछा था कि अतिक्रमण करवाने से आपको कितनी ऊपरी आय हो जाती है ? हाईकोर्ट की उक्त टिप्पणी के बावजूद आज पटना में अतिक्रमण का हाल जस का तस है। बल्कि बढ़ ही रहा है।
डी.जी.पी. फटकार ही रहे हैं। मुख्यमंत्री भी समय -समय पर चिंता प्रकट करते ही रहते हैं। फिर आखिर कौन से ‘अदृश्य निर्मल बाबा’ हैं जो थानेदारों पर लगतार कृपा पर कृपा बरसाते जा रहे हैं ?!
एक और कहानी सारण जिले की ही। डा.राजेंद्र प्रसाद जब राष्ट्रपति बने तो उनके गांव की एक महिला से किसी ने कहा था कि वे बहुत बड़े आदमी बन गए हैं। इस पर उस महिला ने भोजपुरी में सवाल किया कि ‘का दारोगा बन गईल बाड़ें ?’
जून 2019
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