सोमवार, 9 अप्रैल 2018


1977 के चुनाव की निष्पक्षता  को लेकर जेपी भी थे आशंकित -- सुरेंद्र किशोर 
जनवरी, 1977 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने लोक सभा चुनाव की घोषणा कर दी ।उन्होंने कहा कि  मार्च में चुनाव होंगे ।
चूंकि उन्होंने इमरजेंसी को पूरी तरह समाप्त किए बिना  ऐसा किया था,इसलिए  
 प्रतिपक्षी दल  थोड़ी देर के लिए हतप्रभ हो गये थे।
क्योंकि प्रतिपक्ष चुनाव की निष्पक्षता को लेकर सशंकित था।
इमर्जेंसी की ज्यादतियों और धांधलियों के कारण सरकार पर प्रतिपक्ष का विश्वास नहीं था।
  जय प्रकाश नारायण से लेकर जार्ज फर्नांडिस तक 
ने आशंकाएं जाहिर की थी।जेपी के साथ मैंने जार्ज की चर्चा यहां इसलिए की क्योंकि जार्ज गैर अहिंसक तरीके से इमरजेंसी का विरोध कर रहे थे।
 गैर अहिंसक इसलिए  कि उनके भूमिगत अभियान में भी किसी की जान लेने की योजना नहीं थी।
 आपातकाल में तरह -तरह की सरकारी जोर जबर्दस्ती के कारण प्रतिपक्ष की आंशंकाएं निराधार नहीं थी।
बड़ौदा डायनामाइट षड्यंत्र मुकदमे के सिलसिले में देश द्रोह के आरोप में जेल में बंद जार्ज फर्नांडिस ने तो चुनाव के बहिष्कार के पक्ष में ही अपनी राय दे दी थी।हालांकि जनता पार्टी कौन कहे सोशलिस्ट घटक के भी अन्य नेता  जार्ज से असहमत थे।
बाद में जनता पार्टी ने जार्ज को मुजफ्फर पुर से उम्मीदवार बनाया और वे भी भारी मतों से जीते।
चुनाव की घोषणा के बाद प्रेस सेंसरशीप में ढिलाई जरूर दे दी गयी थी।
राजनीतिक बंदियों की रिहाई शुरू हो गयी थी।पर रिहाई की रफ्तार काफी धीमी थी।याद रहे कि 25 जून 1975 की रात में जब आपातकाल की घोषणा हुई तो उसके साथ देश भर के करीब सवा लाख राजनीतिक कवर्यकत्र्ताओं-नेताओं तथा कुछ अन्य लोगों को किसी सुनवाई के बिना जेलों में ठूंस दिया गया था।कुछ पत्रकार भी बंदी बना लिए गए थे।
लोगों के मौलिक अधिकार कौन कहे,जीने का अधिकार भी छीन लिया गया था।
यानी प्रतिपक्षी दलों के पास  चुनावी  तैयारी के लिए समय बहुत कम था।पर जब चुनाव प्रचार शुरू हुआ तो जनता पार्टी के पक्ष में भारी जन समर्थन की खबरें सुदूर जगहों से आने लगीं।
 उससे पहले चुनाव की घोषणा के तत्काल बाद जय प्रकाश नारायण ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि 
‘सरकार सोचती है कि उसे चुनाव में बहुमत मिलेगा।
क्योंकि विरोधी दलों को चुनाव की तैयारी करने के लिए कोई समय नहीं दिया गया है। 
सत्तारूढ़ दल ने आपात स्थिति को पूर्ण रूप से समाप्त न करने और हजारों बंदियों को न छोड़ने 
से अपना इरादा स्पष्ट कर दिया है।
इसलिए यदि कांग्रेस जीत जाती है तो आगे क्या होगा, यह बात भी लोगों के सामने स्पष्ट हो जानी चाहिए।’
साथ ही मीडिया से बातचीत में तब के आंदोलन के शीर्ष नेता जेपी ने हालांकि यह
भी कहा कि ‘ लोगों को इतनी आसानी से धोखा नहीं दिया जा सकता है।उन्होंने कठिन रास्ते से यह सीख लिया है कि केवल प्रजातांत्रिक तरीके से ही गरीब लोगों के अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं।अधिकारों के दुरूपयोग से लोगों के मन में विरोध की भावना पैदा हो गयी है।इसी कारण उनकी सहानुभूति विरोधी दलों के साथ है।’
जेपी का यह अनुमान बाद में सही निकला था।
यानी  1977 के चुनाव  नतीजे ने इसे सही साबित कर दिया था।हालांकि उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत में कांग्रेस को काफी अधिक सीटें मिली थीं।
  उधर चुनाव की घोषणा कर देने के तुरंत बाद इंदिरा गांधी ने रिक्त स्थानों को देखते हुए कांग्रेस संसदीय बोर्ड को पुनर्गठित किया।राज्यों को निदेश दिया कि वे उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश भेजें।
 प्रधान मंत्री की पहली चुनावी सभा कान पुर में हुई।बहुत बड़ी भीड़ थी।
 इंदिरा गांधी ने वहां लोगों से अपील की कि ‘मुझे उम्मीद है कि आप लोकतांत्रिक प्रक्रिया और संगठनों को नष्ट करने वाली शक्तियों को प्रोत्साहित नहीं करेंगे।
क्योंकि ये शक्तियां आपकी कठिनाइयां बढ़ाएंगी।
प्रगति बाधित  करेंगी।’
उनका इशारा जेपी और नव गठित जनता पार्टी की ओर था।
 इस बीच चार गैर कांग्रेसी दलों यथा जनसंघ, संगठन कांग्रेस, सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय लोक दल ने मिल कर जनता पार्टी बना ली थी।
उससे पहले इन दलों के विलयन में  जब कुछ नेताओं ने अड़चन डालने की कोशिश की तो जेपी ने उन्हें चेताया कि यदि आप ऐसा करेंगे तो हम अलग दल बना लेंगे।
 फिर तो वे लाइन पर आ गए।
जनता पार्टी के अध्यक्ष मोरारजी देसाई और उपाध्यक्ष चरण सिंह उपाध्यक्ष चुने गए।युवा तुर्क चंद्रशेखर का गुट भी जनता पार्टी में शमिल हो गया था।
मेारारजी देसाई ने घोषणा की कि जनता पार्टी अच्छे उम्मीदवार खड़ा करेगी।उसका भरसक पालन हुआ।
जेपी ने लोगों से अपील की थी कि वे जनता पार्टी को उदारतापूर्वक दान दें ताकि चुनाव का खर्च उठाया जा सके।
पर इमरजेंसी से ऊबे अधिकतर मतदाताओं में जनता पार्टी के पक्ष में इतना अधिक उत्साह था कि जनता पार्टी का अधिकतर चुनावी खर्च आम जनता ने ही उठा लिया था।
  उस चुनाव में मुख्य रूप से कांग्रेस के साथ सी.पी.आई.थी तो जनता पार्टी के साथ सी.पी.एम.और अकाली दल।जग जीवन राम के नेतृत्व वाली कांग्रेस फाॅर डेमोक्रेसी ने जनता पार्टी के साथ चुनावी तालमेल किया।
 बिहार में माक्र्सवादी समन्वय समिति के लिए जनता पार्टी ने धनबाद सीट छोड़ दी थी।
 जपा से टिकट न मिलने पर पूर्व रक्षा मंत्री जग जीवन राम ने अपनी समधिन सुमित्रा देवी को विद्रोही उम्मीदवार के रूप  में बिहार के बलिया संसदीय क्षेत्र से खड़ा कर दिया था।
सुमित्रा देवी को मात्र 31 हजार मत आए।वहां भी जपा उम्मीदवार कीजीत हुई थी।सुमित्रा देवी की जमानत जब्त हो गयी।इस नतीजे के साथ ही जगजीवन राम के समर्थकों का यह दावा भी खत्म हो गया कि चुनाव की घोषणा के बाद जग जीवन राम के कांग्रेस छोड़ने के बाद ही जनता पार्टी के
पक्ष में चुनावी हवा बनी।
याद रहे कि 1977 के चुनाव में जनता पार्टी को लोक सभा की 295 और कांग्रेस को 154 सीटें मिलीं।
मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री बने।
सरकार ठीक-ठाक चल रही थी।पर जनता पार्टी के कुछ बड़े नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण मोरारजी सरकार अपना  कार्य काल पूरा नहीं कर सकी।  ़ 
@फस्र्टपोस्ट हिन्दी से साभार @


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