शुक्रवार, 20 मार्च 2020

   1977-1980 और 2019 के बीच का फर्क !!
  विधान सभाओं को भंग करने  और न करने का मामला
.............................................................................
         --सुरेंद्र किशोर--
मान लीजिए कि 2019 में इंदिरा गांधी ,नरेंद्र मोदी की 
जगह प्रधान मंत्री होतीं !!
फिर क्या होता ?
वही होता जो 1980 में हुआ।
यदि मोरारजी देसाई 2019 में प्रधान मंत्री होते तो क्या होता ?
वही होता जो 1977 में हुआ।
पर, नरेंद्र मोदी ने 2019 में ऐसी  हिम्मत नहीं दिखाई ।
या फिर 
लोकलाज में पड़ गए ? !!!
पता नहीं।
खैर ,जो हो।
मोदी की गलती सिंधिया गुट ने ‘‘सुधार’’ दी। 
मध्य प्रदेश ,राजस्थान और छत्तीस गढ़ की अधिकतर सीटों पर 
2019 के लोक सभा चुनाव में भाजपा जीत गई थी।
पर, उन राज्यों में 2018 में कांग्रेस की सरकारें बन चकी थीं।
‘‘नए जनादेश को ध्यान में रखते हुए’’ राजग की केंद्र सरकार इन 
तीन राज्यों की सरकारों को बर्खास्त करके वहां फिर से चुनाव करवा सकती थी।
ऐसा इस देश में पहले हो चुका था।
पर मोदी सरकार ने वह काम नहीं किया।
  1977 के लोक सभा चुनाव में मिले जनादेश को आधार बना कर 1977 में ही नौ राज्यों की कांग्रेस सरकारों को भंग कर दिया गया था।
मामला सुप्रीम कोर्ट गया।
सबसे बड़ी अदालत ने देसाई सरकार के इस निर्णय को संविधान सम्मत बताया।
  अब बारी इंदिरा गांधी सरकार की थी। 
 1980 में सत्ता में आने बाद इंदिरा सरकार ने भी नौ राज्य मंत्रिमंडलों को भंग कर दिया।
विरोध होने पर  इंका ने कहा कि ‘‘जो काम 1977 में संविधान सम्मत था,वह 1980 में गलत कैसे हो गया ?’’
हां, नरेंद्र मोदी सरकार की बात ही अलग है।
मोदी राजनीतिक नैतिकतावादी निकले या अधकचरे खिलाड़ी !!
..................................
20 मार्च 2020

कोई टिप्पणी नहीं: