‘‘....... अर्नब --गोस्वामी--के खिलाफ जो डेढ़-दो सौ एफआइआर दर्ज हुई हैं, वे इसीलिए दर्ज हुईं कि सोनिया जी का नाम लेने की हिम्मत की। जो सोनिया जी का नाम लेगा उसकी हिम्मत तोड़ना और सबक सिखना जरूरी है। वास्तव में दरबारी कांग्रेसियों की आंखें सोनिया जी की विराटता देखने की इतनी आदी हो चुकी हैं कि कि उन्हें सूक्ष्म दिखता ही नहीं। उन्हें सोनिया के जन्म के देश और शादी के पूर्व का नाम लेना नाकाबिले बर्दाश्त लगता है।
अर्नब ने वह किया जो पहले किसी ने नहीं किया। उन्होंने इस तिलिस्म को तोड़ दिया कि ‘परिवार’ के बारे में कोई कुछ व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं कर सकता। आप इस देश के प्रधानमंत्री को गाली दीजिए। संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के बारे में कुछ भी बोलिए, वह सब संविधान में मिली वाणी की स्वतंत्रता के दायरे में आता है।
आप चाहें तो इस देश के खिलाफ भी बोल सकते हैं। इसे आपका मौलिक अधिकार माना जाएगा,जिसे कोई छीन नहीं सकता। पर कांग्रेस की नजर में भारतीय संविधान का एक अलिखित अनुच्छेद है जो लिखे हुए संविधान से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है और वह यह कि ‘परिवार’ संवैधानिक व्यवस्थाओं और कानून से ऊपर है।
आज जिस तरह की पत्रकारिता और खास कर टीवी पत्रकारिता हो रही है उसमें कोई यह दावा नहीं कर सकता कि उसकी कमीज दूसरे से ज्यादा सफेद है। कोई लुटियन मीडिया की बात करता है तो कोई गोदी मीडिया की। अपना -अपना एजेंडा बेचने का समय है।
पत्रकारिता का प्रमाणपत्र बांटने का धंधा तेजी पर है। क्षण भर में घोषणा हो जाती है कि फलां पत्रकार को तो मैं पत्रकार मानता ही नहीं। समर्थन -विरोध की एक मुहिम चल पड़ती है। मुहिम चलाने वाले कभी अपने गिरेबां में नहीं झांकते।...........।’’
.....................................
आज के दैनिक जागरण में प्रकाशित वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह के लेख का एक अंश।
30 अप्रैल 2020
अर्नब ने वह किया जो पहले किसी ने नहीं किया। उन्होंने इस तिलिस्म को तोड़ दिया कि ‘परिवार’ के बारे में कोई कुछ व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं कर सकता। आप इस देश के प्रधानमंत्री को गाली दीजिए। संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के बारे में कुछ भी बोलिए, वह सब संविधान में मिली वाणी की स्वतंत्रता के दायरे में आता है।
आप चाहें तो इस देश के खिलाफ भी बोल सकते हैं। इसे आपका मौलिक अधिकार माना जाएगा,जिसे कोई छीन नहीं सकता। पर कांग्रेस की नजर में भारतीय संविधान का एक अलिखित अनुच्छेद है जो लिखे हुए संविधान से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है और वह यह कि ‘परिवार’ संवैधानिक व्यवस्थाओं और कानून से ऊपर है।
आज जिस तरह की पत्रकारिता और खास कर टीवी पत्रकारिता हो रही है उसमें कोई यह दावा नहीं कर सकता कि उसकी कमीज दूसरे से ज्यादा सफेद है। कोई लुटियन मीडिया की बात करता है तो कोई गोदी मीडिया की। अपना -अपना एजेंडा बेचने का समय है।
पत्रकारिता का प्रमाणपत्र बांटने का धंधा तेजी पर है। क्षण भर में घोषणा हो जाती है कि फलां पत्रकार को तो मैं पत्रकार मानता ही नहीं। समर्थन -विरोध की एक मुहिम चल पड़ती है। मुहिम चलाने वाले कभी अपने गिरेबां में नहीं झांकते।...........।’’
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आज के दैनिक जागरण में प्रकाशित वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह के लेख का एक अंश।
30 अप्रैल 2020
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