गत लोकसभा चुनाव के दौरान, खासकर टिकट वितरण के समय एक चर्चा आम थी। हालांकि ऑफ द रिकॉर्ड ही सही, पर कई प्रमुख लोग यह कहते सुने गए थे कि टिकट बेचे -खरीदे जा रहे हैं।
वैसे तो देश के कुछ दूसरे हिस्सों से बेचने-खरीदने की खबरें पहले से भी आती रही थी, पर इस बार बिहार भी इसमें पीछे नहीं रहा। हालांकि चर्चा को यदि सही मानें तो टिकट खरीदने वाले लगभग अधिकतर उम्मीदवार चुनाव हार गए।
हां, इसमें मीडिया की एक खास भूमिका हो सकती थी। स्टिंग आपरेशन करके कुछ खरीदने-बेचने वालों के बारे में आम लोगों को बताना चाहिए था। पर, यह काम नहीं हो सका।
खैर, कोई बात नहीं, इस बार नहीं तो अगली बार सही। यदि यह प्रचलन सचमुच जारी है तो अगले चुनाव में भी तो जारी ही रहेगा।
वैसे तो देश के कुछ दूसरे हिस्सों से बेचने-खरीदने की खबरें पहले से भी आती रही थी, पर इस बार बिहार भी इसमें पीछे नहीं रहा। हालांकि चर्चा को यदि सही मानें तो टिकट खरीदने वाले लगभग अधिकतर उम्मीदवार चुनाव हार गए।
हां, इसमें मीडिया की एक खास भूमिका हो सकती थी। स्टिंग आपरेशन करके कुछ खरीदने-बेचने वालों के बारे में आम लोगों को बताना चाहिए था। पर, यह काम नहीं हो सका।
खैर, कोई बात नहीं, इस बार नहीं तो अगली बार सही। यदि यह प्रचलन सचमुच जारी है तो अगले चुनाव में भी तो जारी ही रहेगा।
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