कुछ दशक पहले की बात है।मैं संवाददाता के रूप में बिहार विधान सभा ,की प्रेस दीर्घा में मौजूद था।
अचानक प़क्ष-विपक्ष के कई विधायक एक साथ खड़ा होकर मांग करने लगे--अध्यक्ष महोदय,हमें सुरक्षा गार्ड चाहिए।मेरी जान पर खतरा है।सरकार हमें सुरक्षा नहीं दे रही है।हुजूर, आप हस्तक्षेप करिए।
पुराने गांधीवादी स्पीकर झुंझला गए।उन्होंने लीक से हटकर कहा कि मुझे तो कोई सुरक्षा नहीं चाहिए।मैंने किसी की हत्या नहीं करवाई है।
ऐसी टिप्पणी पर अधिकतर सदस्यों की बोलती बंद हो गयी।
दरअसल जो लोग सुरक्षा की गुहार कर रहे थे,उनमें से कुछ ऐसे विधायक भी थे जिन पर हत्या के आरोप में मुकदमे चल रहे थे।उन्हें पुलिस आदतन अपराधी मानती थी।
अचानक प़क्ष-विपक्ष के कई विधायक एक साथ खड़ा होकर मांग करने लगे--अध्यक्ष महोदय,हमें सुरक्षा गार्ड चाहिए।मेरी जान पर खतरा है।सरकार हमें सुरक्षा नहीं दे रही है।हुजूर, आप हस्तक्षेप करिए।
पुराने गांधीवादी स्पीकर झुंझला गए।उन्होंने लीक से हटकर कहा कि मुझे तो कोई सुरक्षा नहीं चाहिए।मैंने किसी की हत्या नहीं करवाई है।
ऐसी टिप्पणी पर अधिकतर सदस्यों की बोलती बंद हो गयी।
दरअसल जो लोग सुरक्षा की गुहार कर रहे थे,उनमें से कुछ ऐसे विधायक भी थे जिन पर हत्या के आरोप में मुकदमे चल रहे थे।उन्हें पुलिस आदतन अपराधी मानती थी।
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