बुधवार, 25 अप्रैल 2018

--- डा.आम्बेडकर चाहते थे मंत्रियों को मिले पर्याप्त वेतन---



  
   डा.बी.आर.आम्बेडकर चाहते थे कि इस देश के मंत्रियों को पर्याप्त वेतन मिले तभी प्रतिभाएं इस पद के लिए सामने  आएंगी।उन्होंने बम्बई विधान सभा में सन 1937 में अपने भाषण में यह बात कहीं। तब वे बम्बई लेजिस्लेटीव एसेम्बली के सदस्य थे।
  यह हमेशा ही विवादास्पद मुददा रहा है कि इस गरीब देश में मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के लिए  कितना वेतन तय किया जाना चाहिए।
याद रहे कि विधायक और सांसद ही अपने तथा मंत्रियों के लिए  वेतन -भत्ता विधायिका में पेश तत्संबंधी विधेयक के जरिए तय करते हैं। इस सिलसिले में सदन में चर्चा होती है।इस संबंध में पेश विधेयक आम तार पर सर्वसम्मति से ही पास होता है।
    इस विषय में एक पक्ष यह कहता है कि भारत के आम लोगों की औसत आय के अनुपात में ही जन प्रतिनिधियों के वेतन-भत्ते भी तय होने चाहिए।दूसरा पक्ष यह कहता है कि काम और पद की जरूरतों के अनुसार वेतन तय होने चाहिए।
   इस संबंध में डा.आम्बेडकर के विचार जानना महत्वपूर्ण है।याद रहे कि डा.आम्बेडकर बाद में संविधान सभा की ड्राफिटंग समिति के अध्यक्ष भी बनाये गये थे।
   नब्बे के दशक में ए.के.राय ने सांसदों -विधायकों के लिए धुंआधार वेतन-भत्ते बढ़ोत्तरी की प्रवृति की तीखी आलोचना की थी।धनबाद से सांसद रहे माक्र्सवादी मजदूर नेता ए.के. राय ने लिखा था कि जब देश आजाद हुआ था,उस समय औसत आय के मामले में बिहार को देश में पांचवां स्थान प्राप्त था।अभी बिहार इस मामले में देश में 26 वें स्थान पर है।उस समय देश के अन्य राज्यों की तरह ही यहां के विधायकों को भी सीमित सुविधाएं प्राप्त थीं।इसके बाद जैसे -जैसे बिहार की आम जनता की आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती गई,वैसे-वैसे यहां केे विधायकों की स्थिति और बेहतर होती गई।यहां राजनीतिक दलों के बीच आपसी दूरी कम हुई और जनता और विधायकों के बीच दूरी बढ़ी।राजनीतिक दलों के बीच दूरी घटने का प्रमाण यह है कि विधायकों की सुविधाओं वाले विधेयकों में मुख्य मंत्री और विरोधी दल के नेता एकमत रहे हैं।इस अपवित्र सहमति ने लोकतांत्रिक संस्था और देश के भविष्य के सामने एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है।संविधान में निहित अभिप्राय का इस प्रकार का घोर उलंघन पीडि़त जनता को हतवाक कर दिया है।’ इस महौल में विधायकों के लिए वेतन बढाना जनता के घाव पर नमक छिड़कने जैसा है।
    पर इससे ठीक विपरीत  डा.आम्बेडकर ने कहा था कि किसी मंत्री के लिए मात्र पांच सौ रुपये का वेतन समुचित नहीं है।
    डा.आम्बेडकर के भाषण और ए.के. राय के लेख के सामने आने के बाद 
 इस मामले में यह देश काफी आगे बढ़ चुका है।अर्जुनसेन गुप्त समिति की रपट के अनुसार जहां की 77 प्रतिशत आबादी की रोज की औसत आय मात्र बीस रुपये हैं,वहां के प्रति सांसद पर हर माह लाख रुपये से भी अधिक सरकार खर्च कर रही है।कई राज्यों के विधायकों को भी इस तरह की सुविधाएं मिल रही हैं।ऐसे में डा.आम्बेडकर के तर्कों को जानना -पढ़ना महत्वपूर्ण होगा।
   डा.आम्बेडकर ने कहा था कि मैं अपनी स्थिति स्पष्ट करना चाहता हूं।क्योंकि पांच सौ रुपये के वेतन को बहुत कम बताने से मुझे गलत समझा जा सकता है।मेरा यह कहना नहीं है कि अंतरिम मंत्रिपरिषद द्वारा सुझाया गया चार हजार रुपये अथवा तीन हजार रुपये का वेतन मानक वेतन था।मैं स्वयं को किसी आंकड़े तक सीमित नहीं करना चाहता।मैं तो केवल इतना कहना चाहता हूं कि एक मंत्री के लिए पांच सौ समुचित वेतन नहीं है।
   उन्होंने कहा कि यदि प्रशासन में लोगों का विश्वास हम जगाना चाहते हैं तो मेरे अनुसार यह उचित नहीं है कि मंत्री गलियों में अधूरे कपड़े पहन कर जाएं।अपना शरीर प्रदर्शन करें।सिगरेट के स्थान पर बीड़ी पिएं।अथवा तीसरे दर्जे या बैलगाड़ी से यात्रा करें।
@ शाजी जोसेफ के संपादकत्व में प्रकाशित पाक्षिक पत्रिका ‘पब्लिक एजेंडा’ में छपे मेरे लेख का छोटा अंश@ 
   

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