शिक्षिका उत्तरा पंत बहुगुणा ने उत्तरा खंड के मुख्य मंत्री को अनेक लोगों के सामने चोर -उच्चका कहा और मुख्य मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शिक्षिका को मुअत्तल व गिरफ्तार करने का आदेश दिया।
सरकारी शिक्षिका अपने अनुकूल तबादले की गुहार करने दूसरी बार मुख्य मंत्री के यहां गयी थीं।उनकी बात नहीं सुनी जा रही थी।
याद रहे कि शिक्षिका अनुशासनहीनता के आरोप में पहले भी दो बार निलंबित हो चुकी थीं।अनुमति के बिना स्कूल से अनुपस्थित होने के आरोप में।
गुस्से से भरे ताजा प्रकरण के बाद में ठंडे दिल -दिमाग से मुख्य मंत्री ने उत्तरा के तबादले को लेकर नियमानुसार कार्रवाई करने का आदेश विभाग को दे दिया है।
एक सरकारी सेवक सार्वजनिक रूप से एक ईमानदार मुख्य मंत्री को चोर-उच्चका कहे, यह नौबत आखिर आती ही क्यों है ?
दरअसल यह नीति निर्धारकों की गलती है।इसमें अफसर व सत्ताधारी नेता दोनों दोषी रहते हैं ।इस देश में कई बार ऐसे- ऐसे नियम जान बूझ कर बनाए और बनाए रखे जाते हैं ताकि दोहन का मौका मिलता रहे।
आई.ए.एस.और आई.पी.एस.अफसरों को ,यदि उनके जीवन साथी भी उसी सेवा मंे हैं तो एक ही राज्य में तैनात रहने की सुविधा हासिल है।कई बार एक ही जिले में ।पर यह सुविधा उत्तरा जैसी शिक्षिका को नहीं मिलती है जिनके पति का निधन हो चुका है और वे अपने बच्चों से वर्षों से दूर पदस्थापित हैं।
ऐसा पूरे देश में हो रहा है।
बिहार में भी 1977 से पहले प्राथमिक शिक्षकों के जिला स्थानानांतरण की सुविधा नहीं थी।नतीजतन पति कहीं और और पत्नी किसी अन्य जिले में नौकरी करने को अभिशप्त थे।
जिला स्थानांतरण की सुविधा कर्पूरी ठाकुर की सरकार ने दी।वह भी इसलिए कि एक दबंग सत्ताधारी विधायक की पत्नी पटना से अलग एक जिले में पदस्थापित थीं।
विधायक जी को अपनी पत्नी को साथ रखना था।स्वाभाविक ही था।
आई.ए.एस.और आई.पी.एस.अफसरों के यहां सेवा व सुरक्षा के लिए बहुत सारे कर्मचारी तैनात रहते हैं,फिर भी उन्हें यथासंभव निकट तैनाती की सुविधा है।पर किसी विधवा शिक्षिका को भी यह सुविधा नहीं।
मैंने उत्तराखंड के मुख्य मंत्री को ईमानदार इसलिए कहा क्योंकि उन्होंने केंद्रीय मंत्री गडकरी की इच्छा के खिलाफ अरबों रुपए के नेशनल हाईवे मुआवजा घोटाले की सी.बी.आई.जांच की सिफारिश कर दी और जांच हो भी रही है।उससे पहले गडकरी ने मुख्य मंत्री से कहा था कि ऐसी जांच से अफसरों में पस्तहिम्मती आएगी।
सरकारी शिक्षिका अपने अनुकूल तबादले की गुहार करने दूसरी बार मुख्य मंत्री के यहां गयी थीं।उनकी बात नहीं सुनी जा रही थी।
याद रहे कि शिक्षिका अनुशासनहीनता के आरोप में पहले भी दो बार निलंबित हो चुकी थीं।अनुमति के बिना स्कूल से अनुपस्थित होने के आरोप में।
गुस्से से भरे ताजा प्रकरण के बाद में ठंडे दिल -दिमाग से मुख्य मंत्री ने उत्तरा के तबादले को लेकर नियमानुसार कार्रवाई करने का आदेश विभाग को दे दिया है।
एक सरकारी सेवक सार्वजनिक रूप से एक ईमानदार मुख्य मंत्री को चोर-उच्चका कहे, यह नौबत आखिर आती ही क्यों है ?
दरअसल यह नीति निर्धारकों की गलती है।इसमें अफसर व सत्ताधारी नेता दोनों दोषी रहते हैं ।इस देश में कई बार ऐसे- ऐसे नियम जान बूझ कर बनाए और बनाए रखे जाते हैं ताकि दोहन का मौका मिलता रहे।
आई.ए.एस.और आई.पी.एस.अफसरों को ,यदि उनके जीवन साथी भी उसी सेवा मंे हैं तो एक ही राज्य में तैनात रहने की सुविधा हासिल है।कई बार एक ही जिले में ।पर यह सुविधा उत्तरा जैसी शिक्षिका को नहीं मिलती है जिनके पति का निधन हो चुका है और वे अपने बच्चों से वर्षों से दूर पदस्थापित हैं।
ऐसा पूरे देश में हो रहा है।
बिहार में भी 1977 से पहले प्राथमिक शिक्षकों के जिला स्थानानांतरण की सुविधा नहीं थी।नतीजतन पति कहीं और और पत्नी किसी अन्य जिले में नौकरी करने को अभिशप्त थे।
जिला स्थानांतरण की सुविधा कर्पूरी ठाकुर की सरकार ने दी।वह भी इसलिए कि एक दबंग सत्ताधारी विधायक की पत्नी पटना से अलग एक जिले में पदस्थापित थीं।
विधायक जी को अपनी पत्नी को साथ रखना था।स्वाभाविक ही था।
आई.ए.एस.और आई.पी.एस.अफसरों के यहां सेवा व सुरक्षा के लिए बहुत सारे कर्मचारी तैनात रहते हैं,फिर भी उन्हें यथासंभव निकट तैनाती की सुविधा है।पर किसी विधवा शिक्षिका को भी यह सुविधा नहीं।
मैंने उत्तराखंड के मुख्य मंत्री को ईमानदार इसलिए कहा क्योंकि उन्होंने केंद्रीय मंत्री गडकरी की इच्छा के खिलाफ अरबों रुपए के नेशनल हाईवे मुआवजा घोटाले की सी.बी.आई.जांच की सिफारिश कर दी और जांच हो भी रही है।उससे पहले गडकरी ने मुख्य मंत्री से कहा था कि ऐसी जांच से अफसरों में पस्तहिम्मती आएगी।
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