इस साल उत्तर प्रदेश के बोर्ड परीक्षा केंद्रों पर जब सी.सी.टी.वी.कैमरे लगाए गए तो करीब 11 लाख परीक्षाथियों ने परीक्षा छोड़ दी।
यदि कैमरे नहीं होते तो वे परीक्षा में बैठते।पास हो जाते।बाद का कोई शासक माक्र्स के आधार पर उन्हें शिक्षक बहाल कर देता ।फिर वे कैसी शिक्षा देते ?
भर्ती संगठन सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मौखिक इंटरव्यू में अनेक एम.बी.बी.एस.डाक्टर्स तक सामान्य प्रश्नों का भी जवाब नहीं दे पा रहे हैं।
एक्सपर्ट के रूप में बोर्ड में बैठे बुजुर्ग डाक्टर अपना सिर पीट रहे हैं।हालांकि सारे डाक्टर उम्मीदवार अयोग्य नहीं हैं।
पर ,जो अयोग्य हैं,उन्हीं में से भी डाक्टर बहाल होंगे।क्योंकि देश में डाक्टरों की भारी कमी है।यदि इंटरव्यू के समय सी.सी.टी.वी. कैमरे होंगे तो अयोग्य उम्मीदवारों का चयन करने की हिम्मत किसी को नहीं होगी।
सवाल है कि ऐसा क्यों हो रहा है ? मैं किसी खास राज्य या खास मेडिकल काॅलेज का नाम नहीं ले रहा हूं।देश की अधिकतर जगहों में एक ही हाल है।
पता लगाइए कि एम.बी.बी.एस.कक्षाओं में कितने छात्र उपस्थित हो रहे हैं ?वहां कितनी सुविधाएं हैं ?
क्या वहां परीक्षाएं भी कदाचार मुक्त हो रही हैं ?
क्या मेडिकल परीक्षाओं में भी कदाचार सहनीय है ?
देश के गरीब मरीजों को हम कैसे -कैसे डाक्टरों के हवाले सौंप रहे हैं ? आखिर सरकारी अस्पतालों में तो आम तौर पर गरीब मरीज ही तो जाते हैं।
पैसे वालों के लिए तो बड़े -बड़े निजी अस्पताल हैं जहां अपेक्षाकृत बेहतर डाक्टर होते हैं।मैं यह नहीं कह रहा हूं कि सरकारी अस्पतालों में सारे डाक्टर अयोग्य हैं।पर यदि दो -चार भी अयोग्य हैं तो उनके हवाले मरीजों को क्यों किया जाए ?
उसी तरह नियोजित शिक्षकों में सारे अयोग्य नहीं हैं ।पर क्या सभी योग्य हैं ?
जब बहाल हुए थे तो उन्होंने यह शत्र्त नहीं मानी थी कि उनकी बाद में टेस्ट परीक्षा होगी ?
पर बाद मंे उन्होंने टेस्ट परीक्षा के विरोध में पटना में हिंसक प्रदर्शन क्यों किया था ?
उनके प्रदर्शन में बड़े -बड़े शिक्षक नेता भी शामिल थे।आखिर हम देश को कहां ले जा रहे हैं ?
नयी पीढि़यों का हमेें ध्यान क्यों नहीं है ?बेहतर करने की हर कोशिश का विरोध क्यों ? कुछ बातें कटु होती हैं।पर देशहित में आलोचना व अपमान सहने की कीमत पर भी कही जानी चाहिए।
यदि कैमरे नहीं होते तो वे परीक्षा में बैठते।पास हो जाते।बाद का कोई शासक माक्र्स के आधार पर उन्हें शिक्षक बहाल कर देता ।फिर वे कैसी शिक्षा देते ?
भर्ती संगठन सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मौखिक इंटरव्यू में अनेक एम.बी.बी.एस.डाक्टर्स तक सामान्य प्रश्नों का भी जवाब नहीं दे पा रहे हैं।
एक्सपर्ट के रूप में बोर्ड में बैठे बुजुर्ग डाक्टर अपना सिर पीट रहे हैं।हालांकि सारे डाक्टर उम्मीदवार अयोग्य नहीं हैं।
पर ,जो अयोग्य हैं,उन्हीं में से भी डाक्टर बहाल होंगे।क्योंकि देश में डाक्टरों की भारी कमी है।यदि इंटरव्यू के समय सी.सी.टी.वी. कैमरे होंगे तो अयोग्य उम्मीदवारों का चयन करने की हिम्मत किसी को नहीं होगी।
सवाल है कि ऐसा क्यों हो रहा है ? मैं किसी खास राज्य या खास मेडिकल काॅलेज का नाम नहीं ले रहा हूं।देश की अधिकतर जगहों में एक ही हाल है।
पता लगाइए कि एम.बी.बी.एस.कक्षाओं में कितने छात्र उपस्थित हो रहे हैं ?वहां कितनी सुविधाएं हैं ?
क्या वहां परीक्षाएं भी कदाचार मुक्त हो रही हैं ?
क्या मेडिकल परीक्षाओं में भी कदाचार सहनीय है ?
देश के गरीब मरीजों को हम कैसे -कैसे डाक्टरों के हवाले सौंप रहे हैं ? आखिर सरकारी अस्पतालों में तो आम तौर पर गरीब मरीज ही तो जाते हैं।
पैसे वालों के लिए तो बड़े -बड़े निजी अस्पताल हैं जहां अपेक्षाकृत बेहतर डाक्टर होते हैं।मैं यह नहीं कह रहा हूं कि सरकारी अस्पतालों में सारे डाक्टर अयोग्य हैं।पर यदि दो -चार भी अयोग्य हैं तो उनके हवाले मरीजों को क्यों किया जाए ?
उसी तरह नियोजित शिक्षकों में सारे अयोग्य नहीं हैं ।पर क्या सभी योग्य हैं ?
जब बहाल हुए थे तो उन्होंने यह शत्र्त नहीं मानी थी कि उनकी बाद में टेस्ट परीक्षा होगी ?
पर बाद मंे उन्होंने टेस्ट परीक्षा के विरोध में पटना में हिंसक प्रदर्शन क्यों किया था ?
उनके प्रदर्शन में बड़े -बड़े शिक्षक नेता भी शामिल थे।आखिर हम देश को कहां ले जा रहे हैं ?
नयी पीढि़यों का हमेें ध्यान क्यों नहीं है ?बेहतर करने की हर कोशिश का विरोध क्यों ? कुछ बातें कटु होती हैं।पर देशहित में आलोचना व अपमान सहने की कीमत पर भी कही जानी चाहिए।
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