गुरुवार, 31 मई 2018

 पटना के ‘प्रभात खबर’ ने बिहार के जल संकट पर आज सचित्र सामग्री प्रकाशित की है।आंखें खोलने वाली है।
 चेत जाने का समय अभी बचा है।बाद में वह भी नहीं बचेगा।
    90 के दशक में बिहार में ढाई लाख के करीब तालाब हुआ करते थे।
आज राज्य में सिर्फ 93 हजार हैं।
अखबार के अनुसार जल निकायों की संख्या 199 लाख हैं  जिनमें सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब भी 12027 जल निकाय अतिक्रमण के शिकार हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निदेश है कि तालाब को भर कर उस पर भवन या उससे संबंधित किसी प्रकार का निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता।सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में ही राज्य सरकारों से कहा था कि वे तालाबों का अतिक्रमण रोकने के लिए कड़ी व त्वरित कार्रवाई करें।
  पर लगता है कि न तो सरकार और न ही अतिक्रमणकारी यह समझने  को तैयार हैं कि ‘जल ही जीवन है।’
आखिर  हम जल संचय का महत्व कब समझेंगे ? 
  आशुतोष चतुर्वेदी ने ठीक ही लिखा है कि ‘पानी का मौजूदा संकट सिर्फ पानी की कमी और मांग बढ़ने से ही नहीं है।
इसमें जल प्रबंधन की कमी का बहुत बड़ा हाथ है।
दरअसल सबसे बड़ी समस्या यह है कि बारिश का पानी बाहर निकल जाता है।उसके संचयन का कोई उपाय नहीं है।इसे चेक डैम अथवा तालाबों के जरिए रोक लिया जाये तो साल भर खेती और पीने के पानी की समस्या नहीं होगी।’
@30 मई 2018@

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