शुक्रवार, 7 जून 2019

जिस पर आप भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा सकते, उसे जातिवादी कह देना आसान

मैं कभी आर.के. सिंह से मिला नहीं। मिलने की न कोई इच्छा है और न कोई प्रयोजन। पर उनके बारे में अपने अनुभव आपसे शेयर कर रहा हूं।

जब वे बिहार में पथ निर्माण विभाग के सचिव थे तो कुछ राजपूत ठेकेदार मुझसे मिले। उन्होंने कहा कि आप का लिखा नीतीश जी पढ़ते हैं। आप आर.के. सिंह के खिलाफ लिखें। वह अपनी छवि चमकाने के लिए चुन -चुनकर राजपूत ठेकेदारों को ब्लैकलिस्ट कर रहा है।

मैंने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता। इस पर मैंने अपना अनुभव सुनाया। 

अस्सी के दशक की बात है। आर.के. पटना के डी.एम. थे। प्राथमिक शिक्षकों की जिला स्थापना समिति के डी.एम. ही अध्यक्ष होते हैं। मैं तब लोहिया नगर में रहता था। वहां के मेरे एक मित्र इन्दु जी मेरे यहां अक्सर आते थे।

मेरी पत्नी शिक्षिका रही हैं। उन्हें वेतन कम था। रोज बहादुरपुर रिक्शा से जाना पड़ता था। वेतन का बड़ा हिस्सा उसी में खर्च हो जाता था। मैंने तो निकट के स्कूल में बदली के लिए किसी से कहा नहीं, पर इन्दु जी ने खुद ही कहा कि आर.के. मेरे परिचित हैं। उनसे मैं कहूंगा।

मैंने इन्दु को मना नहीं किया क्योंकि मेरी पत्नी सुन रही थी। इन्दु आर.के. से मिले। कहा कि जनसत्ता के सुरेंद्र किशोर को जानते हैं न ! हमी लोगों का जात भाई है। उसकी पत्नी को बड़ा कष्ट है। निकट के स्कूल में बदली का सरकारी नियम भी है। निकट में कई स्कूल भी हैं। बदली कर दीजिए। आर.के. ने कहा कि पटना से पटना में मैं बदली नहीं करता।

इस कहानी पर भी ठेकेदार लोग नहीं माने। बोले कि इसीलिए तो कह रहा हूं कि वह कुलद्रोही है। इस पर मैंने कहा कि मैं लिखूंगा, पर मेरी एक शर्त है, आर.के. ने अपने कार्यकाल में जितने ठेकेदारों को ब्लैक लिस्ट किया है, उसकी सूची आर.टी.आई. के जरिए मांगिए। उसे देखकर मुझे यदि लगेगा कि किसी के साथ अन्याय हो रहा है तो मैं जरूर लिखूंगा।

पर बाद में वे ठेकेदार मेरे पास नहीं आए।

अरविंद जी, वे ठेकेदार तो नहीं लौटे, पर यह काम अब भी आप कर सकते हैं। यदि आपका आरोप उससे साबित हो जाएगा तो मैं आर.के. के खिलाफ आज भी लिखूंगा। दरअसल हमारे यहां एक चलन है। जिस पर आप भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा सकते, उसे जातिवादी कह देना आसान होता है।

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