मंगलवार, 12 जून 2018

उपचुनाव नतीजों से आगे के संकेत

बिहार में आप यदि किसी स्कूली छात्र से भी पूछेंगे कि जिस चुनाव क्षेत्र में 70 प्रतिशत अल्पसंख्यक आबादी हो तो वहां से कौन पार्टी जीतेगी तो वह बिना देर किए बता देगा-राजद।

जोकी हाट में यही हुआ है। वहां 70 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। इसलिए जोकी हाट विधानसभा क्षेत्र में राजद उम्मीदवार की जीत को किसी लालू वाद से कोई संबंध नहीं है। वैसे कोई कुछ भी कहे, पर पूरे बिहार में मुस्लिम और यादव मतदाताओं के अधिकतर वोट उसे ही मिलेंगे जिस उम्मीदवार पर लालू प्रसाद की मुहर होगी। चाहे राजद गठबंधन जितनी सीटें जीते।

राज्य के जिन चुनाव क्षेत्रों में यादव-मुस्लिम वोटर मिलकर निर्णायक होंगे, वहां अगले किसी भी चुनाव में राजद या उसके सहयोगी दल ही जीतेंगे। यह बात पिछले कई चुनावों मेंं भी साबित हुई है। इक्के—दुक्के अपवादों की बात और है। इस बार भी जोकीहाट में यह साबित हुई।

जोकीहाट में जीत के बाद राजद का यह कहना कि यह लालूवाद की जीत है, एक राजनीतिक बयानबाजी से कुछ अधिक नहीं। इसे एक नया जुमला भी कह सकते हैं। इसी तरह की बयानबाजी बिहार में हुए गत मार्च के उपचुनाव के बाद भी हुई थी।

मार्च में अररिया लोकसभा चुनाव क्षेत्र और भभुआ तथा जहानाबाद विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव हुए थे। खाली होने से पहले जो सीट जिसके पास थी, वह उस दल को मिली। यानी न तो किसी की हार हुई न किसी की जीत। फिर भी उस रिजल्ट को भी कुछ इसी तरह परिभाषित किया गया। हालांकि मार्च उपचुनाव के रिजल्ट का सघन विश्लेषण किया जाए तो उससे राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन को खुश होने का कोई कारण नहीं था। 

यदि कोई दलीय गठबंधन आठ में से पांच विधानसभा सीटें जीत जाए तो उसे खुशी मनानी चाहिए या उस अन्य गठबंधन को खुश होना चाहिए जिसे उनमें से सिर्फ तीन ही सीटें ही मिलीं ?

अररिया लोकसभा उपचुनाव नतीजे को विस्तार से समझिए। राज्य में अररिया लोकसभा और भभुआ तथा जहानाबाद विधानसभा क्षेत्रों के लिए 11 मार्च को उपचुनाव हुए थे।

 राजद ने अररिया और जहानाबाद सीटें जीतीं।पहले भी ये सीटें उसी के पास थीं। भाजपा ने भी अपनी भभुआ सीट बचा ली।

 2014 के लोक सभा चुनाव में अररिया से राजद के तसलीमुद्दीन विजयी हुए थे। 2015 के विधान सभा चुनाव में भभुआ

से भाजपा और जहानाबाद से राजद की जीत हुई थी । राजद,जदयू और कांग्रेस ने महा गठबंधन बना कर 2015 को बिहार विधान सभा का चुनाव लड़ा था। 

मार्च के  उप चुनावों के नतीजे के गहन अध्ययन से राजग को फायदा मिलता नजर आया। अररिया लोक सभा चुनाव क्षेत्र के भीतर छह विधान सभा क्षेत्र हैं। उप चुनाव में छह में से चार सीटों पर राजग की बढ़त रही और सिर्फ दो सीटों पर राजद को बढ़त मिली। इसमें भभुआ को मिला दें तो राजग  कुल पांच विधान सभा सीटों पर राजद से आगे रहा।

    हां, मार्च के उप चुनाव नतीजों से यह बात साफ हुई थी कि  राजद के पक्ष में मुस्लिम -यादव समीकरण के मतों की एकजुटता पहले की अपेक्षा बढ गय़ी। मतदान में आक्रामकता भी बढ़ी। हालांकि अररिया लोक सभा उप चुनाव में अल्पसंख्यक मतदाताओं के ध्यान में नरेंद्र मोदी अधिक थे।अगले लोक सभा चुनाव में भी वैसा ही रहने की उम्मीद है।

   नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद सन 2014 के लोक सभा चुनाव में मुस्लिम-यादव  बहुल क्षेत्र अररिया से राजद के तसलीमुद्दीन विजयी हुए थे। तसलीमुद्दीन के निधन से सीट खाली हुई थी। तसलीमुद्दीन के पुत्र सरफराज आलम मार्च में  राजद के उम्मीदवार थे।उप चुनाव में सरफराज विजयी रहे।

सरफराज हाल तक जदयू विधायक थे।उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया। उसके बाद राजद की ओर अपने पिता की सीट पर उम्मीदवार बने। अररिया लोक सभा क्षेत्र के भीतर पड़ने वाले जोकीहाट और अररिया विधान सभा चुनाव क्षेत्रों में राजद को भारी बढ़त मिली।

दशकों से वह तसलीमुददीन के प्रभाव वाला इलाका रहा। तसलीमुददीन भी कई बार सांसद व विधायक रहे। केंद्र में राज्य मंत्री भी थे। फिर भी गत लोक सभा उप चुनाव में अररिया के  चार विधान सभा खंडों में भाजपा के उम्मीदवार प्रदीप कमार सिंह को बढ़त मिल गयी।

    इसके अलावा भभुआ विधान सभा चुनाव क्षेत्र में भाजपा की जीत से राजग बिहार में चुनावी भविष्य के प्रति आशान्वित हुआ।क्योंकि वहां जातियों की दृष्टि से लगभग मिलीजुली  आबादी है।

 यानी भभुआ विधान सभा क्षेत्र तथा अररिया लोक सभा चुनाव क्षेत्र के नीचे पड़ने वाले चार विधान सभा खंडों के चुनाव नतीजे को देखकर यह तब भी कहा गया   कि बिहार की राजग सरकार से आम लोगों का अभी मोहभंग नहीं हुआ है।इसलिए कि ऐसी ही मिलीजुली आबादी वाले बिहार में अधिकतर विधान सभा क्षेत्र हैं।मिलीजुली आबादी यानी  जातीय दृष्टि से भी मिली जुली आबादी वाला चुनाव क्षेत्र । 

  हां, राजद के वोट बैंक यानी एम.वार्इ. वर्चस्व वाले चुनाव  क्षेत्र  अररिया और जहानाबाद में राजद उम्मीदवारों के पहले की अपेक्षा बेहतर प्रदर्शन को लेकर तरह -तरह के अनुमान लगाए गए।क्या लालू प्रसाद के जेल जाने से  मतदाताओं के एक वर्ग में बढ़ी सहानुभूति के कारण उनके वोट बैंक में एकजुटता और आक्रामकता बढ़ी  ?

क्या दिवंगत जन प्रतिनिधियों के परिजन के लिए मतदाताओं में भारी सहानुभूति के कारण वोट बढ़े  ? या कोई और बात रही ? पर सवाल यह भी है कि क्या अगले किसी चुनाव में बिहार के वैसे चुनाव क्षेत्रों में भी राजद को बढ़त मिलेगी जहां यादव-मुस्लिम वोट निर्णायक नहीं हैं ?

यदि ऐसा हुआ तो माना जाएगा कि वह लालू वाद की जीत है।

लाूल प्रसाद की राजनीतिक ताकत का अनुमान लगाने के लिए दो पिछले चुनावों की चर्चा प्रासंगिक होगी। राजद और लोजपा ने 2010 में   बिहार विधान सभा चुनाव मिल कर लड़ा था। 243 सदस्यीय विधान सभा में इन्हें 25 सीटें आईं।

चारा घोटाला केस में सन 2013 में लालू प्रसाद को पहली बार सजा हुई थी।
सजा की घोषणा के तत्काल बाद राजद नेताओं ने कहा था कि हम अब लोक सभा की सभी 40 सीटें जीत लेंगे।क्योंकि जनता लालू प्रसाद को परेशान करने का बदला लेगी।

पर 2014 के लोक सभा चुनाव में राजद को बिहार में सिर्फ 4 सीटें ही मिलीं। हाल के उप चुनाव नतीजे भी पूरे बिहार में राजद के लिए कोई खास उम्मीद नहीं जगा रहे हैं। वैसे दल का हौसला बनाये रखने के लिए बड़े -बड़े दावे तो हर दल करता ही  रहता  है।यदि राजद भी कर रहा है तो उसमें किसी कोई एतराज नहीं होना चाहिए।

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जोकीहाट विधान सभा उप चुनाव रिजल्ट--2018

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शाहनवाज आलम -राजद- 81240

मुर्शीद आलम---जदयू--40016

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अररिया लोक सभा क्षेत्र--उप चुनाव-मार्च,2018

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 विधान सभा क्षेत्र--  राजग --- महागठबंधन

नरपत गंज--        88349 ---- 69697

रानी गंज ----     82004 ---- 66708

फरबिस गंज         93739 -----74498

सिकटी-------   87070 ----- 70400

जोकी हाट-----   39517------120765

अररिया------    56834 ----- 107260

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(3 जून 2018 को हस्तक्षेप -राष्ट्रीय सहारा -में प्रकाशित)


    

  



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