पटना के बकरी बाजार-कबाड़ी बाजार में स्मार्ट सिटी के तहत स्मार्ट मार्केट बनाने का प्रस्ताव है। जीपीओ गोलंबर के पास के इस लंबे- चौड़े भूखंड से अतिक्रमण हटाने के बाद घेराबंदी कर इसे स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए चुनी गई एजेंसी को सौंप दिया जाएगा। वहां स्मार्ट संरचना के निर्माण की योजना है। उस स्थल से विस्थापित लोगों को भी वहां जगह देने का प्रस्ताव है।
स्मार्ट सिटी तो बसेगा, पर क्या उसमें स्मार्ट जनसुविधाएं भी उपलब्ध हो सकेंगी ? नगरों के मार्केट में आज सबसे बड़ी समस्या शौचालय और पार्किंग की रही है। यदि किसी मार्केट में सुविधा है भी तो अपर्याप्त। शौचालय है भी उसकी नियमित सफाई की व्यवस्था नहीं। इसलिए इस्तेमाल के लायक नहीं।
बिलकुल नए मार्केट प्लेस में इन दो सुविधाओं की नए ढंग से व्यवस्था की जा सकती है। वह अन्य के लिए नमूना बनेगा। यथा, स्मार्ट सिटी में शौचालय की साफ -सफाई करते रहने की चौबीस घंटे व्यवस्था हो। उसका खर्च उठाने के लिए मार्केट के व्यवसायियों से कुछ अलग से शुल्क लिया जा सकता है।
जिस मार्केट में पार्किंग और शौचालयों की बेहतर व्यवस्था होगी, वहां अपेक्षाकृत अधिक ग्राहक जाएंगे। बाजारों में शौचालयों को लेकर सर्वाधिक परेशानी महिलाओं को होती है। वैसे आम तौर अधिक खरीदारी महिलाएं ही तो करती हैं।
बलि के बकरे की तलाश
हाल में कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर गुस्सा उतारते हुए कहा कि मैं उन कार्यकर्ताओं के नाम का पता लगाउंगी जिन्होंने दल के लिए काम नहीं किया। कमोवेश अन्य दलों का भी यही हाल है।
200 करोड़ पेड़ लगाने की योजना
यह सराहनीय काम है। पर, क्या पीपल और नीम लगाने की भी कोई योजना है ? जानकार लोगों के अनुसार यदि हर पांच सौ मीटर पर पीपल का एक पेड़ लगे तो ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं रहेगी। यानी उससे पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में काफी मदद मिलेगी।
नीम भी इस मामले में बहुत ही लाभदायक होता है। पर यह देखा जाता है कि इन उपयोगी पेड़ों की जगह सरकार सजावटी-दिखावर्टी पेड़ लगाने में अधिक रुचि रखती है। उम्मीद है कि गडकरी साहब इस स्थिति को बदलेंगे।
सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणियां
केरल के मुख्यमंत्री के खिलाफ सोशल मीडिया पर लिखने वाले 119 लोगों के खिलाफ मुकदमे किए गए हैं। मुख्यमंत्रियों के पास तो साधन होते हैं। वे आसानी से केस कर या करवा सकते हैं। पर उन लोगों का क्या जिन्होंने पिछले चुनाव -प्रचार के दौरान सोशल मीडिया पर खूब गालियां सुनी हैं। पर वे कुछ कर नहीं सके। वे सोशल मीडिया पर अपने विचार प्रकट कर रहे थे। वे अपने विचारों के लिए अपमानित हुए ।
अपमानित होने वालों में दोनों पक्षों के लोग शामिल हैं। जिन्होंने नरेंद्र मोदी का पक्ष लिया, उन्हें मोदी विरोधियों की गालियों का सामना करना पड़ा। जिन लोगों ने मोदी विरोधियों के पक्ष में लेखन किया, वे मोदी के पक्षधरों के शिकार हुए।
कुछ लोग बारी -बारी से दोनों पक्षों के निशाने पर थे। कई लोगों के विरोध में भी शालीनता देखी गई, पर अन्य अनेक लोगों ने भारी अशिष्टता और घटियापन दिखाए। अब सामान्य लोग तो केस कर नहीं सकते।
पर एक सवाल जरूर पैदा हो गया है। अपने विचारों के लिए किसी का इतना अपमान क्यों ? सोशल मीडिया के अराजक तत्वों से अपमानित होने से लोगों को कैसे बचाया जाए ? यह स्वाभाविक ही है कि निजी स्वार्थ के वशीभूत होकर कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर किसी खास पक्ष का प्रचार कर रहा हो।
उसे भी आप शालीन भाषा में तार्किक जवाब दे सकते हैं। यदि आप इसके बदले अपमानित करते हैं तो आपके पास तर्कों की भारी कमी है।
और अंत में
भाजपा हाईकमान कभी -कभी इस बात से परेशान हो उठता है कि उसके कुछ बड़े नेता दलीय लाइन से उपर उठकर ‘राष्ट्र के नाम संदेश’ देने लगते हैं।
पर कुछ अन्य दलों की कुछ दूसरी ही समस्या है। उनके अधिकृत प्रवक्ता भी ऐसे -ऐसे बयान देने लगते हैं जो उनके दल या सुप्रीमो के विचार और राजनीतिक लाइन से तनिक मेल ही नहीं खाते।
(14 जून, 2019 के -प्रभात खबर-बिहार- में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से )
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