हमारी सरकारें किस तरह काम करती हैं,उसका एक और नमूना मुझे 3 अप्रैल 2003 के इंडियन एक्सपे्रस की एक खबर से मिला।
खबर का संबंध 4 नवंबर, 1977 को असम के जोरहाट के पास के एक गांव में हुई चर्चित विमान दुर्घटना से है।
तब तत्कालीन प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
देसाई जी बाल-बाल बचे थे।उनको बचाने में मुख्य भूमिका तो उन जांबाज पायलटों की थी जिन्होंने अपनी जान देकर प्रधान मंत्री को बचा लिया था।
पर दूसरी महत्वपूर्ण भूमिका उस गांव के इंद्रेश्वर बरूआ की थी जिन्होंने मोरारजी को दुर्घटनास्थल से उस रात सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था।
याद रहे विमान बांस के उप वन में गिर गया था।
तब मोरारजी ने उस गांव के विकास का घटनास्थल पर ही वादा किया था।साथ ही, बरूआ को इनाम देने का भी।
विकास का क्या हुआ,यह तो पता नहीं चला,पर इनाम की फाइल लटक गयी ।
जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधान मंत्री बने तो प्रधान मंत्री सचिवालय में धूल खा रही संबंधित फाइल किसी संवेदनशील अफसर ने उन्हें दिखाई।अटल जी ने 2003 में यानी 26 साल बाद बरूआ को डेढ़ लाख रुपए भिजवाए थे।
खबर का संबंध 4 नवंबर, 1977 को असम के जोरहाट के पास के एक गांव में हुई चर्चित विमान दुर्घटना से है।
तब तत्कालीन प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
देसाई जी बाल-बाल बचे थे।उनको बचाने में मुख्य भूमिका तो उन जांबाज पायलटों की थी जिन्होंने अपनी जान देकर प्रधान मंत्री को बचा लिया था।
पर दूसरी महत्वपूर्ण भूमिका उस गांव के इंद्रेश्वर बरूआ की थी जिन्होंने मोरारजी को दुर्घटनास्थल से उस रात सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था।
याद रहे विमान बांस के उप वन में गिर गया था।
तब मोरारजी ने उस गांव के विकास का घटनास्थल पर ही वादा किया था।साथ ही, बरूआ को इनाम देने का भी।
विकास का क्या हुआ,यह तो पता नहीं चला,पर इनाम की फाइल लटक गयी ।
जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधान मंत्री बने तो प्रधान मंत्री सचिवालय में धूल खा रही संबंधित फाइल किसी संवेदनशील अफसर ने उन्हें दिखाई।अटल जी ने 2003 में यानी 26 साल बाद बरूआ को डेढ़ लाख रुपए भिजवाए थे।
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