सार्वजनिक धन लूटने वाले सफेदपोशों
के लिए भी फांसी की सजा का प्रावधान हो।
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यू.पी.के पूर्व डी.जी.पी.प्रकाश सिंह ने कुछ साल
पहले लिखा था कि किसी एक व्यक्ति को फांसी पर लटका दिए जाने पर हत्या के लिए उठे सात अन्य हाथ अपने- आप रुक जाते हैं।
संभवतः उन्होंने किसी विदेशी रिसर्च के आधार पर यह बात कही थी।
यदि सचमुच यहां भी ऐसा होता हो तो फांसी की सजा का प्रावधान भ्रष्टों के लिए भी होना ही चाहिए।
यह संयोग नहीं है कि फांसी की सजा का विरोध करने वालों में वे तत्व अधिक हैं जो आर्थिक लुटेरों,राष्ट्रद्रोहियों व अतिवादियों की भी किसी न किसी बहाने वकालत करते रहते हैं।या, उनके हमराही हैं।
भ्रष्टाचार के मामले में भी फांसी की सजा का प्रावधान चीन में मौजूद है।
अमीर देश का भ्रष्टाचार वहां के लोगों की सुविधाओं में थोड़ी कमी करता है।
पर भारत का भ्रष्टाचार कई बार गरीब लोगों की जान तक ले लेता है।
आम तौर पर सरकारी अस्पतालों में भीषण भ्रष्टाचार के कारण ही मरीजों के उचित इलाज के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं रहते।
10 करोड़ रुपए या उससे अधिक के किसी तरह के घोटालेबाज के लिए फांसी की सजा का प्रावधान हो।
यह इसलिए भी जरुरी हो गया है क्योंकि राजनीतिक
कार्यपालिका के शीर्ष पदों पर इक्के- दुक्के अत्यंत ईमानदार व्यक्ति के असीन हो जाने के बावजूद भ्रष्ट लोग बाज नहीं आ रहे हैं।
वे समझते हैं कि पैसे के बल पर सजा से बच जाएंगे।
या, हल्की सजा ही तो होगी।
यानी वे मानते हैं कि भ्रष्टाचार के ‘‘व्यापार’’ में घाटा कम और मुनाफा अधिक है।
अब उनमें फांसी का भय पैदा करके तो देखिए।
दरअसल सत्तर के दशक से ही राजनीति व सरकारों में भ्रष्टाचार को जिस पैमाने पर संस्थागत रूप दे दिया गया,उससे उसके निर्मूलीकरण का काम आज काफी कठिन हो गया है।
खबर है कि भ्रष्टाचार की जड़ सांसद फंड की समाप्ति के लिए मुट्ठी भर सांसदों को छोड़कर कोई सांसद आज तैयार नहीं है।
जबकि वह भ्रष्टाचार का ‘‘रावणी अमृत कुंड’’ बन चुका है।
एक नोबल विजेता को भी मोदी राज के बारे में गत साल यह कहने की हिम्मत हो गई कि
‘‘चाहे यह भ्रष्टाचार का विरोध हो या भ्रष्ट के रूप में देखे जाने का भय,शायद भ्रष्टाचार अर्थ व्यवस्था के पहियों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण था,इसे काट दिया गया है।
मेरे कई व्यापारिक मित्र मुझे बताते हैं निर्णय लेेने की गति धीमी हो गई है।.............’’
क्या इस देश की किस्मत में 1971 के नागरवाला बैंक घोटाले से लेकर आज के माल्या बैंक घोटाले ही लिखे हुए हंै ?
क्या फांसी से कम सजा से घोटालेबाज डरेंगे ?
---सुरेंद्र किशोर --20 मार्च 20
के लिए भी फांसी की सजा का प्रावधान हो।
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यू.पी.के पूर्व डी.जी.पी.प्रकाश सिंह ने कुछ साल
पहले लिखा था कि किसी एक व्यक्ति को फांसी पर लटका दिए जाने पर हत्या के लिए उठे सात अन्य हाथ अपने- आप रुक जाते हैं।
संभवतः उन्होंने किसी विदेशी रिसर्च के आधार पर यह बात कही थी।
यदि सचमुच यहां भी ऐसा होता हो तो फांसी की सजा का प्रावधान भ्रष्टों के लिए भी होना ही चाहिए।
यह संयोग नहीं है कि फांसी की सजा का विरोध करने वालों में वे तत्व अधिक हैं जो आर्थिक लुटेरों,राष्ट्रद्रोहियों व अतिवादियों की भी किसी न किसी बहाने वकालत करते रहते हैं।या, उनके हमराही हैं।
भ्रष्टाचार के मामले में भी फांसी की सजा का प्रावधान चीन में मौजूद है।
अमीर देश का भ्रष्टाचार वहां के लोगों की सुविधाओं में थोड़ी कमी करता है।
पर भारत का भ्रष्टाचार कई बार गरीब लोगों की जान तक ले लेता है।
आम तौर पर सरकारी अस्पतालों में भीषण भ्रष्टाचार के कारण ही मरीजों के उचित इलाज के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं रहते।
10 करोड़ रुपए या उससे अधिक के किसी तरह के घोटालेबाज के लिए फांसी की सजा का प्रावधान हो।
यह इसलिए भी जरुरी हो गया है क्योंकि राजनीतिक
कार्यपालिका के शीर्ष पदों पर इक्के- दुक्के अत्यंत ईमानदार व्यक्ति के असीन हो जाने के बावजूद भ्रष्ट लोग बाज नहीं आ रहे हैं।
वे समझते हैं कि पैसे के बल पर सजा से बच जाएंगे।
या, हल्की सजा ही तो होगी।
यानी वे मानते हैं कि भ्रष्टाचार के ‘‘व्यापार’’ में घाटा कम और मुनाफा अधिक है।
अब उनमें फांसी का भय पैदा करके तो देखिए।
दरअसल सत्तर के दशक से ही राजनीति व सरकारों में भ्रष्टाचार को जिस पैमाने पर संस्थागत रूप दे दिया गया,उससे उसके निर्मूलीकरण का काम आज काफी कठिन हो गया है।
खबर है कि भ्रष्टाचार की जड़ सांसद फंड की समाप्ति के लिए मुट्ठी भर सांसदों को छोड़कर कोई सांसद आज तैयार नहीं है।
जबकि वह भ्रष्टाचार का ‘‘रावणी अमृत कुंड’’ बन चुका है।
एक नोबल विजेता को भी मोदी राज के बारे में गत साल यह कहने की हिम्मत हो गई कि
‘‘चाहे यह भ्रष्टाचार का विरोध हो या भ्रष्ट के रूप में देखे जाने का भय,शायद भ्रष्टाचार अर्थ व्यवस्था के पहियों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण था,इसे काट दिया गया है।
मेरे कई व्यापारिक मित्र मुझे बताते हैं निर्णय लेेने की गति धीमी हो गई है।.............’’
क्या इस देश की किस्मत में 1971 के नागरवाला बैंक घोटाले से लेकर आज के माल्या बैंक घोटाले ही लिखे हुए हंै ?
क्या फांसी से कम सजा से घोटालेबाज डरेंगे ?
---सुरेंद्र किशोर --20 मार्च 20
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