भ्रष्टाचार में किसका कितना योगदान ?
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विवेक रंजन अग्निहोत्री के अनुसार,
‘मुझे बताया गया है कि आजादी के बाद से एक भी सरकारी कर्मचारी को लापारवाही और अपने कत्र्तव्यों का पालन नहीं करने के लिए दंडित या बर्खास्त नहीं किया गया है।
सरकार को एक ऐसे तंत्र का निर्माण करना चाहिए जिससे सरकारी कर्मचारियों की उत्पादकता मापी जा सके।
इसके साथ ही फिसड्डी कर्मचारियों को पदमुक्त किया जाना चाहिए।’
विवेक रंजन ने बहुत अच्छी बात लिखी है।
पर, सवाल यह है कि ऐसे नाकाबिल कर्मचारियों को बचाने और संरक्षण देने में राजनीतिक कार्यपालिका का कितना बड़ा योगदान रहता है,इसका भी पता लगाया जाना चाहिए।
साथ ही, उनके लिए भी किसी न किसी दंड का प्रावधान होना चाहिए।
आचार्य विनोबा भावे कहा करते थे कि ‘यदि आपका रसोइया सौ रोटियों में से 67 रोटियां जला दे तो क्या आप कल से उसे अपना रसेसिया रखिएगा ?
नहीं।’
इस बात की भी जांच नहीं हुई कि सौ पैसे को घिस कर 15 पैसे कर देने में किनका कितना योगदान रहा ?
सरकारी कर्मचारियों का कितना ?
बिचैलियों का कितना ?
साथ ही,उन्हें संरक्षण देने वालों का कितना ?
सजा जब तक उसी अनुपात में नहीं मिलेगी, तब तक सरकारी खजाने की लूट जारी रहेगी।
याद रहे कि 1985 में राजीव गांधी ने कहा था कि हम दिल्ली से सौ पैसे भेजते हैं ,पर उसमें से 15 पैसे ही जनता तक पहुंच पाते हैं।
मौजूदा सरकार कहती है कि आज वह स्थिति नहीं है।
हां, भले ठीक वही स्थिति नहीं है।
पर स्थिति कितनी बदली है ?
इसकी भी खुफिया जांच मौजूदा सरकार को करानी चाहिए।
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विवेक रंजन अग्निहोत्री के अनुसार,
‘मुझे बताया गया है कि आजादी के बाद से एक भी सरकारी कर्मचारी को लापारवाही और अपने कत्र्तव्यों का पालन नहीं करने के लिए दंडित या बर्खास्त नहीं किया गया है।
सरकार को एक ऐसे तंत्र का निर्माण करना चाहिए जिससे सरकारी कर्मचारियों की उत्पादकता मापी जा सके।
इसके साथ ही फिसड्डी कर्मचारियों को पदमुक्त किया जाना चाहिए।’
विवेक रंजन ने बहुत अच्छी बात लिखी है।
पर, सवाल यह है कि ऐसे नाकाबिल कर्मचारियों को बचाने और संरक्षण देने में राजनीतिक कार्यपालिका का कितना बड़ा योगदान रहता है,इसका भी पता लगाया जाना चाहिए।
साथ ही, उनके लिए भी किसी न किसी दंड का प्रावधान होना चाहिए।
आचार्य विनोबा भावे कहा करते थे कि ‘यदि आपका रसोइया सौ रोटियों में से 67 रोटियां जला दे तो क्या आप कल से उसे अपना रसेसिया रखिएगा ?
नहीं।’
इस बात की भी जांच नहीं हुई कि सौ पैसे को घिस कर 15 पैसे कर देने में किनका कितना योगदान रहा ?
सरकारी कर्मचारियों का कितना ?
बिचैलियों का कितना ?
साथ ही,उन्हें संरक्षण देने वालों का कितना ?
सजा जब तक उसी अनुपात में नहीं मिलेगी, तब तक सरकारी खजाने की लूट जारी रहेगी।
याद रहे कि 1985 में राजीव गांधी ने कहा था कि हम दिल्ली से सौ पैसे भेजते हैं ,पर उसमें से 15 पैसे ही जनता तक पहुंच पाते हैं।
मौजूदा सरकार कहती है कि आज वह स्थिति नहीं है।
हां, भले ठीक वही स्थिति नहीं है।
पर स्थिति कितनी बदली है ?
इसकी भी खुफिया जांच मौजूदा सरकार को करानी चाहिए।
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