नये -पुराने ‘गिद्धों’ की संक्षिप्त कहानी
कई दशक पहले की बात है। उत्तर बिहार में भारी बाढ़ आई हुई थी। प्रजा में हाहाकार मचा था।
आसपास के राज्यों से राहत सामग्री पटना पहुंच रही थी। स्वाभाविक है कि गिद्ध भी खूब सक्रिय हो उठे थे। इधर का माल उधर हो रहा था।
उधर सभी बाढ़पीड़ितों तक राहत सामग्री जरूरत से कम पहुंच पा रही थी। कैसे पहुंचेगी? इस बीच मंत्री बना एक गिद्धराज ‘राजा’ से नाराज हो गया। ‘गिद्धराज’ को शिकायत थी कि उन्हें कम ‘मौके’ नहीं मिल पा रहे थे। राजा ने किसी को आदेश दिया-दो ट्रक माल मंत्री जी के घर पहुंचा दिया जाए। पहुंचा दिया गया।
मंत्री जी ने उसे औने -पौने दाम में व्यापारियों को बेच दिया। उन्हीं व्यापारियों ने फिर अधिक दाम पर उसे अत्यंत जरूरतमंद बाढ़पीड़ितों तक पहुंचवा दिया।
मौजूदा कोरोना विपत्ति में जब पता चला कि पटना के पास के एक गांव में शासन ने एक्सपायरी डेट का डेटाॅल बंटवा दिया तो कुछ जागरूक लोग नाराज हो गए। स्वाभाविक ही है। जान से खिलवाड़ ???
अरे भई, अभी तो जानकारियों की शुरुआत हुई है। आगे-आगे देखते जाइए गिद्धो-महा गिद्धों
की चोंच का कमाल !! पक्षीराज गिद्ध की भले कमी हो रही है। पर मनुष्य के रूप में गिद्धों की संख्या तो बढ़ती ही जा रही है।
अन्यथा, आजादी के बाद इस देश को एक बार फिर सोने का चिड़िया बनने से भला कौन रोक सकता था! सिर्फ 1947 से 1985 के बीच में सौ पैसे घिसकर 15 पैसे नहीं हो गये होते तो आज स्वास्थ्य संबंधी आधारभूत संरचना की जो भारी कमी महसूस की जा रही है, वह कमी रहती ?!!
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---सुरेंद्र किशोर--31 मार्च 2020
कई दशक पहले की बात है। उत्तर बिहार में भारी बाढ़ आई हुई थी। प्रजा में हाहाकार मचा था।
आसपास के राज्यों से राहत सामग्री पटना पहुंच रही थी। स्वाभाविक है कि गिद्ध भी खूब सक्रिय हो उठे थे। इधर का माल उधर हो रहा था।
उधर सभी बाढ़पीड़ितों तक राहत सामग्री जरूरत से कम पहुंच पा रही थी। कैसे पहुंचेगी? इस बीच मंत्री बना एक गिद्धराज ‘राजा’ से नाराज हो गया। ‘गिद्धराज’ को शिकायत थी कि उन्हें कम ‘मौके’ नहीं मिल पा रहे थे। राजा ने किसी को आदेश दिया-दो ट्रक माल मंत्री जी के घर पहुंचा दिया जाए। पहुंचा दिया गया।
मंत्री जी ने उसे औने -पौने दाम में व्यापारियों को बेच दिया। उन्हीं व्यापारियों ने फिर अधिक दाम पर उसे अत्यंत जरूरतमंद बाढ़पीड़ितों तक पहुंचवा दिया।
मौजूदा कोरोना विपत्ति में जब पता चला कि पटना के पास के एक गांव में शासन ने एक्सपायरी डेट का डेटाॅल बंटवा दिया तो कुछ जागरूक लोग नाराज हो गए। स्वाभाविक ही है। जान से खिलवाड़ ???
अरे भई, अभी तो जानकारियों की शुरुआत हुई है। आगे-आगे देखते जाइए गिद्धो-महा गिद्धों
की चोंच का कमाल !! पक्षीराज गिद्ध की भले कमी हो रही है। पर मनुष्य के रूप में गिद्धों की संख्या तो बढ़ती ही जा रही है।
अन्यथा, आजादी के बाद इस देश को एक बार फिर सोने का चिड़िया बनने से भला कौन रोक सकता था! सिर्फ 1947 से 1985 के बीच में सौ पैसे घिसकर 15 पैसे नहीं हो गये होते तो आज स्वास्थ्य संबंधी आधारभूत संरचना की जो भारी कमी महसूस की जा रही है, वह कमी रहती ?!!
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---सुरेंद्र किशोर--31 मार्च 2020