सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

 इस देश में सैनिक शाही या हिटलर शाही 

की आंशका को निर्मूल करने के लिए गंभीर

प्रयास करने की जरूरत 

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राजनीति में तेजी से बढ़ते भ्रष्टाचार,अपराध,देशद्रोह

और वंशवाद-परिवारवाद के कारण लोकतंत्र के 

सामने गंभीर खतरा

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चुनाव एक ऐसा मौका है जब आप हिटलर शाही

या सैनिक शाही की आशंका से इस देश को साफ 

बचा कर निकाल सकते हैं।

उस आशंका को निर्मूल कर सकते हैं।

आखिर यह आशंका मेेरे मन क्यों आई ?

इस सवाल का जवाब देने की कोशिश कर रहा हूं।

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सन 1967 से ही इस देश के चुनावों को गौर से देखता रहा हूं।

समय के साथ कुछ ऐसी बुराइयां तेजी से बढ़ती जा रही हैं जिनका कुपरिणाम संभवतः वही हो सकता है जिसकी आशंका मेरे मन में है।

ईश्वर करे,मेरी आशंका गलत साबित हो जाए !

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एक बड़े नेता ने हाल में कहा कि चूंकि मेरा दामाद बेरोजगार है,इसलिए मैंने उसे विधान सभा का टिकट दे दिया।

 नेता स्पष्टवादी हंै,इसलिए उन्होंने खुलेआम यह बात कह दी।

इस देश के अन्य अनेक नेता यही काम करते रहे हैं।

  राजनीति में वंशवाद-परिवारवाद समय के साथ तेजी से बढ़ता चला जा रहा है।

आज कितने सांसद या विधायक हैं जो अपने परिजन को अपनी जगह या साथ में टिकट दिलाना नहीं चाह रहे हैं ?

अंगुलियों पर गिनने लायक।

किसी राजनीतिक वंश-परिवार में कोई त्यागी-तपस्वी जन सेवक निकले तो राजनीति में उसे आगे बढ़ाने में कोई हर्ज नहीं।

पर क्या यही हो रहा है ?

क्या त्याग-तपस्या-जन सेवा टिकट देने की कोई कसौटी रह गई है ?

लगता तो यह है कि आजादी से पहले इस देश में 

जिस तरह 565 रजवाड़े थे,उसी तरह के राजनीतिक घरानों की संख्या बढ़ती चली जा रही है। 

यह संयोग नहीं है कि ऐसे घरानों में से अधिकतर के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं।

क्या इसे ही लोकतंत्र कहते हैं ?

क्या स्वंतत्रता सेनानियों ने अपनी सुख, चैन व जान को जोखिम में डालकर इसी दिन के लिए हमें आजाद 

करवाया था ?

हमारे लोकतंत्र में अन्य अनेक बुराइयां गहरे घर करती जा रही  हंै।

 नतीजतन शासन-प्रशासन की स्थिति दिनानुदिन बिगड़ती जा रही है।

आज देश-प्रदेश में कितने सरकारी आॅफिस हैं जहां बिना नजराना-शुकराना के काम हो रहा है ?

कितने सांसद या विधायक हैं जो अपने क्षेत्र विकास फंड से ‘चंदा’ नहीं ले रहे हैं ?

जितने जन प्रतिनिधि चंदा लेंगे,उसके साथ ही उतने ही अफसर रिश्वत लेने की अघोषित छूट भी हासिल कर लेंगे।

आज चाहते हुए भी ईमानदार प्रधान मंत्री और ईमानदार मुख्य मंत्री भी शासन-व्यवस्था को भ्रष्टाचारमुक्त नहीं कर पा रहा है।

वैसे आम लोग ऊब रहे हैं जिनका कोई निहितस्वार्थ नहीं है।

इसका अंततः क्या नतीजा होगा ?

अनुमान लगाइए।

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फिलहाल बिहार विधान सभा चुनाव के इस अवसर पर सही सोच वाला व्यक्ति क्या करंे ?

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1.-उस दल को और उसके उस उम्मीदवार का समर्थन करें जो अन्य दलों या उम्मीदवारों की अपेक्षा कम भ्रष्ट है ।या ईमानदार है।

जो आदतन भ्रष्ट या अपराधी नहीं है,उसमें सुधरने की गुंजाइश बनी रहती है।

शत्र्त है कि थोड़ी कड़ाई हो जाए।

2.-उसे ताकत पहुंचाएं जो अपेक्षाकृत कम वंशवादी-परिवारवादी है।

या जो परिवारवादी नहीं है।

3.- कई शक्तियां हथियारों के बल पर इस देश में  राजनीतिक विचारधारा या धार्मिक विश्वास के अनुकूल शासन-व्यवस्था स्थापित करने की गंभीर कोशिश में है।

ऐसी शक्तियों के प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थकों को इस चुनाव में मदद मत कीजिए।

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यदि राजनीति व शासन पर आदतन भ्रष्ट तत्वों ,खूंखार  अपराधियों, घृणित व बेशर्म परिवारवादियों-वंशवादियों और देशद्रोहियों -संविधान विरोधियों का वर्चस्व इसी रफ्तार से बढ़ता गया तो आखिर एक दिन क्या होगा ?

एक दिन वही होगा

जिसकी आशंका इस पोस्ट के शीर्षक में व्यक्त की गई है।

हालांकि अब भी समय बचा है चेत जाने के लिए।

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--सुरेंद्र किशोर-24 अक्तूबर 20


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