मंगलवार, 10 मार्च 2020

इंदिरा गांधी और बाबर का मकबरा

देश के सबसे बुजुर्ग पत्रकार माननीय मनमोहन शर्मा जब कुछ लिखते हैं तो मैं उसे बहुत ध्यान से पढ़ता हूं। मेरे एक पोस्ट पर उनकी एक टिप्पणी देखकर मैंने नटवर सिह की किताब निकाली।पढ़कर देखा तो पाया कि शर्मा जी सही हैं।

‘‘एक ही जिंदगी काफी नहीं’’ नामक पुस्तक के पेज नंबर -118 पर नटवर सिंह ने लिखा है, ‘‘श्रीमती इंदिरा गांधी के एक दोपहर थोड़ा समय खाली था और उन्होंने तय किया कि वे मेरे साथ ड्राइव पर चलेंगीं। काबुल से बाहर, कुछ मील की दूरी पर उन्हें एक जीर्ण -शीर्ण इमारत दिखाई दी जो कुछ पेड़ों से घिरी थी।

उन्होंने अफगान सुरक्षा अधिकारी से पूछा कि वह क्या है? उसने बताया कि वह बाबर का मकबरा है। श्रीमती गांधी ने वहां जाने का निर्णय किया। प्रोटोकाॅल विभाग के लिए मुसीबत हो गई। क्योंकि उन्होंने वहां कोई सुरक्षा प्रबंध नहीं किए थे। हम बाबर के मकबरे की ओर चल दिए। वे मकबरे के सामने खड़ी हुईं और हल्का सा सिर झुकाया। मैं उनके पीछे खड़ा था। वे बोलीं, ‘‘मैं इतिहास को महसूस कर रही थी।’’

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