गुरुवार, 21 जून 2018

----पीने वालों से अधिक बेचने-बेचवाने वालों पर कड़ी नजर रखे शासन --सुरेंद्र किशोर---


मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने कठोर शराब बंदी कानून में कुछ संशोधन का कल संकेत दिया है।याद रहे कि 2 नवंबर, 2016 को भी मुख्य मंत्री ने कहा था कि ‘इस कानून को कुछ लोग  तालीबानी कानून तो जरूर कहते हैं ,पर मांगने पर भी वे इसमें ऐसे किसी संशोधन के लिए कोई सुझाव नहीं देते ताकि इसे कारगर भी बनाये रखा जाए और इससे किसी को नाहक परेशान भी नहीं होना पड़े।’
 दरअसल अब ऐसे किसी संशोधन से पहले राज्य सरकार को इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट  के निर्णय का इंतजार है।उससे पहले 
 इस कानून के क्रियान्वयन में आ  रही  समस्याओं को लेकर 
राज्य सरकार खुद भी विचार -मंथन करती रही है।
किसी भी अच्छी मंशा वाली सरकार को ऐसा करना ही चाहिए।
 शराबबंदी अच्छी मंशा से उठाया गया एक सही कदम हैं।इसके लाभ अधिक हैं।इस कानून का कुछ लोगों द्वारा  दुरूपयोग भी हो रहा है।पर,इससे पीछे नहीं जाया जा सकता है।
  स्वाभाविक ही है कि कुछ भ्रष्ट अधिकारी व कर्मचारी ऐसे कठोर कानून का स्वार्थवश दुरूपयोग करें।
  अनुभवों से सीख कर राज्य सरकार उस कानून में संशोधन करना चाहती है तो उसका स्वागत होना चाहिए।
कुछ संशोधनों  से इस कानून का सार्थकता बढ़ सकती है।
 पहला काम तो यह होना चाहिए कि यह कानून शराब बिक्रेताओं की ओर अपेक्षाकृत अधिक मुखातिब हो।
फिर शासन के उन लोगों की ओर जो लोग बिक्रेताओं की मदद कर रहे हैं।
 शराबियों पर भी कार्रवाई हो ,पर अधिक ध्यान उन दो लोगों पर रहे।वैसे भी यदि शराब को दुर्लभ वस्तु बना दिया जाए तो वह शराबियों तक कितनी पहुंच पाएगी ?
 यह आम चर्चा  है कि शराबबंदी के बाद अनेक पुलिसकर्मियों की आय बढ़ गयी है। 
 एक खबर के अनुसार गुजरात में दवा के नाम पर 61 हजार लोगों को शराब पीने का परमिट मिला हुआ है।
बाहर से गुजरात जाने वालों को भी अस्थायी परमिट मिलता है।पर ऐसे परमिट की कुछ शत्र्तें हैं।डाक्टर का प्रमाण पत्र चाहिए  जिसमें यह लिखा होता है कि ‘इनकी शारीरिक- दिमागी हालत ऐसी है कि इनके लिए शराब पीना जरूरी है।’
 सन 1977 में देश में शराबंदी लागू हुई थी।उस समय बिहार में भी हमने देखा था कि डाक्टरों की सिफारिश पर शासन  परमिट जारी करता था।
 बिहार में 2016 में जब शराबबंदी लागू की गयी तो इन बातों का ध्यान नहीं रखा गया।यहां तक कि दवा के नाम पर भी कोई छूट नहीं रही जैसी मोरारजी देसाई -कर्पूरी ठाकुर के शासन काल में भी थी।
  शराबबंदी के निर्णय को उलटना तो और भी नुकसानदेह होगा।हालांकि बहुत से लोग यही चाहते हैं।पर विभिन्न पक्षों के लोगों को कुछ राहत देकर इसे आसानी से लागू करने का रास्ता बनाया जा सकता है।अभी तो जो खबरें आ रही हैं,उनके अनुसार बिहार में शराबबंदी है भी और नहीं भी है।हां,पियक्कडों ने सड़कों पर हंगामा काफी कम कर दिया है।
 पहले तो बारात जुलूस,सरस्वती मूत्र्ति विसर्जन ,दुर्गा पूजा आदि के अवसरों पर सड़कों पर निकलना कठिन था। 
  हां, इस कानून से ऐसे लोगों को राहत देने की सख्त जरूरत है जिनके पास जमानत देकर छूटने का साधन तक नहीं।
 हां,आदतन शराबियोंं को,जो यदाकदा शराब पीकर सार्वजनिक स्थानों पर हंगामा करते हैं,परिजन को प्रताडि़त करते हैं,सजा स्वरूप कुछ सरकारी सुविधाओं से वंचित करने के बारे में विचार किया जा सकता है।
@---प्रभात खबर - बिहार - 7 जून, 2018@ 

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