85 पैसे बनाम 15 पैसे की याद !!
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जब मनुष्य या देश के जीवन में विपत्ति आती है ,
यदि उस विपत्ति को पार पाने में कठिनाइयां होने लगती हैं,
तो, अनायास कई नई-पुरानी बातें भी याद आने लगती हैं।
उसी तरह की एक बात की एक बार फिर याद दिला दूं।
1985 में कालाहांडी की सभा में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि
सरकार दिल्ली से तो 100 पैसे भेजती है ,पर लोगों तक उसमें से सिर्फ 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं।
कल्पना कीजिए कि यदि आजादी के बाद और 1985 तक सौ में से
कम से कम 85 पैसे भी सही ढंग से खर्च होते तो क्या देश में स्वास्थ्य तथा अन्य संरचनाओं का वही
हाल रहता जैसा आज है ?
क्या लाखों की संख्या में हर साल मजदूर रोजी-रोटी के लिए एक राज्य से दूसरे राज्यों में पलायन करते ?
क्या करोड़ों लोग आज भी एक शाम भूखे सोते ?
आदि आदि..........?
मैंने 1985 तक की ही याद इसलिए दिलाई क्योंकि 1985 से अब तक इस मामले में क्या होता रहा है,यह आज की पीढ़ी भी खुद देख-समझ रही है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि अब 85 बनाम 15 वाला अनुपात नहीं है।
क्योंकि अब हम गरीबों को सीधे बैंकों के जरिए पैसे भेज रहे हैं।
मोदी जी की बात काफी हद तक सच है।
पर, पूरा सच नहीं है।
मेरा एक सवाल है।
जो पैसे सरकारी बैंकों के जरिए नहीं भेजे जाते,उन पैसों का आज भी कितना सदुपयोग हो रहा है ?
सांसद-विधायक फंड में से कौन कितना ‘पा’ रहा है ?
सासंद-विधायक फंड के भ्रष्टाचार ने आई.ए..एस.नामक ‘‘स्टील फे्रम’’ में
कितना जंग लगाया है और लगा रहा है ?
राजनीति का स्वरूप कितना बदल दिया है ?
परिवार नियोजन को विफल करने में धार्मिक अंध विश्वास के अलावा भ्रष्टाचार ने कितना योगदान किया है ?
बैंक शाखाओं के आसपास यदि खुफिया एजेंसियों को लगा दिया जाए तो पता चल जाएगा कि 100 पैसों में से आज भी बिचैलिए कितना हड़प रहे हैं।
हां, यह बात सच है कि वे 85 पैसे तो नहीं ही हड़प पा रहे हैं।
पर दस-बीस पैसे भी वे क्यों हड़पेंगे ?
हालांकि कुल मिलाकर राजनीतिक कार्यपालिका के सर्वोच्च स्तर पर स्थिति पहले से आज बहुत बेहतर है।
पर, स्थिति में और भी अधिक सुधार होगा जब सांसद-विधायक फंड बंद हो जाएगा।
पर यह देख कर दुख होता है कि उसे जारी रखने के लिए कई ईमानदार मुख्य मंत्री और ईमानदार प्रधान मंत्री भी बाध्य रहे हैं।
यह देश की बहुत बड़ी त्रासदी है।
सांसद-विधायक फंड की बुराइयों के बारे में बहुत सारी बातें कही जा चुकी हैं।
मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि आजादी के बाद से ही भ्रष्टाचार इस देश की सबसे बड़ी समस्या रही है।
आज भी उस पर कायम हूं।
भ्रष्टाचार ही अन्य अधिकतर समस्याओं पर काबू पाने नहीं देता।
अन्य समस्याओं का स्थान दूसरा, तीसरा और चैथा
आदि ही है..........।
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---सुरेंद्र किशोर - 29 मार्च 20
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जब मनुष्य या देश के जीवन में विपत्ति आती है ,
यदि उस विपत्ति को पार पाने में कठिनाइयां होने लगती हैं,
तो, अनायास कई नई-पुरानी बातें भी याद आने लगती हैं।
उसी तरह की एक बात की एक बार फिर याद दिला दूं।
1985 में कालाहांडी की सभा में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि
सरकार दिल्ली से तो 100 पैसे भेजती है ,पर लोगों तक उसमें से सिर्फ 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं।
कल्पना कीजिए कि यदि आजादी के बाद और 1985 तक सौ में से
कम से कम 85 पैसे भी सही ढंग से खर्च होते तो क्या देश में स्वास्थ्य तथा अन्य संरचनाओं का वही
हाल रहता जैसा आज है ?
क्या लाखों की संख्या में हर साल मजदूर रोजी-रोटी के लिए एक राज्य से दूसरे राज्यों में पलायन करते ?
क्या करोड़ों लोग आज भी एक शाम भूखे सोते ?
आदि आदि..........?
मैंने 1985 तक की ही याद इसलिए दिलाई क्योंकि 1985 से अब तक इस मामले में क्या होता रहा है,यह आज की पीढ़ी भी खुद देख-समझ रही है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि अब 85 बनाम 15 वाला अनुपात नहीं है।
क्योंकि अब हम गरीबों को सीधे बैंकों के जरिए पैसे भेज रहे हैं।
मोदी जी की बात काफी हद तक सच है।
पर, पूरा सच नहीं है।
मेरा एक सवाल है।
जो पैसे सरकारी बैंकों के जरिए नहीं भेजे जाते,उन पैसों का आज भी कितना सदुपयोग हो रहा है ?
सांसद-विधायक फंड में से कौन कितना ‘पा’ रहा है ?
सासंद-विधायक फंड के भ्रष्टाचार ने आई.ए..एस.नामक ‘‘स्टील फे्रम’’ में
कितना जंग लगाया है और लगा रहा है ?
राजनीति का स्वरूप कितना बदल दिया है ?
परिवार नियोजन को विफल करने में धार्मिक अंध विश्वास के अलावा भ्रष्टाचार ने कितना योगदान किया है ?
बैंक शाखाओं के आसपास यदि खुफिया एजेंसियों को लगा दिया जाए तो पता चल जाएगा कि 100 पैसों में से आज भी बिचैलिए कितना हड़प रहे हैं।
हां, यह बात सच है कि वे 85 पैसे तो नहीं ही हड़प पा रहे हैं।
पर दस-बीस पैसे भी वे क्यों हड़पेंगे ?
हालांकि कुल मिलाकर राजनीतिक कार्यपालिका के सर्वोच्च स्तर पर स्थिति पहले से आज बहुत बेहतर है।
पर, स्थिति में और भी अधिक सुधार होगा जब सांसद-विधायक फंड बंद हो जाएगा।
पर यह देख कर दुख होता है कि उसे जारी रखने के लिए कई ईमानदार मुख्य मंत्री और ईमानदार प्रधान मंत्री भी बाध्य रहे हैं।
यह देश की बहुत बड़ी त्रासदी है।
सांसद-विधायक फंड की बुराइयों के बारे में बहुत सारी बातें कही जा चुकी हैं।
मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि आजादी के बाद से ही भ्रष्टाचार इस देश की सबसे बड़ी समस्या रही है।
आज भी उस पर कायम हूं।
भ्रष्टाचार ही अन्य अधिकतर समस्याओं पर काबू पाने नहीं देता।
अन्य समस्याओं का स्थान दूसरा, तीसरा और चैथा
आदि ही है..........।
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---सुरेंद्र किशोर - 29 मार्च 20
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