शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

    सीमावत्र्ती प्रदेश होने के कारण बिहार 

   के मतदाताओं की खास जिम्मेदारी

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    --सुरेंद्र किशोर-- 

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 बिहार जैसे संवेदनशील प्रदेश में चुनाव हो रहा है जो नेपाल की सीमा पर बसा है।

सीमा खुली हुई है।

   सीमावर्ती इलाकों के मतदाताओें को कुछ खास सावधानी बरतनी चाहिए।

या यूं कहिए कि अगली पीढ़ी की रक्षा के लिए बरतनी पड़ेगी।

   ऐसा न हो कि बिहार विधान सभा के लिए ऐसे-ऐसे  उम्मीदवार विजयी हो जाएं जो टुकड़े -टुकड़े गिरोह के मददगार हांे या उनसे सहानुभूति रखने वाले हों।

 या फिर निष्क्रिय रहने वाले हों।

 याद रहे कि कोरोना संकट से निकलने के बाद जब केंद्र सरकार सी.ए.ए. और एन.आर.सी.आदि पर काम करने लगेगी तो टुकड़े -टुकड़े गिरोह व उनके समर्थकगण एक बार फिर  सक्रिय हो जाएंगे। 

   भारत नेपाल सीमा से समय -समय पर ऐसे -ऐसे लोग ‘गुजरते’ रहे हैं जो इस देश की एकता-अखंडता के दुश्मन रहे हैं।

  1986 में खालिस्तानी नेता एस.एस.मान को बिहार-नेपाल सीमा पर गिरफ्तार किया गया था।

वह भारत छोड़ने की कोशिश कर रहा था।

  नब्बे के दशक में पुरूलिया आम्र्स ड्राॅप्स मामले के आरोपी को एक बिहारी नेता ने ही अपनी कार में नेपाल सीमा पार करा कर भगवा दिया था।

   2013 में इंडियन मुजाहिद्दीन के सह संयोजक यासिन भटकल को नेपाल सीमा पर ही पकड़ा गया था।

जब 2001 में सिमी पर प्रतिबंध लग गया तो सिमी के लोगांे ने ही इंडियन मुजाहिद्दीन,पी.एफ.आई. आदि का गठन किया।

सिमी का घोषित उद्येश्य हथियारों के बल पर भारत में इस्लामिक शासन कायम करना है।

  भारत को नुकसान पहुंचाने वाली जितनी देसी-विदेशी शक्तियां आज इस देश में सक्रिय हैं,उतनी पहले कभी नहीं थीं।

  इस देश को बर्बाद करने के लिए बाहर से अरबों रुपए आते रहे हैं।

  नेपाल की खुली सीमा ऐसे तत्वों के लिए बहुत अनुकूल पड़ती है।

इसलिए सीमा पर न सिर्फ ईमानदार अफसर तैनात हों बल्कि वहां जनता के भी ऐसे प्रतिनिधि चुने जाएं जो देशद्रोहियों की गतिविधियों को उजागर करंे न कि छिपाएं।या फिर ऐसी समस्या की ओर से आंखें न फेर लें।

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    --सुरेंद्र किशोर--8 अक्तूबर 20

  

 


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