सोमवार, 4 जून 2018

हाल में राष्ट्रीय सहारा में जब उनका काॅलम छपना बंद हुआ तो मुझे आशंका हुई कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है।फिर तो दुःखद खबर ही आ गयी।
एक झटके की तरह।
उनके काॅलम को मैं जरूर पढ़ता था।
कई बार उनकी बातों से आप भले असहमत हों,पर इतना तो मानना पड़ेगा कि उनके विचारों मंे ताजगी और तर्कों मंे दम होता था।
राज किशोर जी उन कुछ पत्रकारों में शामिल थे जिनका कद उनके पद से बड़ा होता है। 
शब्द के सही अर्थाें में सचमुच अपूरणीय क्षति।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे और परिजन को दु;ख सहने की शक्ति ।

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