सोमवार, 23 अप्रैल 2018

कई दशक पहले की बात है।
एक युवा समाजवादी नेता के साथ मैं एक सुबह पटना के र्हािर्डंग पार्क में टहल रहा था।
तब तक हार्डिंग पार्क का नाम वीर कुंवर सिंह पार्क पड़ चुका था।
पार्क के भीतर के एक वृक्ष के मजबूत तने पर टीन की एक पट्टी  ठोकी हुई थी।
उस पर लिखा था ‘वीर कुंवर सिंह पार्क।’
समाजवादी नेता उसे देखते ही आग -बबूला हो गए।‘एक सामंती के नाम पर पार्क का नाम ? मैं यह सब चलने नहीं दूंगा।’ तब तक मैंने भी कतिपय समाजवादियों का असली चेहरा नहीं देखा था,इसलिए मैंने भी उनकी हां में हां मिलाई।
उन्होंने तत्क्षण उस पट्टी को उखाड़ने की कोशिश की।पर उनके मजबूत हाथों से भी वह नहीं उखड़ सकी।
दूसरे दिन उन्होंने  अपने साथ एक लोहे का मोटा छनौटा लाया।उसकी मदद से उसे उखाड़ कर फेंक दिया।
   खैर, समय बीतता गया। नेता जी समाजवाद और कमजोर वर्ग के विकास के नारे लगाते -लगाते बारी -बारी से कई सदनों के सदस्य बने।
पैसे और प्रभाव के बल पर धीरे -धीरे खुद उनमें एक आधुनिक सामंत व व्यापारी उभरने लगा।
काफी पैसे बनाए।कभी साइकिल पर चलने वाले नेता जी ने अपने बाल -बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला कर समाज में अच्छी जगहें दिला दीं।
जिन कमजोर वर्ग की चिंता करते -करते वे आगे बढ़े थे,उन्हें यूं ही छोड़ कर खुद आधुनिक सामंत बन गए।
आज यदि वीर कुंवर सिंह के वंशज@हालांकि मैं वीर कुंवर सिंह के वंशजों के बारे में बहुत नहीं जानता।पर अनुमान जरूर लगा सकता हूं।@ और उस नेता जी के वंशज की हैसियत की तुलना की जाए,तो यह कहना कठिन होगा कि कौन कितना बड़ा सामंत है।@23 अप्रैल 2018@

  

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