एक राजनीतिक कार्यकत्र्ता के लिए
कम से कम दुआ तो करें !
..................................................
कल के दैनिक जागरण के अनुसार अनिल पाठक के बेहतर इलाज
की जरुरत है।
इलाज के लिए उन्हें बाहर जाना पड़ सकता है।
बिहार नागरिक परिषद के पूर्व महा सचिव श्री पाठक की किडनी
रोगग्रस्त हो चुकी है।
पटना के आई.जी.आई.एम.एस.में उनकी डायलिसिस चल रही है।
थोड़ा सुधार तो है !
पाठक जी आपको अच्छे लगे या नहीं, अभी यह मसला नहीं है।
वे अभी कष्ट में हैं।
वे लंबे समय तक राजनीतिक
कार्यकत्र्ता रहे हैं।
एक राजनीतिक कार्यकत्र्ता के रूप में मैंने भी 1966 से 1976 तक वह ‘‘जूता’’
पहन कर खुद देखा कि वह
कहां -कहां काटता है।
बहुत कुछ देखने-झेलने के बाद 1977 में मैं सक्रिय राजनीति से भाग खड़ा हुआ।
मैं तो भाई कायर निकला !
फिर कभी उधर पलट कर देखने की मेरी कोई इच्छा ही नहीं हुई।
चाहे जितने अनुमान के घोड़े कुछ लोग मेरे बारे में दौड़ाते रहंे !!
यह जानते हुए भी कि जन सेवा का सर्वाधिक सशक्त माध्यम राजनीति ही है,
यदि उसका सदुपयोग हो।
किसी साधनहीन राजनीतिक कार्यकत्र्ता का यदि समाज ध्यान रखता है तो
वह राजनीति में बना रहता है।
और, उससे अन्य कार्यकत्र्ताओं का भी मनोबल बढ़ता है।
अन्यथा, राजनीतिक कार्यकत्र्ता के नाम पर इन दिनों फंड के ठेकदारों की
भला कहां कमी है ?!
.....................................
----सुरेंद्र किशोर
16 मार्च, 2020
कम से कम दुआ तो करें !
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कल के दैनिक जागरण के अनुसार अनिल पाठक के बेहतर इलाज
की जरुरत है।
इलाज के लिए उन्हें बाहर जाना पड़ सकता है।
बिहार नागरिक परिषद के पूर्व महा सचिव श्री पाठक की किडनी
रोगग्रस्त हो चुकी है।
पटना के आई.जी.आई.एम.एस.में उनकी डायलिसिस चल रही है।
थोड़ा सुधार तो है !
पाठक जी आपको अच्छे लगे या नहीं, अभी यह मसला नहीं है।
वे अभी कष्ट में हैं।
वे लंबे समय तक राजनीतिक
कार्यकत्र्ता रहे हैं।
एक राजनीतिक कार्यकत्र्ता के रूप में मैंने भी 1966 से 1976 तक वह ‘‘जूता’’
पहन कर खुद देखा कि वह
कहां -कहां काटता है।
बहुत कुछ देखने-झेलने के बाद 1977 में मैं सक्रिय राजनीति से भाग खड़ा हुआ।
मैं तो भाई कायर निकला !
फिर कभी उधर पलट कर देखने की मेरी कोई इच्छा ही नहीं हुई।
चाहे जितने अनुमान के घोड़े कुछ लोग मेरे बारे में दौड़ाते रहंे !!
यह जानते हुए भी कि जन सेवा का सर्वाधिक सशक्त माध्यम राजनीति ही है,
यदि उसका सदुपयोग हो।
किसी साधनहीन राजनीतिक कार्यकत्र्ता का यदि समाज ध्यान रखता है तो
वह राजनीति में बना रहता है।
और, उससे अन्य कार्यकत्र्ताओं का भी मनोबल बढ़ता है।
अन्यथा, राजनीतिक कार्यकत्र्ता के नाम पर इन दिनों फंड के ठेकदारों की
भला कहां कमी है ?!
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----सुरेंद्र किशोर
16 मार्च, 2020
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