ईस्ट इंडिया कंपनी की फौजें सात युद्धों में जिस भारतीय राजा से हार गयी थी ,उस राजा का नाम था बाबू वीर कुंवर सिंह ।वीर कुंवर सिंह की याद में बिहार में बड़े पैमाने पर 23 अप्रैल को विजयोत्सव मनाया जाता है।
बिहार के जगदीश पुर के कंुवर सिंह जब अंग्रेजों से लड़ रहे थे, तब उनकी उम्र 80 साल थी।यह बात 1857 की है।
याद रहे कि भोज पुर जिले के जगदीश पुर नामक पुरानी राजपूत रियासत के प्रधान को सम्राट् शाहजहां ने राजा की उपाधि दी थी।
मशहूर पुस्तक ‘भारत में अंग्रेजी राज’ के यशस्वी लेखक पंडित सुंदर लाल ने उन सात युद्धों का विस्तार से विवरण लिखा है।
लेखक के अनुसार ‘जगदीश पुर के राजा कुंवर सिंह आसपास के इलाके में अत्यंत सर्वप्रिय थे।कुवंर सिंह 1857 के बिहार के क्रांतिकारियों का प्रमुख नेता और सबसे ज्वलंत व्यक्तियों में थे।
बिहार में 1857 का संगठन अवध और दिल्ली जैसा तो न था,फिर भी उस प्रांत में क्रांति के कई बड़े -बड़े केंद्र थे।
पटना में जबर्दस्त केंद्र था जिसकी शाखाएं चारों ओर फैली थीं।पटना के क्रांतिकारियों के मुख्य नेता पीर अली को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया।
पीर अली की मृत्यु के बाद दाना पुर की देशी पलटनों ने स्वाधीनता का एलान कर दिया।ये पलटनें जगदीश पुर की ओर बढ़ीं।
बूढ़े कुंवर सिंह ने तुरंत महल से निकल कर शस्त्र उठाकर इस सेना का नेतृत्व सम्भाल लिया। इतिहासकार के अनुसार कुंवर सिंह आरा पहुंचे।
उन्होंने आरा में अंग्रेजी खजाने पर कब्जा कर लिया।
जेलखाने के कैदी रिहा कर दिए गए।
अंग्रेजी दफ्तरों को गिरा कर बराबर कर दिया गया।
29 जुलाई को दाना पुर के कप्तान डनवर के अधीन करीब 300 गोरे सिपाही और 100 सिख सैनिक आरा की ओर मदद के लिए चले।
आरा के निकट एक आम का बाग था।कुंवर सिंह ने अपने कुछ आदमी आम के वृक्षों की टहनियों में छिपा रखे थे।
रात का समय था।जिस समय सेना ठीक वृक्षों के नीचे पहुंची,अंधेरे में ऊपर से गोलियां बरसनी शुरू हो गयीं।
सुबह तक 415 सैनिकों में से सिर्फ 50 जिंदा बच कर दाना पुर लौटे।डनवर भी मारा गया था।
इसके बाद मेजर आयर एक बड़ी सेना और तोपों सहित आरा किले में घिरे अंग्रेजों की सहायता के लिए बढ़ा।
2 अगस्त को आरा के बीबी गंज में आयर और कुंवर सिंह की सेना के बीच संग्राम हुआ।
इस बार आयर विजयी हुआ।उसने 14 अगस्त को जगदीश पुर के महल पर भी कब्जा कर लिया।
कुंवर सिंह 12 सौ सैनिकों व अपने महल की स्त्रियों को साथ लेकर जगदीश पुर से निकल गए।
18 मार्च, 1858 को दूसरे क्रांतिकारियों के साथ कुंवर सिंह आजम गढ़ से 25 मील दूर अतरौलिया में डेरा डाला।
मिलमैन के नेतृत्व में अंग्रेज सेना ने 22 मार्च 1858 को कुंवर सिंह से मुकाबला किया।मिलमैन हार कर भाग गया।
28 मार्च को कर्नल डेम्स के नेतृत्व में एक बड़ी सेना ने कुंवर सिंह पर हमला किया।इस युद्ध में भी कुंवर सिंह विजयी रहे।
कुंवर सिंह ने आजम गढ़ पर कब्जा किया।किले को दूसरों के लिए छोड़कर कुंवर सिंह बनारस की तरफ बढ़े।
लार्ड केनिंग उस समय इलाहाबाद में था।
इतिहासकार मालेसन लिखता है कि बनारस पर कुंवर सिंह की चढ़ाई की खबर सुन कर कैनिंग घबरा गया।
उन दिनों कंुवर सिंह जगदीश पुर से 100 मील दूर बनारस के उत्तर थे।लखनऊ से भागे कई क्रांतिकारी कुंवर सिंह की सेना में आ मिले।
लार्ड कैनिंग ने लार्ड मारकर को सेना और तोपों के साथ कुंवर ंिसंह से लड़ने के लिए भेजा।
किसी ने उस युद्ध का विवरण इन शब्दों में लिखा है,‘
उस दिन 81 साल का बूढ़ा कुंवर सिंह अपने सफेद घोड़े पर सवार ठीक घमासान लड़ाई के अंदर बिजली की तरह इधर से उधर लपकता हुआ दिखाई दे रहा था।’
अंततः लार्ड मारकर हार गया।
उसे पीछे हटना पड़ा।
कुंवर सिंह की अगली लड़ाई सेनापति लगर्ड के नेतृत्व वाली सेना से हुई।कई अंग्रेज अफसर व सैनिक मारे गए।
कंपनी की सेना पीछे हट गयी।
कुंवर सिंह गंगा नदी की तरफ बढ़े।वे जगदीश पुर लौटना चाहते थे।
एक अन्य सेनापति डगलस के अधीन सेना कुंवर से लड़ने के लिए आगे बढ़ी।
नघई नामक गांव के निकट डगलस और कुंवर सिंह की सेनाओं में संग्राम हुआ।
अंततः डगलस हार गया।
कुंवर सेना के अपनी साथ गंगा की ओर बढ़े।
कुंवर सिंह गंगा पार करने लगे।बीच गंगा में थे।
अंग्रेजी सेना ने उनका पीछा किया।
एक अंग्रेजी सैनिक ने गाली चलाई।गोली कुंवर सिंह को लगी।
गोली दाहिनी कलाई में लगी।
विष फैल जाने के डर से कुंवर सिंह ने बाएं हाथ से तलवार खींच कर अपने दाहिने हाथ को कुहनी पर से काट कर गंगा में फेंक दिया।
22 अप्रैल को कंुवर सिंह ने वापस जगदीश पुर में प्रवेश किया।आरा की अंग्रेजी सेना 23 अप्रैल को लीग्रंैड के अधीन जगदीश पुर पर हमला किया।
इस युद्ध में भी कुंवर सिंह विजयी रहे।
पर घायल कुंवर सिंह की 26 अप्रैल, 1858 को मृत्यु हो गयी।
23 अप्रैल को कुंवर की याद में विजयोत्सव मनाया जाता है।
---सुरेंद्र किशोर
@फस्र्टपोस्ट हिंदी.. 23 अप्रैल 2018@
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