उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘वन नेशन, वन पोल’ के प्रधानमंत्री के प्रस्ताव पर अपनी सहमति प्रदान कर दी है। ऐसी सहमति देने वाला देश का यह पहला राज्य है। सबसे बडे़ राज्य की सरकार में सर्वाधिक उदारता।
राज्य सरकार चाहती है कि देश में लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव एक ही साथ हों। 1967 तक ऐसा ही होता था।
याद रहे कि अलग -अलग चुनाव होने से इस गरीब देश के काफी पैसे बेवजह बर्बाद होते रहते हैं। अपने जरूरी काम छोड़कर प्रशासन व पुलिस उन चुनावों में लगे रहते हैं। राजनीतिक दलों को अधिक कारपोरेट चंदा बटोरना पड़ता है। जो कारपोरेट अधिक चंदा जो देगा, वह देश का उतना ही अधिक शोषण करेगा। वैसे भी लगभग सभी दलों ने अनावश्यक रूप से चुनाव का खर्च बहुत बढ़ा लिया है। उसके बिना भी काम चल सकता है।
हां, अलग -अलग चुनाव होते रहने से कई नेताओं को जरूर निजी फायदा होता है। अधिक बार चंदा वसूली यानी उसे चंदे में से अपने लिए निकाल लेने की अधिक गुंजाइश।
कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि एक साथ चुनाव होने से राज्य के मुद्दे गौण हो जाएंगे। वे यह बात भूल जाते हैं कि 1957 में केरल में कम्युनिस्ट सरकार बन गयी थी जबकि देश में कांग्रेस की ही सरकार थी। 1967 के चुनाव के बाद सात राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें बनीं जबकि केंद्र में कांग्रेसी सरकार।
बिहार में कांग्रेस को लोकसभा की आधी से अधिक सीटें मिलीं जबकि विधानसभा में आधी से कम। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आम मतदाता अधिक होशियार हैं। बिहार में 1965-66 में सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ जितना बड़ा आंदोलन हुआ था, उतना बड़ा आंदोलन केंद्र सरकार के खिलाफ नहीं हुआ।
1974-75 में जब बिहार व केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन हुआ तो 1977 के चुनाव में दोनों सरकारें चली गयीं। ऐसे उदाहरण अन्य राज्यों के संदर्भ में भी मिल सकते हैं।
राज्य सरकार चाहती है कि देश में लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव एक ही साथ हों। 1967 तक ऐसा ही होता था।
याद रहे कि अलग -अलग चुनाव होने से इस गरीब देश के काफी पैसे बेवजह बर्बाद होते रहते हैं। अपने जरूरी काम छोड़कर प्रशासन व पुलिस उन चुनावों में लगे रहते हैं। राजनीतिक दलों को अधिक कारपोरेट चंदा बटोरना पड़ता है। जो कारपोरेट अधिक चंदा जो देगा, वह देश का उतना ही अधिक शोषण करेगा। वैसे भी लगभग सभी दलों ने अनावश्यक रूप से चुनाव का खर्च बहुत बढ़ा लिया है। उसके बिना भी काम चल सकता है।
हां, अलग -अलग चुनाव होते रहने से कई नेताओं को जरूर निजी फायदा होता है। अधिक बार चंदा वसूली यानी उसे चंदे में से अपने लिए निकाल लेने की अधिक गुंजाइश।
कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि एक साथ चुनाव होने से राज्य के मुद्दे गौण हो जाएंगे। वे यह बात भूल जाते हैं कि 1957 में केरल में कम्युनिस्ट सरकार बन गयी थी जबकि देश में कांग्रेस की ही सरकार थी। 1967 के चुनाव के बाद सात राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें बनीं जबकि केंद्र में कांग्रेसी सरकार।
बिहार में कांग्रेस को लोकसभा की आधी से अधिक सीटें मिलीं जबकि विधानसभा में आधी से कम। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आम मतदाता अधिक होशियार हैं। बिहार में 1965-66 में सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ जितना बड़ा आंदोलन हुआ था, उतना बड़ा आंदोलन केंद्र सरकार के खिलाफ नहीं हुआ।
1974-75 में जब बिहार व केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन हुआ तो 1977 के चुनाव में दोनों सरकारें चली गयीं। ऐसे उदाहरण अन्य राज्यों के संदर्भ में भी मिल सकते हैं।
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