गत दो महीने के भीतर बिहार के दो सूचना अधिकार कार्यकत्र्ताओं की हत्या कर दी गयी।
अन्य कइयों की जान खतरे में है।पूरे देश में भी ऐसी हत्याएं होती रहती हैं।
2005 में जब सूचना अधिकार कानून बना था तो लोगों की उम्मीदें जगी थीं।लगा था कि अब जनता भी सांसदों-विधायकों की तरह सरकार से सूचनाएं मांग सकती है।
बहुत सी महत्वपूर्ण सूनाएं मिली भी।कुछ अब भी मिल रही हैं।पर धीरे -धीरे उसके प्रति लोगों का उत्साह कम होता जा रहा है।क्योंकि निहितस्वार्थी तत्वों द्वारा कठिनाइयां खड़ी की जा रही हैं।
दरअसल कानून बनाते समय ही शासन को इस बात का पूर्वानुमान होना चाहिए था कि इस क्षेत्र में काम करने वालों की जान खतरे में पड़ेगी क्योंकि यह कानून मूलतःनिहितस्वार्थी तत्वों पर गहरी चोट करता है।
यदि सरकार अच्छी हो तो सूचना अधिकार कार्यकत्र्ता परोक्ष रूप से सरकार का ही काम कर रहा होता है।हालांकि भ्रष्ट व निकम्मी सरकारों को यह कानून पसंद नहीं है।
किसी अच्छी सरकार के लिए सूचना अधिकार कार्यकत्र्ता आंख व कान का काम करते हैं जिस तरह कोई गवाह अदालत के लिए आंख-कान का काम करता है।
सूचना अधिकार कार्यकत्र्ता गण सरकारी लूट,भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को उजागर कर अंततः ईमानदार शासक का काम ही आसान करते हैं।
एक तरह से वे सरकार के गवाह होते हैं।
यदि देश में कभी गवाह सुरक्षा कानून बने तो उसके तहत सूचना अधिकार कार्यकत्र्ताओं को भी लाया जाना चाहिए।
गवाह सुरक्षा कानून जरूरी--
अन्य कानूनों की तरह सूचना अधिकार कानून के दुरुपयोग की भी खबरें आती रहती है।पर भयादोहन के काम में लगे उन सूचना अधिकार कार्यकत्र्ताओं की बात यहां नहीं की जा रही है।उनकी की जा रही है जो ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं।
गवाह सुरक्षा कानून के अभाव के कारण भी इस देश का
क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम ध्वस्त होता जा रहा है।इसी तरह सूचना अधिकार कानून भी।
सुप्रीम कोर्ट ने एक से अधिक बार सरकार से कहा कि वह गवाह सुरक्षा कानून बनाए।
हिमांशु सिंह सब्बरवाल बनाम मध्य प्रदेश केस में 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गवाह न्यायिक सिस्टम के आंख-कान हैं।यदि सरकार गवाहों की रक्षा नहीं करती तो वह राष्ट्र के आदर्श वाक्य सत्यमेव जयते को समर्थन-प्रोत्साहन नहीं करती।
पर गवाह सुरक्षा कानून में सरकार की कोई रूचि नहीं लगती।
दुनिया के जिन देशों में गवाह सुरक्षा कानून मौजूद हैं,उनमें अमेरिका,कनाडा,इजरायल,ब्रिटेन,आयरलैंड,इटली और थाइलैंड शामिल हैं।
अमेरिका में अदालतें 93 प्रतिशत मुकदमों में सजा सुना देती है।जापान में 99 प्रतिशत और ब्रिटेन में 80 प्रतिशत मामलों में
सजा हो जाती है।पर भारत का प्रतिशत 45 है।
नतीजतन हर तरह के अपराधी जितने निडर इस देश में हैं,उतने शायद कहीं ंनहीं।जिन मुकदमों में राजनीतिक नेता आरोपित होते हैं,उनमें से अनेक मामलों में सरकार बदलते ही गवाह भी बदल जाते हैं।
लाइव प्रसारण से सभाध्यक्ष का अधिकार प्रभावित--
राज्य सभा के निवत्र्तमान सभापति पी.जे.कुरियन ने एक अच्छी सलाह दी है।
अपने अनुभव के आधार पर उन्होंने सलाह दी है कि सदन की कवर्यवाही का लाइव प्रसारण बंद होना चाहिए।
क्योंकि लाइव प्रसारण के कारण सदन में असंसदीय आचरण को बढ़ावा मिला है।अनुशासनहीनता बढ़ी है।साथ ही विरोध प्रदर्शन भी बढ़े हैं।
कुरियन ने जो बात नहीं कही,वह यह कि कुछ सदस्य खुलआम चेयर की अवमानना करने लगे हैं।
दरअसल जिस समय लाइव प्रसारण का निर्णय हुआ उसी क्षण पीठासीन अधिकारियों से एक अधिकार अघोषित रूप से छीन लिया गया।वह अधिकार है किसी बात को सदन की कार्यवाही से निकाल देन का अधिकार।क्योंकि अब पीठासीन अधिकारी जब तक कार्यवाही से निकाल देने का आदेश देते हैं,उससे पहले लाइव प्रसारण के जरिए आपत्तिजनक बातें
जनता तक पहुंच चुकी होती है।
यदि प्रसारण जारी रखना हो तो उसे लाइव जारी नहीं किया जाना चाहिए।हालांकि कार्यवाही की रिकाॅडिंग जरूर हो। उस दिन की सदन की कार्यवाही समाप्त हो जाने के बाद रिकाॅर्ड किये गये टेप का संपादन हो।
आपत्तिजनक बात-व्यवहार को निकाल दिया जाए।फिर बाद में उसका प्रसारण हो।
जहां पांचवीं तक पढ़ा--
जिस स्कूल से मैंने पांचवीं कक्षा पास की थी,उस स्कूल में
हाल में गया था।
सारण जिले के दरिया पुर अंचल के खान पुर गांव स्थित साठ के दशक का वह अपर प्राइमरी स्कूल अब राम जयपाल सिंह उच्च विद्यालय बन चुका है।सैद्धांतिक तौर पर मान्यता तो इंटर की भी है,पर वह व्यवहार में नहीं है।
मैं जब वहां गया था तो संयोगवश कुछ स्थानीय गणमान्य लोग स्कूल में जुटे थे।
वे स्कूल की समस्याओं की चर्चा कर रहे हैं।
मुझे भी यह जान कर आश्चर्य हुआ कि जर्जर भवन के लिए
आवंटित पैसे बहुत पहले वापस हो चुके हैं।
यह भी पता चला कि जर्जर भवन के कभी भी गिर जाने की आशंका से बच्चे स्कूल जाने से घबराते हैं।
जब मैं वहां पढ़ता था तो उन दिनों उस खपरैल स्कूल की मरम्मत का जिम्मा समाज ने उठा रखा था।
अब तो खुद ही राज्य सरकार ऐसे भवनों पर उदारतापूर्वक खर्च कर रही है ।फिर भी किस कारणवश पैसे लौट जाते हैं और विद्यार्थी स्कूल नहीं जा पा रहे हैं,इसकी निरंतर देखरेख करने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है ?
सबक सिखाने लायक सजा---
पटना के जोनल आई.जी.नैयर हसनैन ने दो थानेदार और
10 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया है।
पूरा थाना लाइन हाजिर।
मुफ्त में सब्जी नहीं देने पर बाइक चोरी के गलत आरोप में जेल भेजने के कारण यह कार्रवाई की गयी।
कार्रवाई सराहनीय है।
पर क्या यह काफी है ?
इससे पहले शराब के अवैध कारोबारियों के साथ साठगांठ करने के आरोप में पटना के एक थाने के सारे पुलिसकर्मियों को वहां से हटा दिया गया था।
इसके बावजूद स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है।
जहां तक मुफ्त सब्जी तथा अन्य सामान वसूलने का सवाल है,वह तो लगभग सर्वव्यापी है।
ऐसी शिकायतें प्राप्त करने के लिए सिनियर एस.पी.के आॅफिस में एक कोषांग खोला जाना चाहिए ।
एक भूली बिसरी याद--
समाजवादियों की पाक्षिक पत्रिका ‘सामयिक वात्र्ता’ @16 सितंबर, 1977@ने जेपी से सवाल किया था,आपने लिखा है कि आपने आर.एस.एस.को आंदोलन की सर्व धर्म समभाव वाली धारा में लाकर साम्प्रदायिकता से मुक्त करने की कोशिश की है।
आपने यह दावा भी किया कि आर.एस.एस. के लोग कुछ हद तक बदले भी हैं।क्या आप यह मानते हैं कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने हिन्दू राष्ट्र के विचार को त्याग दिया है ?
इस सवाल के जवाब में जय प्रकाश नारायण ने कहा था कि ‘
आर.एस.एस.के नेताओं और कार्यकत्र्ताओं से अपने सम्पर्क के दौरान मुझे निश्चय ही उनके दृष्टिकोण में परिवत्र्तन नजर आया।
उनमंे अब अन्य समुदायों के प्रति शत्रुता की भावना नहीं है।लेकिन अपने मन वे अब भी हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा में विश्वास करते हैं।
वे यह कल्पना करते हैं कि मुसलमान और ईसाई @जैसे अन्य समुदाय @तो पहले से संगठित हैं जबकि हिन्दू बिखरे हुए
और असंगठित हैं। इसलिए वे हिन्दुओं को संगठित करना अपना मुख्य काम मानते हैं।
संघ के नेताओं के इस दृष्टिकोण में पवित्र्तन होना चाहिए।
मैं यही आशा करता हूं कि वे हिन्दू राष्ट्र के विचार को त्याग देंगे और उसकी जगह भारतीय राष्ट्र के विचार को अपनाएंगे।
भारतीय राष्ट्र का विचार सर्व धर्म समभाव वाली अवधारणा है और यह भारत में रहने वाले सभी समुदायों को अंगीकार करता है।’
और अंत में--
बिहार सरकार ने दाना पुर से खगौल तक की मौजूदा दो लेन वाली सडक़ को आठ लेन में बदल देने का निर्णय किया है।
इससे बेहतर खबर और कोई नहीं हो सकती।पर राज्य सरकार को इस सड़क के बायें -दायें बस रहे बेतरतीब मुहल्लों के बारे में भी जल्द ही विचार कर लेना होगा।
अन्यथा कुछ साल बाद ये मुहल्ले हर बरसात में ‘तैरता शहर’ कहलाएंगे।क्योंकि बड़े -बड़े मकान तो बन रहे हैं,पर जल निकासी की पोख्ता व्यवस्था नहीं हो रही।
खैर ,आठ लेन की सड़क से ‘तैरता शहर’ देखना कैसा लगेगा ?
@प्रभात खबर-बिहार-में 29 जून 2018 को प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से@
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