नार्को टेस्ट वाले अपने निर्णय
पर पुनर्विचार करने के लिए
सरकार करे सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश
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सेल्वी बनाम कर्नाटका सरकार मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में कहा था कि
‘‘किसी की इच्छा के विरूद्ध उसका नार्को टेस्ट नहीं किया जा सकता है।’’
याद रहे कि नार्को ,पाॅलिग्राफिक और ब्रेन मैपिंग टेस्ट के अभाव में इस देश में बहुत सारे खूंखार अपराधी,देशद्रोही व घोटालेबाज लोग कानून से साफ बच जा रहे हैं।
बच जाने के बाद वे फिर उसी तरह के अपराध में लग जाते हैं।
ऐसे टेस्ट अदालत के आदेश से होते जरूर हैं,पर बहुत कम।
इसलिए केंद्र सरकार को चाहिए कि वह देशहित में इस निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अपील करे।
कानून के शासन को मजबूत करने के लिए ऐसे टेस्ट जरूरी हैं।
इस देश में क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम का हाल बुरा है।
सुप्रीम कोर्ट कई बार अपने पिछले निर्णय को पलटता भी रहा है।
उदाहरणार्थ, सन आपातकाल में 1976 में इंदिरा गांधी सरकार के एटाॅर्नी जनरल नीरेन डे ने सुप्रीम कोर्ट को बता दिया था कि
‘‘यदि आपातकाल में स्टेट किसी की जान भी ले ले तौभी उसके खिलाफ अदालत की शरण नहीं ली जा सकती।’’
ऐसा अंग्रेजों के राज में भी नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट ने इमरजेंसी में तो यह मान लिया था कि इंदिरा सरकार को कानूनी प्रक्रिया के बिना भी किसी की जान ले लेने का पूरा अधिकार है।
पर सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में इमरजेंसी के अपने ही उस निर्णय को पलट दिया।
उसी तरह यह उम्मीद की जानी चाहिए कि व्यापक जनहित व कानून के शासन को देखते हुए
सुप्रीम कोर्ट नार्को टेस्ट वाले अपने निर्णय को पलट सकता है यदि सरकार उससे विनती करे।
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--सुरेंद्र किशोर--4 अक्तूबर 20
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