मंगलवार, 19 जून 2018

मेरे बाबू जी !

      

  हम तीनों भाई उन्हें ‘बाबू जी’ ही कहते थे और वे हमें ‘बबुआ।’बड़का बबुआ।मझिला बबुआ और छोटका बबुआ।
मेरी मां के साथ भी उनका व्यवहार आदरपूर्ण था।
  अधिक पढ़े -लिखे तो नहीं थे,पर परंपरागत विवेक से परिपूर्ण थे।
साढ़े छह फीट के लंबा- चैड़ा कसरती शरीर और दबंग व्यक्तित्व।
मेरे जन्म के समय हमारे परिवार के पास 22 बीघा जमीन थी।
दो बैल, एक गाय और एक भैंस।
 दो नौकर ।खेत जोतने -जोतवाने में आस -पड़ोस के किसान एक दूसरे की मदद करते थे।हमारे हल-बैल कभी उनके खेत में तो कभी उनके बैल -हल  हमारे खेत में।
बाबू जी लघुत्तम जमींदार थे और एक बड़े जमींदार के तहसीलदार।जीवन में पहली बार कोई छपा हुआ कागज जो मैंने देखा था,वह अपनी जमींदारी की रसीद बही थी--उस पर  छपा था-‘मालिक बाबू शिवनंदन ंिसंह, साकिन -सखनौली टोले -भरहा पुर,जिला-सारण।’
रसीद के प्रत्येक पन्ने पर सारण के कलक्टर की मुहर लगी होती थी।
 बिक- बाक के अब तो हमारे संयुक्त परिवार के पास दस बीघा जमीन बच गयी है।
मेरे गांव के पृथ्वीनाथ त्रिपाठी मेरे बाबू जी के दोस्त थे।मुजफ्फर बी.बी.काॅलेजियट स्कूल में प्राचार्य थे।
मेरे राजेंद्र भैया मुजफ्फर पुर में उन्हीं के यहां रह कर पढ़ते थे।पर वे अधिक पढ़-लिख नहीं सके।दमा के मरीज थे।अब नहीं रहे।
मुझे और मेरे छोटे भाई नागेंद्र को बाबू जी खूब पढ़ाना चाहते थे।पढ़ाया भी।उसके लिए उन्हें जमीन भी बेचनी पड़ी।
गांव के बगल के एक मुखिया जी ने एक बार बाबू जी से कहा कि ‘सोना अइसन जमीन के बेच के लडि़कन के पढ़ावत बानी।इ सब पढ़ लिख के शहर में बस जइहन स।रउआ का मिली ?
बाबू जी बोले ,तोहरा ना बुझाई।सोना बेच के हीरा खरीदत बानी।
पढ़ जइहन स त संतोष होई।अच्छा लागी।आउर का चाहीं ?
हमरा खाए -पिए के काफी बा।
आज भी हमलोगों का परिवार एक ही साथ है।सब अपनी जिंदगी -नौकरी से संतुष्ट हंै।यह सब कुछ उनके ही कारण है जिन्होंने एक  किसान परिवार के स्वरूप की कायापलट  की आधारशिला रख दी थी।
  उन दिनों आसपास के किसी ऐसे किसान को मैं नहीं जानता था  जिसने अपनी जमीन बेच कर अपने बाल -बच्चों को पढ़ाया-लिखाया हो।
इस मामले में मेरे बाबू जी आदर्श थे।
रामायण पढ़ते थे।
मालगुजारी की रसीद कैथी भाषा में काटते थे।गांव -जवार की पंचायती में जाते थे।
हमें सिखाते थे कि केहू से उलझला के जरूरत नइखे।
छोट लकीर के सामने अपन बड़ लकीर खींच द।उ अपने छोट हो जाई।
बाबू जी अपना  फोटो खंींचवाने के खिलाफ थे।
पर आखिरी दिनों में  एक फोटो खींचवा लिया गया था।वह कहीं रखा हुआ  है।मिलेगा तो उसका भी कभी इस्तेमाल होगा।
  


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