तीस साल पहले बिहार आकर नरभसा गए थे शरद जोशी !!
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1 अप्रैल, 1990 के नवभारत टाइम्स में प्रकाशित व्यंग्यकार शरद जोशी का उस चर्चित ‘आइटम’ का एक छोटा अंश यहां प्रस्तुत किया जा रहा है जिसे आज भी कुछ लोग पढ़ना चाहते हैं।
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तब पटना रेलवे स्टेशन पर कुली ने शरद जोशी से
पूछा था,
‘‘आप इतने नरभस क्यों हो रहे हैं ?’’
फिर क्या था नवभारत टाइम्स ने जोशी जी के संबंधित लेख का शीर्षक ही लगा दिया। अखबार का डिसिजन सही ही था !!
‘बिहार पहुंच कर नरभसा गए शरद जोशी।’
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उस व्यंग्य लेख का एक पोरशन पढ़िए--
पूरा लेख यहां देने पर शायद नभाटा काॅपीराइट का दावा कर दे !
थोड़ा देने पर शायद एपोलाॅजी करके मैं बच जाऊं !
लोहा मानना पड़ेगा राजेंद्र माथुर के संपादकत्व में निकल रहे तब के नभाटा की संपादकीय टीम की कल्पनाशीलता व श्रेष्ठ पत्रकारिता का।
रज्जू बाबू ने इंदौर के नईदुनिया से दिल्ली पहंुचकर न सिर्फ एक उदास अखबार को ताजगी व जीवंतता से भर दिया,बल्कि अपने साथ अपने कल्पनाशील मित्र शरद जोशी से भी रोजाना काॅलम लिखवाया।
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जोशी जी की बेजोड़ कलम की बानगी देखिए--
जिन चीजों के हम बिहारी अभ्यस्त हो चुके हैं और हमें
उनमें कोई प्राब्लम नहीं लगती,उसी में से जोशी जी ने एक
कालजयी व्यंग्य लेख निकाल ही लिया।
‘‘ ........बड़ा प्राब्लम है।मैं जब पटना उतरा तो मुझसे पूछा गया कि
‘क्या आप टूल डाउन से आ रहे हैं ?’
मैंने हड़ताल के अर्थ में टूल डाउन मुहावरा सुना था इसलिए मुझे यह समझने में बड़ी कठिनाई हुई कि यहां टूल डाउन से तात्पर्य ट्वेल्व डाउन से है जो ट्रेन के लिए कहा जाता है।
वहीं कुली के मुख से नरभस शब्द सुना।
इन्क्वायरी की खिड़की पर मेरे प्रश्न के उत्तर में बिहारी अंग्रेजी के वाक्य का अर्थ निकालने का प्रयत्न करते हुए बार -बार मेरी नजर अपनी अटैची पर जा रही थी।
मुझे डर लग रहा था कि जल्दबाज प्रवृत्ति का वह कुली चल न दे।
तब इत्मिनान दिलाते हुए उस कुली ने मुझे कहा , ‘‘आप इतने नरभस क्यों हो रहे हैं ?’’
नरवस शब्द नरभस हो वहां की बोली में समा जाएगा,मैंने सोचा न था।
जब मैंने यह किस्सा पटना में एक सज्जन को सुनाया तो उन्हें आश्चर्य नहीं हुआ।
वे बोले,आप नरभसाए रहे होंगे,तभी कुली ने देख कर कहा होगा।
यह सुन अंग्रेजी के सुरक्षित भविष्य को लेकर मेरे मन में कोई संदेह नहीं रह गया।
जहां अंग्रेजी का नरवस नरभसाए होकर जीवित है ,वहां अंग्रेजी के लिए नरवस होने का सवाल ही नहीं उठता।
बिहार बिलकुल बदल गया है।पटना में अब भवन या मंजिल नहीं बनते
वहां अब अपार्टमेंट और काम्पलेक्स बन गए हैं।
आदमी बहुत व्यावहारिक और स्पष्ट वक्ता हो गया है।
अतीत से लेकर भविष्य तक को एक मिनट में गड्डमड्ड करके वह अपनी बात कह सकता है।
जैसे उसके मुख से यह वाक्य सुनकर चैंकना नहीं चाहिए कि राम ने रावण का मर्डर किया था।
.........कुछ वाक्य मैंने सुने,वे ऐसे थे।
‘‘नौभारत टाइम्स को शुरू में डिफिकल्टी रहा,पर बाद में पब्लिक उसे लाइक करने लगा।’’
‘‘सी.एम.आजाद बड़े आनेस्ट थे, पर जब वे रांग आदमी का पाइंट आॅफ व्यू सुनने से रिफ्यूज करने लगे तब उन्हें बदलना पड़ा।’’
‘‘लगता है कि आप प्राब्लम में बहुत इन्भाल्ब हो गए हैं।’’
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मुझे लगता है कि यदि मैं अधिक दिनों तक बिहार में रहता तो वहां की भाषा की प्राब्लम में सचमुच बहुत इन्वाल्व हो जाता और यह लेख मुझे अंगेजी में लिखना सरल पड़ता।
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दिवंगत जोशी जी का लेख बहुत लंबा है।
यूं इसे इस तरह अंडरस्टैंड कीजिए कि समथिंग इज बेटर दैन नथिंग...।
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1 अप्रैल, 1990 के नवभारत टाइम्स में प्रकाशित व्यंग्यकार शरद जोशी का उस चर्चित ‘आइटम’ का एक छोटा अंश यहां प्रस्तुत किया जा रहा है जिसे आज भी कुछ लोग पढ़ना चाहते हैं।
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तब पटना रेलवे स्टेशन पर कुली ने शरद जोशी से
पूछा था,
‘‘आप इतने नरभस क्यों हो रहे हैं ?’’
फिर क्या था नवभारत टाइम्स ने जोशी जी के संबंधित लेख का शीर्षक ही लगा दिया। अखबार का डिसिजन सही ही था !!
‘बिहार पहुंच कर नरभसा गए शरद जोशी।’
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उस व्यंग्य लेख का एक पोरशन पढ़िए--
पूरा लेख यहां देने पर शायद नभाटा काॅपीराइट का दावा कर दे !
थोड़ा देने पर शायद एपोलाॅजी करके मैं बच जाऊं !
लोहा मानना पड़ेगा राजेंद्र माथुर के संपादकत्व में निकल रहे तब के नभाटा की संपादकीय टीम की कल्पनाशीलता व श्रेष्ठ पत्रकारिता का।
रज्जू बाबू ने इंदौर के नईदुनिया से दिल्ली पहंुचकर न सिर्फ एक उदास अखबार को ताजगी व जीवंतता से भर दिया,बल्कि अपने साथ अपने कल्पनाशील मित्र शरद जोशी से भी रोजाना काॅलम लिखवाया।
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जोशी जी की बेजोड़ कलम की बानगी देखिए--
जिन चीजों के हम बिहारी अभ्यस्त हो चुके हैं और हमें
उनमें कोई प्राब्लम नहीं लगती,उसी में से जोशी जी ने एक
कालजयी व्यंग्य लेख निकाल ही लिया।
‘‘ ........बड़ा प्राब्लम है।मैं जब पटना उतरा तो मुझसे पूछा गया कि
‘क्या आप टूल डाउन से आ रहे हैं ?’
मैंने हड़ताल के अर्थ में टूल डाउन मुहावरा सुना था इसलिए मुझे यह समझने में बड़ी कठिनाई हुई कि यहां टूल डाउन से तात्पर्य ट्वेल्व डाउन से है जो ट्रेन के लिए कहा जाता है।
वहीं कुली के मुख से नरभस शब्द सुना।
इन्क्वायरी की खिड़की पर मेरे प्रश्न के उत्तर में बिहारी अंग्रेजी के वाक्य का अर्थ निकालने का प्रयत्न करते हुए बार -बार मेरी नजर अपनी अटैची पर जा रही थी।
मुझे डर लग रहा था कि जल्दबाज प्रवृत्ति का वह कुली चल न दे।
तब इत्मिनान दिलाते हुए उस कुली ने मुझे कहा , ‘‘आप इतने नरभस क्यों हो रहे हैं ?’’
नरवस शब्द नरभस हो वहां की बोली में समा जाएगा,मैंने सोचा न था।
जब मैंने यह किस्सा पटना में एक सज्जन को सुनाया तो उन्हें आश्चर्य नहीं हुआ।
वे बोले,आप नरभसाए रहे होंगे,तभी कुली ने देख कर कहा होगा।
यह सुन अंग्रेजी के सुरक्षित भविष्य को लेकर मेरे मन में कोई संदेह नहीं रह गया।
जहां अंग्रेजी का नरवस नरभसाए होकर जीवित है ,वहां अंग्रेजी के लिए नरवस होने का सवाल ही नहीं उठता।
बिहार बिलकुल बदल गया है।पटना में अब भवन या मंजिल नहीं बनते
वहां अब अपार्टमेंट और काम्पलेक्स बन गए हैं।
आदमी बहुत व्यावहारिक और स्पष्ट वक्ता हो गया है।
अतीत से लेकर भविष्य तक को एक मिनट में गड्डमड्ड करके वह अपनी बात कह सकता है।
जैसे उसके मुख से यह वाक्य सुनकर चैंकना नहीं चाहिए कि राम ने रावण का मर्डर किया था।
.........कुछ वाक्य मैंने सुने,वे ऐसे थे।
‘‘नौभारत टाइम्स को शुरू में डिफिकल्टी रहा,पर बाद में पब्लिक उसे लाइक करने लगा।’’
‘‘सी.एम.आजाद बड़े आनेस्ट थे, पर जब वे रांग आदमी का पाइंट आॅफ व्यू सुनने से रिफ्यूज करने लगे तब उन्हें बदलना पड़ा।’’
‘‘लगता है कि आप प्राब्लम में बहुत इन्भाल्ब हो गए हैं।’’
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मुझे लगता है कि यदि मैं अधिक दिनों तक बिहार में रहता तो वहां की भाषा की प्राब्लम में सचमुच बहुत इन्वाल्व हो जाता और यह लेख मुझे अंगेजी में लिखना सरल पड़ता।
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दिवंगत जोशी जी का लेख बहुत लंबा है।
यूं इसे इस तरह अंडरस्टैंड कीजिए कि समथिंग इज बेटर दैन नथिंग...।
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