शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

 फ्रांसीसी यात्री बरनियर ने सन 1700 में लिखा था कि 
‘यह हिन्दोस्तान एक ऐसा अथाह गड्ढा है,जिसमें संसार का अधिकाशं सोना और चांदी चारों तरफ से,अनेक रास्तों से आ -आकर जमा होता है और जिससे बाहर निकलने का उसे एक भी रास्ता नहीं मिलता।’
  याद रहे कि सन 1000 में विश्व के जी.डी.पी.में भारत का योगदान करीब 29 प्रतिशत था।
 यह प्रतिशत 1600 में घटकर 22  हो गया।
1820 में 16 प्रतिशत और 1950 में 4 दशमलव 2 प्रतिशत रहा।सन 1979 में तीन प्रतिशत और 2015 में सात प्रतिशत रहा।
‘डेक्कन हेराल्ड’ के अनुसार 2017 में यह प्रतिशत बढ़कर 17 हो गया है।
पर उससे पहले सन 1900 में ब्रिटिश लेखक विलियम डिगबी ने लिखा था कि ‘बीसवीं सदी के शुरू में करीब दस करोड़ मनुष्य ब्रिटिश भारत में ऐसे हैं ,जिन्हें किसी समय भी पेट भर अन्न नहीं मिल सकता....।इस अधःपतन की दूसरी मिसाल इस समय किसी सभ्य और उन्नतिशील देश में कहीं पर भी दिखाई नहीं दे सकती।’
  याद रहे कि विश्व बैंक की 2016 की रपट के अनुसार भारत में 24 करोड़ 40 लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं।
जिनकी आय प्रतिदिन 1.90 डाॅलर से कम है,वे गरीबी रेखा से नीचे हैं।
अब यह ध्यान देने की बात है कि हमारे देश के जो हुक्मरान जो खुद को जनता का सेवक बताते  हैं,वे खुद पर कितना सरकारी धन रोज व्यय करते हैं ?
हुक्मरानों में सिर्फ नेता नहीं हैं।बल्कि उन्हें आप प्रभु वर्ग कहिए। उनमें कई क्षेत्रों के लोग शामिल हैं।हालांकि नेताओं, खास कर सत्ताधारी नेताओं की जिम्मेदारी अधिक है।उन 24.40 करोड़ लोगों के लिए वे कितना सोचते हैं ?कितना करते हैं ?
  

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