शनिवार, 7 मार्च 2020

   
   पुलिस विफल तो लोकतंत्र पर खतरा !
      --सुरेंद्र किशोर--- 
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राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकर अजित डोभाल ने कहा है कि 
‘‘अगर पुलिस कानून 
लागू करने में नाकाम रहती है तो 
लोकतंत्र नाकाम होता है।’’
अच्छी मंशा वाले डोभाल इससे अधिक और क्या कह सकते हैं !
   सिस्टम के महत्वपूर्ण अंग रहे अजित डोभाल देख रहे हैं कि एक ईमानदार 
प्रधान मंत्री के रहते कानून लागू होने में भारी दिक्कत हो रही है।
  पहले यह माना जाता था कि शीर्ष राजनीतिक कार्यपालिका के पदों पर 
रुपए-पैसों के मामले में
शब्द के सही अर्थ में ईमानदार व्यक्ति बैठे तो बहुत 
सारी चीजें अपने -आप ठीक हो जाएंगी।
पर, ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है।
लगता है कि ‘दीमक’ ने सिस्टम को खोखला बना दिया है।उसे  
ठीक करना किसी पी.एम.या सी.एम.के
वश की बात नहीं रह गई है।  
  मनमोहन सिंह के शासन काल में यह आरोप लगा था कि गृह मंत्री दिल्ली 
के पुलिस थाने में खास 
एस.एच.ओ.तैनात कराने में भी रूचि रखते हैं। 
मोदी राज के गृह मंत्रियों के बारे में तो ऐसा नहीं सुना गया।
फिर भी आज दिल्ली के थानों में बिना पैसे जनता के कितने काम होते हैं ?  
  ऐसे में क्या यह नहीं कहा जा सकता है कि भारत में लोकतंत्र विफल 
होने के कगार पर है ? इसके अन्य अनेक लक्षण सामने आते रहे हैं। 
पर ,अभी ऐसा कहना अभी जल्दीबाजी होगी।
 फिर भी सरजमीनी स्तर पर इस देश में क्या हो रहा है,उसके कुछ नमूने देखिए।
 दिल्ली से पटना आइए।
   कई दिनों बाद आज मैं सुबह -सुबह घर से निकला।
एन.एच.पर पहुंचते ही देखा कि बालू लदे दर्जनों ट्रैक्टर हाईवे पर खड़े थे।
सड़क पर ही बालू की बिक्री जारी थी।
उन ट्रैक्टरों के कारण हाईवे पर वाहनों की गति निर्बाध नहीं रह गई थी।
फिर भी उन्हें रोकने -टोकने वाला वहां कोई नहीं था।
पता चला कि स्थानीय थाने को रोज प्रति ट्रैक्टर 1000 रुपए मिलते हैं।
  मन क्षोभ से भर उठा।
 उसके बाद एक विकासशील मुहल्ले में गया।
वहां सींमेंटी सड़क और नाले का निर्माण चल रहा था।
निर्माण कार्य पटना नगर 
निगम के जिम्मे है।
सड़क निर्माण में किसी भी मानक का ध्यान नहीं रखा जा रहा था।
नाला एक तरफ से बनता जा रहा था और दूसरी ओर से टूटता जा 
रहा था।
लगा कि इस निर्माण कार्य को देखने कोई अफसर उधर ताकता तक नहीं। 
 ये तो मात्र छोटे नमूने हंै।
जहां हाथ डालिए, देश में कमोवेश एक ही हाल है।
लूट सके सो लूट !!
हालांकि शुक्र है कि आम तौर पर महा घोटाले अब नहीं हो रहे हैं।
विकास व कल्याण के कार्य भी अब पहले से अधिक हो रहे हैं।
  फिर भी स्थानीय स्तर के लोगबाग ‘सरकार’ से परेशान हंै।
सरकारी अफसरों-कर्मचारियों की घूसखोरी जीवन शैली बन चुकी है।
ऐसे में लोकतंत्र कब तक बचेगा ?
फिर इस देश का क्या होगा ?
 अनुमान के घोड़े दौड़ाते रहिए ।
 जिन देशों में लोकतंत्र नहीं है,वहां क्या है !
वैसे भी धर्मांध लोगों से लड़ाई ठन चुकी है।
 ऐसी लड़ाई में लोकतंत्र कितना कारगर साबित होता है,
 यह भी देखना दिलचस्प होगा !!
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6 मार्च 2020

    

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