सोमवार, 23 अप्रैल 2018

----कांग्रेस ने तो 1993 में महाभियोग से साफ बचा लिया था जज रामास्वामी को ----


        
1993 में जब कांग्रेस के पास संसद में बहुमत था,तब तो कपिल सिबल और कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के एक जज को   महाभियोग से साफ बचा लिया था।
पर अब जब बहुमत नहीं है तो प्रचार के लिए महाभियोग प्रस्ताव पेश कर दिया।
जबकि आज न्यायिक क्षेत्र का बहुमत मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग के पक्ष में नहीं  है।
इस बीच  राज्य सभा के सभापति ने उसे 
रिजेक्ट कर दिया है।
  आज का प्रचार भी राजनीतिक फायदे के लिए ही है।सन 1993 का बचाव भी राजनीतिक लाभ के लिए था।
सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश वी.रामास्वामी के खिलाफ संसद में पेश महाभियोग को विफल इसलिए किया गया क्योंकि  कांग्रेस को दक्षिण भारत के एक खास समुदाय के वोट से वंचित होने का खतरा था।  आरोप है कि इस बार सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ अभियान इसलिए चलाया जा रहा है  ताकि उससे कांग्रेस का  वोट बढ़े।   
एक तरफ जहां रामास्वामी के खिलाफ आरोप इतने गंभीर थे कि एक को छोड़कर तब सुप्रीम कोर्ट के कोई भी जज रामास्वामी के साथ बंेच में बैठने तक को तैयार नहीं थे।
आज जब मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव राज्य सभा के सभापति के समक्ष पेश किया गया तो सभापति ने यह कह कर उसे अस्वीकार कर दिया कि पहली नजर में ही देखने पर कोई केस नहीं बनता।   
 सन 1993 में रामास्वामी के बचाव में कपिल सिबल ने वकील के रूप में संसद में लगातार छह घंटे तक बहस की थी।
आज वही कपिल सिब्बल कांग्रेस नेता के रूप में मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ जारी अभियान के अगुआ हैं।
  याद रहे कि  ग्यारह मई, 1993 को लोक सभा में जस्टिस वी.रामास्वामी के खिलाफ पेश महाभियोग प्रस्ताव इसलिए गिर गया क्योंकि कांग्रेस और मुस्लिम लीग के 205 सदस्यों ने सदन में चर्चा के दौरान उपस्थित रहते हुए भी मतदान में भाग ही नहीं लिया। प्रस्ताव के पक्ष में मात्र 196 मत पड़े। ध्यान देने लायक बात यह रही कि महाभियोग प्रस्ताव के विरोध में एक भी मत नहीं पड़ा।यानी जिन सदस्यों ने मतदान में भाग नहीं लिया,वे लोग भी रामास्वामी के पक्ष में खड़े होने का नैतिक साहस नहीं रखते थे।
दरअसल अन्य कारणों से कांग्रेस ने पहले ही यह फैसला कर लिया था कि रामास्वामी को बचाना है।याद रहे कि वी.रामास्वामी के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बावजूद कांग्रेस ने उन्हें अंततः बचा ही लिया।
   माक्र्सवादी सांसद सोमनाथ चटर्जी द्वारा  प्रस्तुत महाभियोग प्रस्ताव पर लोक सभा में दस मई, 1993 को सात घंटे तक बहस चली।रामास्वामी पर लगाये गये आरोपों के बचाव में  कपिल सिब्बल ने  मुख्यतः यह बात कही कि खरीदारी का काम जस्टिस रामास्वामी ने नहीं बल्कि संबंधित समिति ने किया था। महाभियोग पर लोक सभा में इस चर्चा को दूरदर्शन के जरिए प्रसारित किया जा रहा था। ग्यारह मई को फिर इस पर नौ घंटे की बहस चली।सोमनाथ चटर्जी ने चर्चा का जवाब दिया।रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग के मामले में ऊपरी तौर पर तो कांग्रेस ने अपने सदस्यों को विवेक के आधार पर मतदान करने की छूट दे दी,पर भीतर -भीतर उन्हें कह दिया गया कि रामास्वामी को बचा लेना है।इसके कई प्रमाण सामने आये। क्या एक ही साथ सभी कांग्रेसी सांसदों के विवेक ने कहा कि रामास्वामी के खिलाफ वोट मत करो ? इतना ही नहीं,लोक सभा मंे ंजब -जब रामास्वामी के वकील कपिल सिब्बल ने कोई जोरदार तर्क पेश किया तो कांग्रेसी सदस्यों ने खुशी में मेजें थपथपाईं। विधि मंत्री हंस राज भारद्वाज टोका टोकी के बीच कपिल सिब्बल का ही पक्ष लेते रहे।
    लोक सभा तो रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव नहीं पास कर सका,पर सुप्रीम कोर्ट के अधिकतर  साथी जजों ने रामास्वामी के साथ  बेंच मेें बैठने से इनकार कर दिया। आखिरकार 14 मई 1993 को रामास्वामी ने अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी। 
 जिन न्यायमूत्र्ति को कांग्रेस व कपिल सिबल ने बचाया था,उनके खिलाफ  आरोपों पर गौर करें । नवंबर, 1987 और अक्तूबर 1989 के बीच पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में वी.रामास्वामी ने अपने आवास व कार्यालय के लिए सरकारी निधि से पचास लाख रुपये के गलीचे और फर्नीचर खरीदे।यह काम निविदा आमंत्रित किए बिना और नकली तथा बोगस कोटेशनों के आधार पर किया गया।दरअसल ये फर्नीचर खरीदे ही नहीं गये थे।पर कागज पर खरीद दिखा दी गई।यह खर्च राशि, खर्च सीमा से बहुत अधिक  थी।
  जस्टिस वी.रामास्वामी ने चंडीगढ़ में अपने 22 महीने के कार्यकाल में गैर सरकारी फोन काॅलों के लिए आवासीय फोन के बिल के 9 लाख 10 हजार रुपये का भुगतान कोर्ट के पैसे से कराया।मद्रास स्थित अपने आवास के फोन के बिल का भी पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट से भुगतान कराया।वह बिल 76 हजार 150 रुपये का था।इसके अलावा भी कई अन्य गंभीर आरोप वी.रामास्वामी पर थे। 
  रामास्वामी  ऐसे जज थे जिन्हें तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने आतंकवादियों के खिलाफ मुकदमे निपटाने के लिए मुख्य न्यायाधीश बनवा कर चंडीगढ़ भेजा था।ऐसा संवेदनशील काम जिसके जिम्मे हो,उस ऐसा आरोप ? पर उन्होंने वहां चीफ जस्टिस के रूप में भी आतंकवादियों के मुकदमों को लेकर कोई उल्लेखनीय काम नहीं किए।वे जब तक रहे टाडा के अभियुक्त धुआंधार जमानत पाते रहे। 
  --- सुरेंद्र किशोर--23 अप्रैल 2018 

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