कभी की प्रभावशाली नेत्री तारकेश्वरी सिन्हा को आज कम ही लोग याद करते हैं। पहली बार 1952 में बिहार से लोकसभा की सदस्य चुन ली गयी थीं। कुल चार बार सांसद रहीं। जवाहर लाल नेहरू मंत्रिमंडल में उपमंत्री रही थीं।
प्रभावशाली वक्ता थीं। साफ बोलती थीं। शेर ओ शायरी के लिए मशहूर थीं। हाजिर जवाबी भी। अपने जमाने में संसद में प्रभावशाली भूमिका निभाती थीं। सत्ताधारी कांग्रेस में थीं, पर प्रतिपक्ष के नेताओं के साथ भी तारकेश्वरी जी का अच्छा संबंध था।
समाजवादी सांसद डॉ. राम मनोहर लोहिया पर लिखा हुआ तारकेश्वरी सिन्हा का एक संस्मरण यहां प्रस्तुत है।
‘एक बार गाड़ी के पास खड़ी मैं किसी से बात कर रही थी। लोहिया वहां आए तो मैंने कहा कि ‘चलिए आपको छोड़ दूं।’ कहने लगे,‘मुझे जनता कॉफी हाउस जाना है।’ उन्हें पता था, मैं वहां नहीं जाती।
मुझे ऊहापोह में देख कर बोले, ‘अच्छा तो साधारण लोगों में जाने में आपकी बेइज्जती होती है। पांच सितारा में नहीं होती।’ खैर, मैं उन्हें छोड़ने गयी तो बोले, ‘ उतरो नीचे, नहीं तो सबके सामने कान पकड़कर उतारूंगा।’ मैं उतरी तो काफी हाउस में लोग इकट्ठे हो गए। सबको कॉफी पिलाई। बिल आया बयालीस रुपए का। लोहिया जी की पॉकिट में आठ रुपए थे। बाकी लोगों ने इकट्ठे करके दिए। एक बैरे ने साढ़े चार रुपए निकाल कर दिए तो लोहिया जी ने मनाकर दिया।
बाद में मैंने उनसे कहा कि ‘आप कमाल के आदमी हैं। पैसा जेब में नहीं है, ऑर्डर पर आर्डर दिए जाते हैं।’ पर, डाक्टर साहब (यानी डाक्टर लोहिया) तो खनाबदोश किस्म के आदमी थे। उन्हें कोई बांध नहीं सकता था।’
तारकेश्वरी जी का जन्म 1926 में हुआ था। सन 2007 में उनका निधन हुआ।
(प्रभात खबर - बिहार - में प्रकाशित मेरे कॉलम कानोंकान से)
प्रभावशाली वक्ता थीं। साफ बोलती थीं। शेर ओ शायरी के लिए मशहूर थीं। हाजिर जवाबी भी। अपने जमाने में संसद में प्रभावशाली भूमिका निभाती थीं। सत्ताधारी कांग्रेस में थीं, पर प्रतिपक्ष के नेताओं के साथ भी तारकेश्वरी जी का अच्छा संबंध था।
समाजवादी सांसद डॉ. राम मनोहर लोहिया पर लिखा हुआ तारकेश्वरी सिन्हा का एक संस्मरण यहां प्रस्तुत है।
‘एक बार गाड़ी के पास खड़ी मैं किसी से बात कर रही थी। लोहिया वहां आए तो मैंने कहा कि ‘चलिए आपको छोड़ दूं।’ कहने लगे,‘मुझे जनता कॉफी हाउस जाना है।’ उन्हें पता था, मैं वहां नहीं जाती।
मुझे ऊहापोह में देख कर बोले, ‘अच्छा तो साधारण लोगों में जाने में आपकी बेइज्जती होती है। पांच सितारा में नहीं होती।’ खैर, मैं उन्हें छोड़ने गयी तो बोले, ‘ उतरो नीचे, नहीं तो सबके सामने कान पकड़कर उतारूंगा।’ मैं उतरी तो काफी हाउस में लोग इकट्ठे हो गए। सबको कॉफी पिलाई। बिल आया बयालीस रुपए का। लोहिया जी की पॉकिट में आठ रुपए थे। बाकी लोगों ने इकट्ठे करके दिए। एक बैरे ने साढ़े चार रुपए निकाल कर दिए तो लोहिया जी ने मनाकर दिया।
बाद में मैंने उनसे कहा कि ‘आप कमाल के आदमी हैं। पैसा जेब में नहीं है, ऑर्डर पर आर्डर दिए जाते हैं।’ पर, डाक्टर साहब (यानी डाक्टर लोहिया) तो खनाबदोश किस्म के आदमी थे। उन्हें कोई बांध नहीं सकता था।’
तारकेश्वरी जी का जन्म 1926 में हुआ था। सन 2007 में उनका निधन हुआ।
(प्रभात खबर - बिहार - में प्रकाशित मेरे कॉलम कानोंकान से)
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