रविवार, 25 अक्टूबर 2020

       एक अनुभव जार्ज फर्नांडिस का

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बात तब की है जब जार्ज फर्नांडिस पहली बार केंद्र में 

मंत्री बने थे।

देश भर से अनेक लोग उनके आॅफिस में पहुंच जाते थे।

वे चाहते थे कि जार्ज पहले की ही तरह मेरे सामने बैठा रहे।  ‘‘हम उसे देखते रहें और वह मुझे देखता रहे।’’

(यह वाक्य जार्ज का ही है।)

  पर जार्ज के जिम्मे मंत्रालय के महत्वपूर्ण काम भी होते थे।

जार्ज को समय -समय पर कुछ लोगों से यह कहना पड़ता था कि ‘‘अब आप जाइए,मुझे कुछ काम करने दीजिए।’’

  यह सुनकर कई कार्यकत्र्ता व नेता नाराज हो जाते थे।

कई समझदार लोग नाराज नहीं भी होते थे।

एक बार जार्ज ने मुझसे यह बात बताई थी।

उन्होंने कहा कि जब मैं मंत्री नहीं बन रहा था तब तो हंगामा करके हमारे लोगों ने मंत्री बनवाया।

अब वही लोग चाहते हैं कि मंत्रालय का काम छोड़ कर उनके सामने बैठा रहूं !

   बिहार में भी यह कहानी दुहराती रही है।

अनेक लोगों की शिकायत है कि कतिपय शीर्ष सत्ताधारी नेता तो जल्दी मिलने का समय तक नहीं देता।अहंकारी हो गया है।

  दूसरी ओर, नेता कहता है कि ‘सार्थक काम वालों से तो मिलता ही हूं।’

  ऐसी नाराजगी का असर इस विधान सभा चुनाव पर भी पड़ता दिखाई पड़ रहा है।

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--सुरेंद्र किशोर-22 अक्तूबर 20  


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