मशहूर पत्रकार एस.निहाल सिंह का गत सोमवार को
89 साल की उम्र में निधन हो गया।
पुरानी कार्य -संस्कृति के संपादकों की विलुप्त होती पीढ़ी की
आखिरी हस्तियों में से वह एक थे।
एस.निहाल सिंह देश के संभवतः एक मात्र
प्रधान संपादक थे जिन्होंने प्रबंधन से मतभेद के कारण बारी-बारी से तीन अखबारों से इस्तीफा दे दिया था।
वे अखबार थे द स्टेट्समैन,इंडियन एक्सप्रेस और इंडियन पोस्ट।
वे संपादकीय विभाग को अखबार की विज्ञापन शाखा से अलग रखते थे।आज के संदर्भ में तो यह असंभव काम माना जाता है।इसे अव्यावहारिक भी बताया जाता है।यह अकारण भी नहीं है।
एस. निहाल सिंह गुरूमुख निहाल सिंह के पुत्र थे जो बारी -बारी से स्पीकर,मुख्य मंत्री और राज्यपाल भी रह चुके थे।
आपातकाल के समय एस.निहाल सिंह स्टेट्समैन के संपादक के थे।
@अप्रैल 2018@
जब सेंसरशिप लगा तो उन्होंने अपने अखबार के प्रथम पेज पर ही लिख दिया कि यह अखबार संेसरशिप के तहत निकला है।
ऐसा लिखना भी तब बड़ी हिम्मत की बात थी।हां,कुछ अखबारों ने विरोधस्वरूप संपादकीय काॅलम खाली जरूर छोड़ दिया था।
आपातकाल में एस.निहाल सिंह विदेशी खबरों को अधिक प्रमुखता देते थे और इस देश की खबरों को पहले पेज के निचले हिस्से में या किसी कोने में संक्षेप में छापते थे।
सरकार के एतराज पर उन्होंने कहा था कि क्या नहीं छापना है,सरकार के इस आदेश का तो हम पालन कर ही रहे हैं।यदि सरकार ऐसा कोई आदेश निकाले कि हमें क्या -क्या छापना है तो हम उसका भी पालन करेंगे।ऐसा आदेश सरकार भला कैसे निकाल सकती थी !
ऐसे रीढ़ वाले संपादक हमेशा याद रहेंगे।
@19 अप्रैल 2018@
89 साल की उम्र में निधन हो गया।
पुरानी कार्य -संस्कृति के संपादकों की विलुप्त होती पीढ़ी की
आखिरी हस्तियों में से वह एक थे।
एस.निहाल सिंह देश के संभवतः एक मात्र
प्रधान संपादक थे जिन्होंने प्रबंधन से मतभेद के कारण बारी-बारी से तीन अखबारों से इस्तीफा दे दिया था।
वे अखबार थे द स्टेट्समैन,इंडियन एक्सप्रेस और इंडियन पोस्ट।
वे संपादकीय विभाग को अखबार की विज्ञापन शाखा से अलग रखते थे।आज के संदर्भ में तो यह असंभव काम माना जाता है।इसे अव्यावहारिक भी बताया जाता है।यह अकारण भी नहीं है।
एस. निहाल सिंह गुरूमुख निहाल सिंह के पुत्र थे जो बारी -बारी से स्पीकर,मुख्य मंत्री और राज्यपाल भी रह चुके थे।
आपातकाल के समय एस.निहाल सिंह स्टेट्समैन के संपादक के थे।
@अप्रैल 2018@
जब सेंसरशिप लगा तो उन्होंने अपने अखबार के प्रथम पेज पर ही लिख दिया कि यह अखबार संेसरशिप के तहत निकला है।
ऐसा लिखना भी तब बड़ी हिम्मत की बात थी।हां,कुछ अखबारों ने विरोधस्वरूप संपादकीय काॅलम खाली जरूर छोड़ दिया था।
आपातकाल में एस.निहाल सिंह विदेशी खबरों को अधिक प्रमुखता देते थे और इस देश की खबरों को पहले पेज के निचले हिस्से में या किसी कोने में संक्षेप में छापते थे।
सरकार के एतराज पर उन्होंने कहा था कि क्या नहीं छापना है,सरकार के इस आदेश का तो हम पालन कर ही रहे हैं।यदि सरकार ऐसा कोई आदेश निकाले कि हमें क्या -क्या छापना है तो हम उसका भी पालन करेंगे।ऐसा आदेश सरकार भला कैसे निकाल सकती थी !
ऐसे रीढ़ वाले संपादक हमेशा याद रहेंगे।
@19 अप्रैल 2018@
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें