बुधवार, 11 अप्रैल 2018

 आम भारतीय समाज फिल्मी जगत से आज भी बेहतर है।
जबकि, फिल्मी जगत अपनी फिल्मों के माध्यम से आए दिन बड़े- बड़े उपदेश और संदेश देेेेेेेेेेेेेेेेेेेेता रहता है।
सलमान खान प्रकरण से एक बार फिर यह पता चला।
  किसी भी जाति या सम्प्रदाय  का कोई भी बड़ा नेता कानून तोड़ने के गंभीरत्तम आरोप में भी फंसता है तो भी आम तौर पर उस जाति व समुदाय  के अधिकतर लोगों का समर्थन उसे मिल ही जाता है।क्योंकि उनके लिए व्यापक जनहित और कानून के शासन का कोई  मतलब नहीं है।
फिर भी उसी जाति या समुदाय के कुछ अन्य लोग जरूर यह कहते पाए जाते हैं कि ‘उसने कानून तोड़ा है तो उसे सजा होनी ही चाहिए चाहे वह मेरी ही जाति का क्यों न है।तभी देश में कानून का शासन बरकरार रहेगा।अन्यथा जंगल राज आ जाएगा।’
  पर पिछले दिनों जब जोध पुर कोर्ट ने फिल्म स्टार सलमान खान को पांच साल की सजा दी तो फिल्मी जगत से ऐसी एक भी आवाज नहीं आई कि ‘उसने कानून तोड़ा है तो उसे सजा मिलनी ही चाहिए थी।’
कम से कम मैंने ऐसी कोई आवाज नहीं सुनी।किसी ने सुनी हो बताएं।
बल्कि फिल्म जगत से इस मामले में जो भी बोला,सलमान के  बचाव में ही बोला।
ऐसा लगा मानो वह कह रहा हो कि बड़ी  हस्ती कानून से बहुत ऊपर है।कानून को चाहिए कि उसे छुए तक नहीं।
ऐसा  इस बात के बावजूद हुआ कि अभियोजन पक्ष के वकील ने जोध पुर कोर्ट में कहा था कि ‘सलमान आदतन अपराधी है।’
  यानी फिल्मी जगत से अब भी हमारा आम भारतीय समाज बेहतर है, भले उसे आप कितना भी जातिवादी क्यों न कहें।


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