शुक्रवार, 27 मार्च 2020

    बाढ़ भगवान ने भेजा,पर राहत 
     तो सरकार ने ही दी।
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     --सुरेंद्र किशोर-
1971 में बिहार में भारी बाढ़ आई हुई थी।
मैं उन दिनों अपने पुश्तैनी गांव में ही रहता था।
बाढ़ में लोगों की भारी तबाही हुई।
तब की सरकार ने भरसक राहत कार्य चलाए।
मैं भी गांव के एक सहयोगी विश्वेश्वर भाई के साथ दिघवारा के 
रामचंद्र प्रसाद के गोदाम से सरकारी राहत का 
गेहूं नाव पर लाद कर
ले जाता था।
अपने गांव में बांटता था।
दिघवारा के सिनेमा हाॅल के पास से नाव खुलती थी और
 करीब तीन
किलोमीटर चल कर मेरे दालान के पास जाकर ही नाव रुकती थी।
  1972 में बिहार विधान सभा का चुनाव हुआ।
मुझे लगता था कि सोनपुर क्षेत्र में कांग्रेस बुरी तरह हारेगी।
पर जीत गई।
जबकि, प्रतिपक्ष के उम्मीदवार राम सुंदर दास अच्छी छवि वाले नेता थे।
मैंने दिघवारा के एक व्यक्ति से पूछा कि आपने कांग्रेस 
को वोट क्यों दिया ?
उसने कहा कि ‘‘बाढ़ तो भगवान ने भेजा।
पर राहत तो कांग्रेस ने ही दी।’’
  आज की स्थिति से तुलना कीजिए।
देश-प्रदेश की सरकारें कोरोना से लड़ने के लिए भरसक जी -जान से लगी हुई हैं।
सिस्टम में कमियों के बावजूद सरकारों की नीयत पर कुछ ही लोगों को छोड़कर कोई शक नहीं कर रहा है।
प्रतिपक्ष के एक हिस्से का भी
सरकार के साथ पहले की अपेक्षा अधिक सहयोगात्मक रुख है।
अगले किसी चुनाव के समय मतदाताओं को यदि यह लगेगा कि कोराना तो भगवान ने भेजा,पर उससे लड़ने के सिलसिले में सरकारों ने कुछ उठा नहीं रखा तो समझिए 1972 दुहरा जाएगा।
--27 मार्च 20 

  ---सुरेंद्र किशोर  

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