रविवार, 4 अक्तूबर 2020

 एक विश्लेषणकत्र्ता ने कहा  है--

‘‘हंगामा करने के लिए हाथरस तो बहाना है !

असल में योगी सरकार के चंगुल से माफियानुमा खूंखार अपराधियों और टुकड़े -टुकड़े गिरोह के जेहादियों को बचाना है।

अन्यथा, बलरामपुर दलित महिला बलात्कार कांड की खोज खबर लेने भी तथाकथित सेक्युलर दलों व बुद्धिजीवियों के दस्ते वहां जाते।

पर कैसे जाएंगे ?

 बलरामपुर जाने पर उनके खास वोट बैंक के नाराज होने का खतरा जो है !

यहां यह दुहराने की आवश्यकता नहीं कि हाथरस वाली घटना के आठ दिन बाद दुष्कर्म का आरोप लगा था।

पर बलरामपुर में इस सवाल पर कोई मतभेद है ही नहीं।’’

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यह सब ठीक उसी तर्ज पर हो रहा है जिस तरह गुजरात में हुआ था।या,अन्य जगह होता रहा है।

गोधरा ट्रेन में 58 कार सेवकों को पेट्रोल छिड़कर जिंदा जला दिया गया था।

 किसी सेक्युलर नेता ने उस सामूहिक मानव दहन की निंदा का बयान तक नहीं दिया।

पर जैसे ही प्रतिक्रियास्वरूप गुजरात में बहुसंख्यकों ने दंगे शुरू कर दिए तो ‘‘सेक्युलर’’ दल और बुद्धिजीवी जोर -जोर से चिल्लाने लगे।

यानी तथाकथित सेक्युलर जमात ने अब भी अपनी राह नहीं बदली है।हालांकि इस राह पर चलने से उनको लगतार चुनावी नुकसान हो रहा है। 

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मैंने आज सुबह से पटना -दिल्ली के 11 दैनिक अखबार  पलटे।

किसी अखबार में यह खबर नहीं मिली कि कोई ‘सेक्युलर’ राजनीतिक नेता बलरामपुर गया था।

संभव है कि जल्दी- जल्दी इतने अखबार पलटने में खबर छूट गई हो।

 आपकी नजर में ऐसी कोई खबर आई हो तो जरूर बताइएगा।

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--सुरेंद्र किशोर-3 अक्तूबर 20

 


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