बुधवार, 18 अप्रैल 2018

---अपनी स्वतंत्र सोच के कारण ही दोबारा राष्ट्रपति नहीं बन सके थे डा.राधाकृष्णन---


       
सन 1967 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति पद के लिए डा.राधाकृष्णन को चुनाव में उतारने  पर सहमति नहीं दी ।तब  यह कहा गया कि ऐसा राधाकृष्णन की  स्वतंत्र सोच के कारण हुआ।
जबकि, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज ने मजबूती से डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का नाम आगे बढ़ाया था।
याद रहे कि सन् 1964 में लाल बहादुर शास्त्री और सन् 1966 में इंदिरा गांधी को प्रधान मंत्री बनवाने में कामराज की महत्वपूर्ण भूमिका थी।पर उधर इंदिरा गांधी अपनी पसंद के राष्ट्रपति चाहती थीं।याद रहे कि 1967 में डा.जाकिर हुसेन राष्ट्रपति बने थे।
डा.राधाकृष्णन तो जवाहर लाल नेहरू की पसंद रहे थे।
इस तरह डा.राजेंद्र प्रसाद ही एक मात्र व्यक्ति थे जिन्हें 
लगातार बारह साल तक राष्ट्रपति बने रहने का अवसर मिला।
याद रहे कि जवाहर लाल नेहरू 1957 में ही डा.राधाकृष्णन को राष्ट्रपति बनवाना चाहते थे।पर अबुल कलाम आजाद ने डा.राजेंद्र प्रसाद के लिए जिद कर दी और जवाहर लाल जी मान गए। 
 इंदिरा गांधी के प्रधान मंत्री बनने के एक ही साल बाद  राष्ट्रपति पद का चुनाव होना था।तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के.कामराज ने इंदिरा गांधी से यह आग्रह किया था कि वह डा.राधाकृष्णन को दोबारा राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने की मंजूरी दें।कामराज का यह तर्क था कि डा.राजेंद्र प्रसाद को जब यह सुविधा दी गई थी तो राधाकृष्णन को क्यों नहीं।पर इंदिरा गांधी और उनके सलाहकार इस पक्ष में नहीं थे।कामराज को बुरा लगा था कि इंदिरा जी ने उनकी बात नहीं मानी। डा.राधाकृष्णन से इंदिरा जी का  आखिरी साल में संबंध सामान्य नहीं  रहा था। 
  1967 में इस पद को लेकर कांग्रेस के भीतर खींचतान शुरू हो गई थी।शायद कामराज को यह मालूम नहीं था कि इंदिरा गांधी ने जाकिर हुसेन को राष्ट्रपति बनाने का मन बना लिया था।डा.राधाकृष्णन को जब इस बात की भनक मिली तो उन्होंंने  इस दौर से खुद को बाहर कर लिया।  
 राधाकृष्णन उम्र में पंडितजी से एक साल बड़े भी थे।संकट की घड़ी में जवाहर लाल जी राधाकृष्णन से औपचारिक -अनौपचाारिक सलाह-मशविरा भी करते रहते थे।
 ऐसा एक महत्वपूर्ण  अवसर सन 1962 में भी आया  था।तब चीन के हाथों हुए अपमान के कारण प्रधान मंत्री क्षुब्ध थे।राधाकृष्णन की सलाह पर ही नेहरू ने वी.के.कृष्णमेनन को रक्षा मंंत्री पद से हटाया था।राष्ट्रपति ने प्रधान मंत्री से कहा था कि वह दोस्ती के बदले कत्र्तव्य को प्रमुखता दें।खुद प्रधान मंत्री कृष्ण मेनन को हटाने के पक्ष में नहीं थे ।
  सन् 1957 में कांग्रेस केे कई अन्य बड़े नेता भी राजेन्द्र प्रसाद  के पक्ष में थे।इसलिए नेहरू जी ने उनकी बात मान ली।नेहरू जी अपेक्षाकृत अधिक लोकतांत्रिक मिजाज के थे।पर इंदिरा गांधी वैसी नहीं थीं।इंदिरा जी ने भी देखा था कि किस तरह पंडित जी पर भावनात्मक दबाव डालकर राधाकृष्णन ने कृष्ण मेनन को मंत्री पद से हटवा दिया था।इंदिरा गांधी की सहानुभूति भी मेनन के साथ थी।
   जब राजेन बाबू 1957 में दोबारा राष्ट्रपति चुन लिये गये तो राधाकृष्णन ने उप राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे देने का मन बना लिया  था।उन्हें नेहरू जी ने किसी तरह  इस शत्र्त पर मनाया कि उन्हें 1962 में मौका मिलेगा।
  नेहरू ने तो अपनी बात रखी,पर इंदिरा गांधी ने  डा.राधाकृष्णन के बारे में अपने दलीय सहयोगियों की बातों को नजरअंदाज कर दिया। याद रहे कि सन 1966 में राधा कृष्णन ने अपने एक भाषण में कह दिया था कि ‘सरकार अपने अनेक कत्र्तव्यों से विमुख हो रही है।’उन्होंने यह भी कहा था कि ‘समाज रसातल में जा रहा है और राज नेता गण शानो -शौकत में व्यस्त हैं।’
उन दिनों यह आम चर्चा थी कि डा.राधाकृष्णन अपने प्रधान मंत्रियों को बेबाक सलाह दिया करते हैं।उनके कार्यकाल में बारी-बारी से जवाहर लाल नेहरू,लाल बहाुदर शास्त्री और इंदिरा गांधी प्रधान मंत्री रही थीं।
  याद रहे कि डा.राधाकृष्णन को दोबारा राष्ट्रपति बनवाने की कोशिश में के.कामराज की संभवतः यह भी सोच रही होगी कि उत्तर भारत के राजेंद्र बाबू को दोबारा अवसर मिला तो दक्षिण भारत के राधाकृृष्णन ही इस अवसर से वंचित क्यों रहें ?कामराज 1964 से 1967 तक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे।याद रहे कि 1969 में कांग्रेस के महा विभाजन तक कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र जिंदा था।
 डा.राधाकृष्णन ने विवादरहित परिस्थितियों में राष्ट्रपति भवन में प्रवेश किया था।पर 1967 में राजनीतिक कारणों से देश का तब तक का यह सर्वाधिक विवादास्पद पद हो गया।
खुद डा.राधाकृष्णन दोबारा इस पद के लिए चुना जाना चाहते थे या नहीं,यह तो नहीं मालूम ,पर जब उन्होेंने देखा कि इस पद के लिए विवाद हो रहा है तो उन्होंने खुद को इस झमेले से अलग कर लिया।
  डा.राधाकृष्णन 13 मई 1962 से 13 मई 1967 तक राष्ट्रपति रहे।इससे पहले वह उप राष्ट्र्रपति थे।
शिक्षा विद् डा.राधा कृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 और निधन 17 अपै्रल, 1975 को हुआ।
  @--सुरेंद्र किशोर @
@पुण्य तिथि पर@

    

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