मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

डा.भरत झुनझुनवाला ने लिखा है ------ 
‘सन् 1000 के बाद महमूद गजनी ,मुगल एवं ब्रिटिश लोगों ने हम पर धावा बोला और हमें परास्त किया।
विचार योग्य है कि 1000 ई.के आसपास ऐसा क्या हुआ कि 4000 वर्षों से समृद्ध सभ्यता अचानक अधोगामी हो गयी ?
ऐसा प्रतीत होता है कि शंकर के दर्शन के गलत प्रतिपादन के कारण यह हुआ।
शंकर के समय को लेकर विद्वानों में विवाद है।कुछ का मानना है कि वे 800 ई. के आसपास हुए,दूसरे विद्वानों का मानना है कि वे इससे बहुत पहले हुए थे।लेकिन इस विवाद में पड़े बिना कहा जा सकता है कि 800 ई.के आसपास आदि शंकर ने इस धरती पर भ्रमण किया था।
  उपलब्ध विषय के लिए शंकर का मुख्य मंत्र है, ‘ब्रह्म सत्यम् जगत मिथ्या’।
शंकर ने सिखाया कि यह जो संपूर्ण जगत दिख रहा है ,यह एक ही शक्ति के विभिन्न रूपों में प्रस्फुटन है।
मनुष्य स्वयं भी उसी एक ब्रह्म का स्वरूप है।अतः मनुुष्य को चाहिए कि सांसारिक प्रपंचों में लिप्त होने के स्थान पर उस एक ब्रह्म से आत्मसात करे।तब उसे वास्तविक सुख की प्राप्ति होगी।
ब्रह्म से आत्मसात करने पर व्यक्ति ब्रह्म की इच्छानुसार व्यवहार करेगा जैसे ंनौकरी करने पर व्यक्ति मालिक की इच्छानुसार व्यवहार करता है।’............
‘जब देश पर आक्रमण हो रहे थे ,ये अनुयायी कंदराओं में बैठकर ब्रह्म से एका कर रहे थे।..जगत का गरीब मरता है तो मरने दो,इससे विचलित होने की आवश्यकता नहीं है।
इसी कड़ी में आज देश के नेताओं के लिए सिर्फ अपने हित को साधना स्वीकार हो गया है,उन्हें राष्ट्र दिखाई नहीं दे रहा है।’ @30 जुलाई 2013@


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