यह अच्छी खबर है कि राज्य शासन ने चैकीदारों को एक बार फिर सक्रिय करने का निर्णय किया है।
यदि ऐसा हुआ तो बिहार पुलिस अपराधियों के बारे में पहले से अधिक सटीक सूचनाएं हासिल कर पाएगी।
आदतन अपराधियों के बारे में पक्की सूचना देने पर चैकीदार-दफादारों को अलग से इनाम भी मिलना चाहिए।
इससे उन्हें प्रोत्साहन मिलेगा।इसलिए कि ऐसी सूचना देना अब खतरे का काम बन चुका है।
जब राजनीति का अपराधीकरण नहीं हुआ था,तब अपराधी लोग चैकीदार-दफादार से डरते थे।चैकीदार-दफादार निर्र्भीकतापूर्वक अपना काम करते थे।
पर चैकीदारों को सक्रिय करना ही काफी नहीं होगा ।
दरअसल राज्य के ऐसे इलाकों में नये पुलिस थानों या कम से कम पुलिस चैकियों की स्थापना जरूरी होगी।
पुलिस मुख्यालय में यह आंकड़ा तो मौजूदा ही होगा कि किन इलाकों में अपराध अधिक होते हैं।
उन आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए नये पुलिस थानों या चैकियों के बारे में निणय किया जा सकता है।
दरअसल आम गरीब लोग सुरक्षा,स्वास्थ्य व शिक्षा के लिए सरकार पर निर्भर रहते हैं।
यदि चैकीदारी व्यवस्था एक बार फिर सुदृढ हो जाए तो यह भी पता लगाया जा सकेगा कि किन इलाकों में दबंग लोग कमजोर वर्ग को परेशान करते रहते हैं।कमजोर वर्ग डर के मारे पुलिस में शिकायत तक नहीं कर पाते।
ऐसे लोगों पर निरोधात्मक कार्रवाई भी हो सकती है।
---अतिरिक्त पुलिस बल का प्रबंध मुश्किल नहीं---
गत मार्च में केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को लिखा था कि
वे रिटायर अफसरों के यहां तैनात हाउस गार्ड
हटा लें।हाल में बिहार पुलिस मुख्यालय ने इस संबंध में सभी आरक्षी अधीक्षकों और होम गार्ड समादेष्टाओं को लिखा कि वे हाउस गार्ड के रूप में तैनात अपने जवानों को वापस बुला लें।
इनकी संख्या करीब 200 है।
इनके अलावा यह खबर भी है कि कुछ सेवारत आई.पी.एस.अफसरांे के आवासों पर भी जरूरत से अधिक सुरक्षा गार्ड तैनात हैं।
यदि उन्हें भी वहां से हटा लिया जाए तो कुछ मिलाकर दो सौ से अधिक बल उपलब्ध होंंगे।उनके बल पर कुछ नयी पुलिस चैकियों की स्थापना के साथ ही इसकी शुरूआत तो की जा सकती है।
यदि कुछ अतिरिक्त थानों व चैकियों की उपस्थिति के कारण अपराध कम होते हैं तो उससे कुल मिलाकर राज्य पुलिस का ही बोझ कम होगा।
साथ ही, कमजोर वर्ग के लोग राहत की सांस लेंगे।
--- प्रतिपक्षी एकता की परीक्षा--
राज्य सभा के उप सभापति का पद 30 जून को खाली होगा।
इस पद के लिए चुनाव होगा।
क्या इस चुनाव में गैर राजग दल एक होकर सत्ताधारी दल को मात दे पाएंगे ?
यह एक बड़ा सवाल है जिसका जवाब आने वाला समय देगा।
यदि विपक्ष इस चुनाव में सफल हो गया तो उसे अगले लोक सभा चुनाव के लिए तालमेल में भी थोड़ी सुविधा होगी।
पर इस चुनाव में उन दलों में से किसी दल को लाभ मिल सकता है जो अब तक निर्गुट रहे हैं।यानी उनके किसी उम्मीदवार पर राजग और यू.पी.ए.दोनों राजी हो सकते हैं।वे दल हैं बीजू जनता दल,तेलांगना राष्ट्र समिति और वाई.एस.आर.कांग्रेस पार्टी।देखना है कि ऊंट किस करवट बैठता है।
---सीटों के शीघ्र बंटवारे से दलों को लाभ---
लोक सभा या विधान सभा के कार्यकाल का चैथा साल पूरा हो जाने पर राजनीतिक दल अगले चुनाव की तैयारी शुरू कर देते हैं।
यदि किसी दल को अकेले लड़ना हो तब तो कोई बात ही नहीं।पर गठबंधन के दल के रूप में लड़ना हो तो दल को सीटों के बंटवारे की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।तभी वे अपने उम्मीदवार तय कर पाएंगे।
अब चूंकि अधिकतर दल किसी न किसी गठबंधन दल में शामिल हैं,इसलिए उन सबको कई बार प्रतीक्षा करनी पडती ़ है।इस बार भी करनी पड़ रही है।
राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार यह उनके हक में होगा यदि अलग -अलग राजग और यू.पी.ए.के दल अभी से सीटों के बंटवारे के काम में लग जाएं।
जितनी देर करेंगे ,उतना ही घाटे में रहेंगे।
जल्द कर लेंगे तो राजनीतिक दल अपने उम्मीदवार जल्द तय
करके उन्हें क्षेत्रों में भेज देंगे।अधिक समय मिल जाने पर साधन जुटाने में भी उन्हें सुविधा होगी।
उम्मीदवार तय हो जाने पर टिकट से वंचित नेताओं में से कई नेता दल- बदल कर सकते हैं।उन्हें भी इस बात के लिए समय मिल सकेगा कि वे किसी अन्य दल से टिकट पा सकें।
तोल मोल कर सकें।अब जब दल बदलू लोग भी आज की राजनीति के अनिवार्य अंग बन ही चुके हैं तो उनकी सुविधा का भी ध्यान रखा ही जाना चाहिए।
वैसे भी आज अधिकतर पार्टियां दल बदलुओं से ही भरी पड़ी है।
----सिनेमा हाॅल में राष्ट्रगान ---
केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों ने पूछा है कि सिनेमा हाॅल में राष्ट्रगान बजाया जाना चाहिए या नहीं ?
इस सबंध में केंद्र ने एक चिट्ठी पहले लिखी थीं।
इस महीने भी केंद्र सरकार ने स्मरण दिलाने के लिए एक और चिट्ठी लिखी।
पर इस नाजुक मामले पर किसी राज्य सरकार ने अब तक कोई जवाब नहीं दिया है।लगता है कि मन स्थिर नहीं किया है।संवेदनशील मामला जो है !
इस संबंध में 1971 में एक कानून बना था।हाल में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भी आया है।केंद्र सरकार ने एक कमेटी भी बना दी है।
केंद्र को राज्यों से चिट्ठियों का इंतजार है।
----भूली बिसरी याद---
कभी की प्रभावशाली नेत्री तारकेश्वरी सिंहा को आज कम ही लोग याद करते हैं।
पहली बार 1952 में बिहार से लोक सभा की सदस्य चुन ली गयी थीं।कुल चार बार सांसद रहीं।जवाहर लाल नेहरू मंत्रिमंडल मंे उप मंत्री रही थंीं।
प्रभावशाली वक्ता थीं।साफ बोलती थीं।शेर ओ शायरी के लिए मशहूर थीं।हाजिर जवाबी भी।
अपने जमाने में संसद में प्रभावशाली भूमिका निभाती थीं।सत्ताधारी कांग्रेस में थीं,पर प्रतिपक्ष के नेताओं के साथ भी तारकेश्वरी जी का अच्छा संबंध था।
समाजवादी सांसद डा.राम मनोहर लोहिया पर लिखा हुआ तारकेश्वरी सिंहा का एक संस्मरण यहां प्रस्तुत है।
‘एक बार गाड़ी के पास खड़ी मैं किसी से बात कर रही थी।
लोहिया वहां आए तो मैंने कहा कि ‘चलिए आपको छोड़ दूं।’
कहने लगे,‘मुझे जनता काॅफी हाउस जाना है।’
उन्हें पता था, मैं वहां नहीं जाती।
मुझे ऊहापोह में देख कर बोले,‘अच्छा तो साधारण लोगों में जाने में आपकी बेइज्जती होती है।
पांच सितारा में नहीं होती।’
खैर, मैं उन्हें छोड़ने गयी तो बोले ,‘ उतरो नीचे,नहीं तो सबके सामने कान पकड़कर उतारूंगा।’
मैं उतरी तो काफी हाउस में लोग इकट्ठे हो गए।
सबको काॅफी पिलाई।बिल आया बयालीस रुपए का।
लोहिया जी की पाॅकिट में आठ रुपए थे।
बाकी लोगों ने इकट्ठे करके दिए।
एक बैरे ने साढ़े चार रुपए निकाल कर दिए तो लोहिया जी ने मना कर दिया।
बाद में मैंने उनसे कहा कि ‘आप कमाल के आदमी हैं।पैसा जेब में नहीं है,आॅर्डर पर आर्डर दिए जाते हैं।’
पर, डाक्टर साहब @यानी डाक्टर लोहिया@ तो खनाबदोश किस्म के आदमी थे।उन्हें कोई बांध नहीं सकता था।’
तारकेश्वरी जी का जन्म 1926 में हुआ था। सन 2007 में उनका निधन हुआ।
---और अंत में---
1975 में पुनपुन के पास के देकुली गांव में नर संहार हुआ था।
वहां मैं गया था।उसके बाद से लेकर 2001 तक जब तक मैं संवाददाता रहा,बिहार के लगभग हर नरंसहार स्थल पर गया।
हर बार बिछी हुई लाशों का वीभत्स दृश्य देख कर मन क्षोभ से भर जाता था।
उम्मीद करता था कि हत्यारों को जरूर सजा होगी।
पर हाल के वर्षों से जब-जब यह खबर पढ़ता हूं कि उन में से अधिकतर नरसंहारों के अभियुक्त बारी- बारी से बरी होते जा रहे हंै तो एक बार फिर मन क्षोभ से भर उठता है।
@1 जून 2018 को प्रभात खबर-बिहार में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से@
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