शनिवार, 17 अक्टूबर 2020

 ‘आज’ और ‘प्रदीप’ के संपादक 

दिवंगत पारसनाथ सिंह की याद में

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पारसबाबू ने बहुत कुछ सिखाया हमें

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--सुरेंद्र किशोर--

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दैनिक ‘आज’ में पारसनाथ सिंह के नेतृत्व में काम करने 

व सीखने का सौभाग्य मुझे मिला था।

यह सन 1977 और उसके बाद के कुछ वर्षों की बात है।

14 अक्तूबर, 2015 को पारस बाबू का निधन हो गया।

अच्छा लगा कि पटना के कुछ प्रमुख पत्रकारों ने 14 अक्तूबर, 2020 को उनके गांव तारणपुर जाकर उनकी छठी पुण्य तिथि मनाई।

  तारणपुर पटना जिले के पुनपुन के पास का एक प्रमुख गांव है।

  पटना के पूर्व सांसद व पटना के मशहूर खड्ग विलास प्रेस के मालिक सारंगधर सिंह की ननिहाल उसी गांव में है।

स्वतंत्रता सेनानी व संविधान सभा के सदस्य रहे सारंगधर बाबू मूलतः उत्तर प्रदेश के थे।बाद में वे पटना में बस गए।

इसी प्रेस में भारतेंदु हरिश्चंद्र की सारी रचनाएं छपी थीं।

पारस बाबू के पुत्र घीरेंद्रनाथ सिंह के पीएच.डी. रिसर्च का विषय था खड्गविलास प्रेस। 

  ‘प्रदीप’ के चर्चित समाचार संपादक रामजी सिंह भी तारणपुर के ही थे।

  ‘आज’ में काम करते समय पारस बाबू ने हमें जो कुछ  सिखाया,वह सब मुझे आज भी याद है।

  बाबूराव विष्णु पराड़कर की परंपरा के ऋषितुल्य पत्रकार पारस बाबू ने न तो कभी अपनी संपादकी की धाक दिखाई और न ही उस पद का दुरुपयोग किया।

  किसी दल या नेता के प्रति न तो उनका कोई समर्थन भाव रहता था और न ही विरोध भाव।

  हम जूनियर पत्रकारों से वे कहते थे कि आप अपने लेखन में विशेषण का इस्तेमाल कम से कम करंे।

 विशेषणों को विशेष अवसरों के लिए बचा कर रखिए।

 पूरे पेज का शीर्षक लगाने से पहले दस बार सोचिए।

  यदि किसी मुख्यमंत्री के निधन पर ‘पेज हेडिंग’ लगाइएगा तो प्रधान मंत्री के निधन पर क्या करिएगा ?

  मंत्री या मुख्य मंत्री के पदारोहण के बाद तब भी बधाई संदेशों का तांता लग जाता था।

उसके बारे में पारस बाबू कहते थे कि यह तो दो व्यक्तियों के बीच का मामला है।

वे उन्हें चिट्ठी भेज कर खुशी जाहिर करें,बधाई दें।

इससे आम पाठकों का क्या संबंध ?

पारस बाबू हमें बताते थे कि आमरण अनशन के बदले अनिश्चितकालीन अनशन लिखें।

  अपनी काॅपी में संक्षेप में स्पष्ट बातें लिखें ताकि दिमाग में पर बोझ डाले बिना पाठक आपकी बात शीघ्र समझ ले।

  इस तरह की और भी कई बातें वे बताते थे।

पत्रकारिता में ब्राह्मणों की बहुलता का तार्किक कारण वे बताते थे।

  पूछने पर वह कहते थे कि आम तौर पर ब्राह्मण विनयी और विद्या- व्यसनी होते हैं।

ये गुण पत्रकारिता के पेशे के अनुकूल हैं।

वे खुद राजपूत  परिवार से आते थे। 

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--सुरेंद्र किशोर --17 अक्तूबर, 20



     


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